Rajesh Kumar Shrivastava

Romance

3  

Rajesh Kumar Shrivastava

Romance

सुबह का भूला !

सुबह का भूला !

6 mins
198


  वह चाय-नाश्ते की एक छोटी सी दुकान थी, जो उस वक्त ग्राहकों से खाली थी। वृद्ध चाय वाला दुकान छोटे से काउंटर के पीछे बैठा ऊँघ रहा था 

 

उसकी तंद्रा तब भंग हुई जब २६-२७ वर्षीय आकर्षक एक युवक के दुकान में प्रवेश किया। वह अकेला नहीं था। उसके साथ एक खूबसूरत लड़की थी।  


वृद्ध चैतन्य हुआ। उसने युवक को विस्मय किन्तु प्रेम भरी निगाहों से देखा। युवक ने सहमति में अपना सिर हिलाया।


 वृद्ध ने धीरे से पूछा -चाय पिलाऊँ ?


हाँ बाबा - युवक ने जवाब दिया।


काउंटर से परे विपरीत दिशा में ग्राहकों के लिए लकड़ी की लम्बी बेंचें तथा मेजें लगी थी। युवक-युवती मेज के दोनों ओर आमने-सामने बैठ गये।

वृद्ध ने युवती पर उड़ती सी नजर डाली। फिर धीरे से मुस्कराया। इसके बाद चाय की पतीली चूल्हे पर रखा और चाय तैयार करने लगा। वह बीच-बीच में युवती को कनखियों से देखने लगा।


वह लगभग तेईस-चौबीस साल की गौरवर्ण छरहरे बदन की युवती थी। उस समय उसने नीली जींस तथा हल्की गुलाबी रंगत वाली टाप पहन रखा था। जो उस पर खूब जँच रही थी। उसका चेहरा गोल, होंठ पतले तथा आँखें अपेक्षाकृत बड़ी थी। उसके नेत्रों में आश्चर्य तथा घृणा का मिलाजुला भाव था।


 उसने युवक कहा - विनीत ! यह तुम मुझे कहाँ ले आए ? तुम तो मुझे अपने फादर से मिलाने वाले थे ना ? फिर यहाँ इस बदबूदार, घटिया और वाहियात जगह पर क्यों ले आए ? यहाँ का कुछ खाना पीना ठीक रहेगा ?


 विनीत ने मुस्कराते उत्तर दिया - हाँ तनु ! बिलकुल सेफ है। मैं ऐसे ही जगहों में जन्मा, पला और बड़ा हुआ हूँ, इसलिए अच्छे से जानता हूँ कि दुकानें छोटी होने पर भी यहाँ का खानपान बहुत स्वादिष्ट होता है। तुम एक बार चखकर तो देखो !


 ना बाबा ना ! मुझे तो अभी से उबकाई आ रही है –उसने कहा -और उस बूढ़े को देखो ! कैसे घूर रहा है मुझे ? जैसे आंखों से ही हजम कर जाएगा ! असभ्य कहीं का। इस उम्र में यह हाल है तो जवानी में..


 बस भी करो तनु - विनीत ने उसे टोकते हुए कहा-- वह तुम्हें वैसी नज़रों से नहीं देख रहा है।


 तुम्हें क्या पता ?


है पता किसी तरह से - विनीत ने कहा- मैं उन्हें बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ ये बहुत सज्जन मनुष्य है।


 अच्छा ! सज्जन मनुष्य का यह हाल है तो- तनु अपेक्षाकृत उच्च स्वर में बोली – विनीत ! जी कर रहा है कि बुड्ढे को पहले तरीके से मज़ा चखा चखाऊँ, तब तुम्हारे पापा से मिलूँ।


तनु -- विनीत ने उसे चुप कराना चाहा।


 विनीत ! तुम तो उसकी तरफदारी ऐसे कर रहे हो जैसे यही तुम्हारा बाप है !


ओफ्फो तनु ! मैंने कहा न, छोड़ो भी ! मेरा विश्वास करो !


 ओ.के.। तुम्हारा कहना मानकर मैं बुड्ढे को छोड़ देती हूँ अब इस बदबूदार जगह से हिलो भी- यह कहकर वह उठ खड़ी हुई -विनीत ! मैं यहाँ एक मिनट भी नहीं ठहर सकती।


 लड़की की बेसिरपैर कि बातों को सुनकर चायवाले का चेहरा क्रोध से लाल हो उठा। उसने प्रत्यक्ष कुछ न कहा। जबकि उसका जी कर रहा था कि लड़की का कान पकड़कर उसे दुकान से चलता कर दे। होगी बड़े बाप की बेटी। इससे उसे क्या ? हे भगवान !इस छोकरी के दिमाग में जरूर कोई फितूर है इसलिए इसे बूढ़ा आदमी भी मर्द दिखाई देता है, पिता, चाचा, ताऊ या बाबा नहीं ? बेचारा विनीत, ऐसी फूँ-फा वाली लड़की से उसकी कैसे निभेगी?


