Rajesh Kumar Shrivastava

Classics

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Rajesh Kumar Shrivastava

Classics

लवमैरिज के बाद !

लवमैरिज के बाद !

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फुलवारीपारा का सरकारी स्कूल ! मध्यान्ह अवकाश होने में अभी वक्त था। प्रधानाचार्य कक्षा चार में गणित के सवाल हल करा रहे थे। बच्चों का ध्यान पढ़ाई से ज्यादा रसोई कक्ष की ओर था, जहाँ से उठ रही मसालों की सुगंध से वे यह अनुमान लगाने में लगे थे कि आज उन्हें लंच में खाने के लिए क्या-क्या मिलने वाला है।  

 बातें नहीं – शोर बढ़ा तो प्रधानाचार्य जी ने उन्हें टोंका- इधर ध्यान दो ! आठ का पहाड़ा आठ बार ही पढ़ना है, फिर …..

उसी समय एक मोटर साईकिल गेट के ठीक सामने आकर रुकी। उसमें दो लोग थे एक स्त्री तथा एक पुरुष। वे लोहे की गेट को ठेलकर भीतर आये। पुरुष लंबा तड़ंगा गौर वर्ण का, तेजी से अधेड़ावस्था की ओर अग्रसर हो रहा था, उसकी अवस्था यही कोई ४०-४२ की रही होगी। उसके मुकाबले में साथ की स्त्री अवस्था में यही कोई ३०-३२ की थी, वह साँवली रंगत की कृशकाय,कद में नाटी तथा साधारण शक्ल सूरत की थी। 

प्रधानाचार्य के लिए वे दोनों नितांत अपरिचित थे ँ संभवतः यह लोग जनपद स्तर के जनप्रतिनिधि हों, जो विद्यालय के.निरीक्षण को आये हों। उन्होंने मन ही मन सोचा।

आगंतुक पुरुष ने नमस्कार करते हुए साथी महिला का परिचय दिया कि- आप श्रीमती बबीता वर्मा हैं,जो अपने बच्चों टिंकू वर्मा तथा रिंकी वर्मा से मिलने आई हैं।

ओह ! प्रधानाचार्य ने कहा- ठीक है, आप लोग मेरे कार्यालय में चलकर बैठिए ! मैं आपके बच्चों को वहीं बुलवाता हूँ।‘ 

कोई माता अपने बच्चों से स्कूल में आकर मिलना चाहे तो प्रधानाचार्य को भला क्या आपत्ति थी।

ठीक है सर ! --वे दोनों कार्यालय में जाकर बच्चों की प्रतीक्षा करने लगे। 

टिंकू वर्मा कक्षा चार में पढ़ता था, और रिंकी वर्मा, वह कक्षा दो की छात्रा थी।  प्रधानाचार्य के आफिस में पहले टिंकू आया। वह महिला, बबीता वर्मा लपककर उसके पास पहुंची और उसके दोनों हाथों को थामती हुई पूछी—मुझे पहचाना ? 

प्रधानाचार्य को बहुत आश्चर्य हुआ। यह भी कोई बात हुई ? माँ अपने बेटे से पूछ रही है -मुझे पहचाना ? मैं कौन हूँ.

टिंकू ने बड़े ही गौर से महिला को देखा, पहचाना फिर धीरे से कहा- हाँ ! तुम मेरी अम्मा हो !

यह उत्तर जहाँ प्रधानाचार्य को निश्चिंतता दे गया, वहीं महिला के कानों में अमृत घोल गया।

माँ ने पुत्र को अपने अंक में भर लिया और उसे दुलारने लगी। उसके साथी पुरुष के मुख पर संतोष की मुस्कान बिखर गई। 

रिंकी तो और भी अधिक हैरत में दिखी। अंततः उसने भी पहचान लिया, कि यह उसकी अपनी अम्मा ही है। महिला अपने दोनों बच्चों को दुलारने, तथा उनसे बातचीत में व्यस्त हो गई।

उधर महिला के साथी निर्मल कुमार, जो बबीता के मकान मालिक थे, उनकी प्रधानाचार्य से वार्तालाप होने लगी। 

निर्मल कुमार ने प्रधानाचार्य को बताया कि –बबीता का अपने पति का ससुरालियों से पट नहीं रही है इसलिए वह पिछले दो वर्षों से चंदनपुर में उनके मकान में बतौर किराये दार रह रही है। 

निर्मल कुमार ने आगे कहा कि बबीता और रमेश वर्मा की शादी इंटरकास्ट लव मैरिज (विजातीय प्रेम विवाह) है। रमेश के परिवार में उसके दो भाई तथा तीन बहने तथा माता-पिता हैं। रमेश सबसे बड़ा है। उससे छोटी दो बहनों का तब ब्याह हो चुका था। दो भाई तथा एक बहन का ब्याह शेष था। 