बूढ़े दुकानदार की चाय बनाने तथा पिलाने की सारी दिलचस्पी एकाएक खत्म हो गयी । वह गुस्से से पतीली के नीचे धधक रहीं आग को घूरने लगा।


बाबा चाय – 


वृद्ध ने अपना सिर उठाया। 


 विनीत ने देखा - वृद्ध के आँखों का कोर गीला हो चुका था। यह देख उसे बहुत पीड़ा हुई।


चाय उफनने लगा। वृद्ध का ध्यान दूसरी ओर था। विनीत शीघ्रता से भट्ठी के पास गया। देखा चाय कब की बन चुकी थी। उसने पतीली उतारी और चाय छानने लगा।


 वृद्ध की तंद्रा भंग हुई। वह मुस्कराया। 


बोला- रहने दो विनीत बेटा ! लाओ ! मुझे दो ! मुझे चाय छानने का अच्छा तजुर्बा है।


आज मुझे भी अच्छा-खासा तजुर्बा हो गया बाबा – विनीत ने धीरे से कहा – कि कौन सी चाय कैसी छन्नी में छनेगी। मैं समझ गया। यह वाली नहीं छनने वाली।


 विनीत यह क्या ? तुम्हें हो क्या गया है ?-- तनु उसे चाय छानते देख गुस्से से भर उठी। यह तुम्हारा काम नहीं है।


 तनु को अफसोस होने लगा कि वह इस घटिया गंदे तथा वाहियात इलाके में आई ही क्यों ? इधर कितने घटिया लोग रहते हैं ?


 बूढ़ा चायवाला कांच के गिलास में चाय लेकर तनु के पास आया तथा बड़े प्यार से बोला- लो बिटिया ! चाय पियो !


 नो आई नो !- मैं ऐसी घटिया चाय नहीं पीती - और खबरदार ! जो मुझे घूरा तो - ऐसा कहकर उसने गिलास को परे धकेला जिससे वह पहले हिला फिर लुढ़कता हुआ जमीन पर जा गिरा और टुकड़ों में तबदील हो गया।


तनु के व्यवहार को देखकर विनीत भौंचक्का रह गया। उसने तनु का एक नया ही रुप देखा था। वह थोड़ी घमंडी थी यह उसे मालूम था। परन्तु ,वह गरीबों से इतनी घृणा करती है उसे यह आज पता चला। विनीत को उसमें कोई दिलचस्पी न रही। उसका सारा प्रेम काँच के गिलास की तरह टूटकर बिखर गया।


 ऐसी घमंडी तथा नकचड़ी लड़की उसका जीवन भर साथ कैसे दे पाएगी ? जिसके मन में बूढ़ों के प्रति आदर नहीं ! जिसे प्रेम के मूल्य का पता नहीं ! उसके साथ विवाह करना अपने पैरो पर कुल्हाड़ी मारने के समान है।


तनु दरवाजे के पास जा खड़ी हुई और बोली- विनीत ! अब चलो भी !


 बस एक मिनट - विनीत ने उत्तर दिया और नीचे झुककर कांच के टुकड़ों को उठाने लगा।


 विनीत ! यह क्या ? तनु गुस्से से भरकर चीखी -यह तुम्हारा काम नहीं है। इन्हें ये बुड्ढा उठा लेगा ! तुम चलो हमें घर भी पहुंचना है।


हमें नहीं तनु सिर्फ तुम्हें !


क्या मतलब ?


 मतलब यह कि मैं अपने घर पर ही हूँ – विनीत ने गंभीरता पूर्वक उत्तर दिया - यही मेरा घर है और तुम्हें घूरने वाला यह बुड्ढा ही मेरा बाप है।


ओह नो !


ओह यस बेबी ! मैं तुम्हें इनसे ही मिलाने लाया था। तनु यह कितने अफसोस की बात है कि तुम्हें पिता तुल्य वृद्ध मनुष्य की आँखों में वात्सल्य नहीं मर्दानगी दिखाई दी। तनु मुझे अफसोस है, सचमुच अफसोस है कि मैं तुम्हारे योग्य नहीं हूँ ,आगे हो भी नहीं पाऊंगा।


 व्हाट ? तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया ?


 ओह विनीत ! मुझे अफसोस है ! मुझे मालूम न था की ये तुम्हारे पापा है आई एम सॉरी ! विनीत ! रियली सॉरी !! बाई गाड..


 रिलैक्स ! रिलैक्स !! विनीत बोला—तनु प्लीज। प्लीज लिसन टू मी !


 चायवाला बूढ़ा जो विनीत का पिता था, खामोशी से दोनों की वार्तालाप सुन रहा था। 


विनीत की आवाज में मानो जमाने भर की गंभीरता समाई हुई थी। बोला – तनु ! तुम्हें मुझसे कही अच्छा बॉय फ्रेंड मिल जाएगा ! लेकिन मुझे ऐसा पिता कहाँ मिलेगा ? जिन्हें मेरी खुशी तथा इच्छा के लिए अपनी अरमानों का गला घोंटना कुबुल था। जो राजी-खुशी खून का घूँट पीने को तैयार थे। तनु ! अपने देवता समान पिता को दुखी करके मैं सुखी कैसे रहूँगा। इसलिए हमारे रास्ते अलग हैं, आज से, यही से तथा इसी वक्त से। मजबूर तो मैं हूँ तनु !सारी तो मुझे कहनी चाहिए। आय एम सारी तनु ! प्लीज ,मुझे भूल जाओ !


ऐसा कहकर उसने तनु की ओर से पीठ फेर लिया और फर्श साफ करने लगा।


 विनीत की बातें सुनकर चायवाले की छाती गर्व से चौड़ी हो गयी। उनका अमूल्य निधि उनके पास लौट जो आया था उनकी आँखें भर आई। ये आँसू खुशी के थे।


 तनु ने बड़े अफसोस के साथ विनीत को देखा। जिसे उसकी खूबसूरती की कतई परवाह नहीं थी और ना ही उसके डैडी के दौलत तथा उसके सदके सुख सुविधाओं की। 


 वह थोड़ी देर तक प्रतीक्षा करती रहीं । फिर भारी मन से मुख्य सड़क की ओर रवाना हुई। जहाँ उसकी कार खड़ी थी।

           ×× समाप्त ××



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