बबीता के माता-पिता का स्वर्ग वास बहुत पहले हो चुका था, वह अपने मंझले भैया-भाभी के साथ रहती थी,। जब रमेश से उसकी नजरें चार हुई और उसके हृदय में प्रेम का अंकुर फूटा, तब वह मात्र उन्नीस साल की अल्हड़ नवयुवती थी। कद में नाटी तथा रंगत मे सांवली होने पर भी उसके यौवन में गजब का आकर्षण था। 

विकसित हो रहे पुष्प का पराग चूसने के लिए उसके आसपास भौंरे मंडराते ही हैं। इन्हीं भौंरों में एक रमेश वर्मा था। जिसके मनोमस्तिष्क में बबीता मानों छा गई थी। 

रमेश भी साधारण शक्ल सूरत का नौजवान था, गाँव के आखिरी छोर पर मेन रोड में उसकी चाय-नाश्ते-कोल्डड्रिंक्स- आदि की छोटी सी दुकान थी, जिससे गुजारे लायक आमदनी हो जाती थी। बबीता को भी रमेश भा गया इसके बाद जल्दी ही दोनों साथ-साथ घूमने-फिरने और जीने-मरने की कसमें खाने लगे। 

कुछ ही महीनों में बबीता को यह आभास हो गया कि वह बिन-ब्याही माँ बनने वाली है। यह समाचार रमेश के हाथों के तोते उड़ा देने को पर्याप्त था। प्रेम होने पर भी वह इस तरह और इतनी जल्दबाजी में शादी नहीं करना चाहता था।

 अतः दोनों प्रेमियों के द्वारा पहले गर्भपात की सारी ज्ञात विधियों को आजमाया गया। इसमें कामयाबी न मिली। तब, उन्होंनें मंदिर में जाकर शादी कर लिया।

रमेश जब अपनी नई नवेली पत्नी को लेकर घर पहुंचा तब, वर्मा परिवार में मानों भूचाल ही आ गया। कोई भी इस विवाह को विवाह मानने को तैयार नहीं था। रमेश से कहा गया कि वह बबीता को बाईज्जत उसके घर पहुंचा दे ! रमेश इसके लिए राजी न हुआ। परिवार में रोना-धोना, अनशन, गाली-गलौच सारे तरीके आजमाये गये। लेकिन वह अपने निश्चय से टस से मस न हुआ। आखिर में वर्मा परिवार ने बबीता को मन मारकर साथ रखा। लेकिन उनकी जुबानें खामोश नहीं रहीं।

सुनने वाले दो और सुनाने वाले दस। कुछ महीनों तक रमेश और बबीता दोनों कसूरवार ठहराये गये। इसके बाद इस विवाह की अकेली जिम्मेदार बबीता ठहराई जाने लगी। परिवार के सारे सदस्य मौका मिलते ही उसे जली-कटी सुनाया करते कि ‘’ हमारा बेटा हीरा था हीरा ! इसने मिट्टी का ढेला बना दिया ‘’। ‘’ पता नहीं, इसने क्या खिला-पिला दिया कि लड़के का दिमाग फिर गया और इस रुपवती को ब्याह लाया ‘’।। अरे ! इसकी शक्ल सूरत तो देखो, ! राजी-खुशी से तो कोई मक्खी भी न बैठे उस पर, ! जरुरइसने कोई जादू किया हैै हमारे रमेश के ऊपर।।

यह सब सुन कर बबीता का मन करता कि वह यह घर छोड़ दे ! बाज आई वह इस ब्याह से और ऐसे ससुराल से !! प्रेम रमेश ने भी किया था, लेकिन कसूरवार अकेली वही ठहराई जा रही है। 

अब वह जाये तो कहाँ जाये। दूसरी बिरादरी मे ब्याह कर लेने पर उसके उससे भाई खफा थे। भौजाईयाँ तो उसे पहचानने को भी तैयार नही।

बबीता मन मसोस कर रहने लगी। समय आने पर उसने टिंकू को जन्म दिया। परिवार में पुत्र जन्म पर खूब खुशियाँ मनाई गई। बबीता ने सोचा कि अब सब ठीक हो जायेगा। लेकिन हुआ नहीं ! उसके ससुरालियों ने बच्चे को हँसी-खुशी स्वीकार किया लेकिन बच्चे की अम्मा का कसूर ज्यों का त्यों बना रहा। 

बबीता का पहले ससुरालियों के साथ और फिर रमेश के साथ भी झगड़ा होने लगा। मुद्दा वही ‘तुम्हारे प्रेम ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा’’ और ‘’ मैंने तुम्हारे लिए इतना कुछ किया, लेकिन सब बेकार’’। 

प्रेम करना और प्रेम विवाह करना बहुत आसान काम है, लेकिन उसके बाद की जिंदगी बहुत कठिन होती है। निभ जाये, तब वाह ! वाह !! वरना हाय ! हाय !! लवमैरिज को इसीलिए खतरनाक माना जाता है।

इन्हीं वाद विवादों के बीच रिंकी का भी जन्म हो गया। बबीता को प्रेम तथा प्रेम विवाह ने कहीं का न रखा। ससुराल में एक एक दिन काटना मुश्किल ! रोज रोज के तनाव के चलते रमेश शराब पीने लगा और जरा-जरा सी बात में उस पर हाथ भी छोडने लगा। जब नशा उतरता तब माफी माँगता, और अच्छे व्यवहार का वादा करता। 

बबीता ने बच्चों का मुख देख-देखकर जैसे-तैसे सात साल काटे। फिर जब पानी सिर के ऊपर से गुजरने लगा, तब वह नाराज होकर चंदनपुर चली गई, और अपनी एक सखी के घर रहने लगी। उसे उम्मीद थी, कि रमेश उसे ढूँढता हुआ आयेगा और उसे मनाकर ले जायेगा !

लेकिन उसे मनाने रमेश को नहीं आना था सो नहीं आया तब उसने उसी चाल में एक कमरा किराये पर लिया तथा रोजी-मजदूरी करती हुई जीवन के दिन एक-एक कर काटने लगी। दिन पर दिन, माह पर माह गुजरते रहे। इस तरह पूरे दो साल बीत गये। बच्चे अपने पिता के पास रहे। धीरे-धीरे वे भी अपनी माँ से दूर रहना सीख ही गये।

अंततः माँ की ममता ने जोर मारा और माँ अपने बच्चों से मिलने विद्यालय चली आई। 

प्रेम निकटता से प्रगाढ़ होता है, तथा दूरी से घटता और क्षीण होता है। यही कारण था कि बच्चे अपनी माँ से उतने उत्साहपूर्वक नहीं मिले, जैसा कि उन्हें मिलना चाहिए था।

प्रधानाचार्य ने कहा – अब मालूम हुआ कि टिंकू तथा रिंकी यह दोनों गुमसुम और खोये-खोये से क्यों रहते हैं। इन्हें माँ की कमी महसूस होती है,लेकिन बच्चे होने के कारण इसे व्यक्त नहीं कर पाते !

हाँ सर ! यही बात होगी ! निर्मल कुमार ने कहा  

आप लोग दोनों में कोई समझौता क्यों नहीं कराते ?—प्रधानाचार्य ने पूछा।

यही असली समस्या है सर कि समझौता कौन कराये ? – उसने कहा --- ‘बबीता के भाई-भौजाई किसी भी तरह के सहयोग को राजी नहीं हैं। कोई बाहरी कोशिश करे, तो बात का बत़ंगड़ बनेगा। एक आखिरी विकल्प कोर्ट-कचहरी बचता है।‘ 

नहीं ! नहीं !! मैं कोर्ट-कचहरी नहीं करुंगी – बबीता बोली– जो बच्चों से तभी फारिग हुई थी।

क्यों ? -प्रधानाचार्य को आश्चर्य हुआ ! 

क्योंकि थाना-पुलिस तथा कोर्ट-कचहरी से मनो मालिन्य घटता नहीं है, उल्टे बढ़ता है। वह जैसा भी है, मेरा है, मेरा पति है। मैं अपने पति के ऊपर मुकदमा कैसे ठोंक सकती हूँ ?—बबीता का यह कथन प्रधानाचार्य को भा गया। यही भाव और यही विचार भारतीय नारी का आभूषण होता है। उन्होंने सोचा।

बबीता की बात सुनकर निर्मल कुमार की हँसी छूट गयी। बोला- इतना ही प्रेम है तुम्हें अपने पति से, और तुममें इतनी अक्ल भी है तो उसके साथ में क्यों नहीं रहती ? बच्चों को देखो क्या हालत हो गई है दोनों की।

हाँ ! बिल्कुल यही बात है – प्रधानाचार्य ने कहा—माता -पिता का आपसी विवाद तथा विलगाव बच्चों से उनका बचपन छीन लेता है और वक्त से पहले ही उन्हें समझदार बना देता है, यह अच्छी बात नहीं है। और बबीता जी ! मुझे आज पता चल गया कि आपके बच्चे गुमसुम क्यों रहते हैं।

अब नहीं रहेंगे सर ! मुझे इनके लिए जो भी करना होगा, मैं करुंगी। -- बबीता ने कहा और जाने के लिए उठ खड़ी हुई।

उसके दोनों बच्चे अपनी कक्षाओं को जा चुके थे। मोटर सायकिल पर बैठने के बाद बबीता ने एक बार मुडकर विद्यालय को देखा। उसकी आँखे डबडबा आई थी। वे आँसू बच्चों से मिलने की खुशी के थे, या उनसे मिलकर पुनः बिछडने के थे, या फिर दोनों के थे। यह बबीता से बेहतर किसे मालूम था।


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