भाईदूज की कहानी
भाईदूज की कहानी
भाईदूज का त्यौहार वर्ष में दो बार आता है। पहली बार चैत्र मास में कृष्ण पक्ष की द्वितीया को तथा दूसरी बार कार्तिक मास में शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को।
भाई दूज के दिन बहन के घर भोजन करने का भारी महत्तम् है। ऐसी मान्यता है कि बहन से तिलक कराने तथा उसके यहाँ भोजन करने से भाई को दीर्घायु प्राप्त होती है तथा संकट से उसकी रक्षा होती है। भाई-बहन के बीच स्नेह और भी अधिक प्रगाढ़ होता है।
भाई दूज के संबंध में एक कथा प्रचलित है,जो इस प्रकार है।
किसी गाँव में एक वृद्धा रहती थी। उसकी दो संतानें थी। एक पुत्र तथा दूसरी पुत्री। भाई अपनी बहन को बहुत स्नेह करता था। रक्षाबंधन तथा भाई दूज के दिन वह अपनी लाडली बहन से टीका- तिलक कराना तथा रक्षासूत्र बँधवाना नहीं भूलता था।
कथा काल में बहन का ब्याह हो चुका था तथा चैत्र कृष्ण द्वितीया को वह अपने ससुराल में थी, जो उसके गाँव से काफी दूर था। उन दिनों यात्रा करना बहुत कठिन था,जो पैदल,घोड़ों या फिर बैलगाड़ियों द्वारा पूरी होती थी।
भाई गरीब था उसके पास घोड़ा या बैलगाड़ी खरीदने का सामर्थ्य नहीं था। अतः वह बहन के घर जाने के लिए पैदल ही चल पड़ा। रास्ता दुर्गम,वीरान तथा भयानक जीव-जंतुओं से भरा पड़ा था।
आधे रास्ते पर एक छोटी सी नदी मिली। उसमें पानी ज्यादा न था कमर इतना ही था। अभी लड़का नदी के बीच में था कि नदी उससे मनुष्यों की भाषा में बोली – लड़के ! तैयार हो जा ! मैं तुम्हे डुबाने वाली हूँ।
लड़का चौंक गया उसने घबरा कर पूछा – यह कौन बोला ?
मैं वही नदी हूँ,जिसके बीच में तू खड़ा है – आवाज आयी।
मुझे क्यों डुबाना चाहती हो ?- लड़के ने पूछा।
मुझे जोरों से भूख लगी है -नदी बोली- आज के दिन मैं जीव लेती हूं।
लड़का बोला – नदी बहन ! नदी बहन !! आज भाईदूज है,इसलिए मैं टीका तिलक लगवाने अपनी बहन के घर जा रहा हूँ। तुम अभी मुझे जाने दो ! जब लौटूँ तब मुझे डुबोकर खा लेना।
नदी बोली- सच कह रहे हो ना ?
लड़का -हाँ
नदी- ठीक है फिर जाओ !
लडका नदी पार करके आगे बढ़ा। अभी वह थोड़ी ही दूर गया था कि एक बहुत बड़ा नाग उसके सामने आया और फन काढ़कर जीभ लपलपाने लगा। वह बहुत गुस्से में था।
लड़के ने उसे हाथ जोड़कर प्रणाम किया।
नाग बोला-कोई फायदा नहीं। सभी मनुष्य एक जैसे ही हो। नागों के शत्रु ! लड़के ! अब मरने को तैयार हो जा ! मैं तुम्हे डसने वाला हूँ !
लड़का बोला – नाग भाई ! नाग भाई !! अभी मुझे मत डसो। आज भाईदूज है। मैं अपनी बहन के घर तिलक-टीका के लिए जा रहा हूँ। मेरी बहन प्रतीक्षा कर रही होगी। इसलिए अभी मुझे जाने दो। लौटते समय मुझे डस लेना।
नाग ने पूछा- छोड़ दूँ तो भाग तो नहीं जाओगे ?
बिल्कुल नहीं नाग भाई – लड़का बोला – मुझे धर्म की सौगंध। मैं इसी रास्ते से लौटूँगा।
ठीक है फिर – जाओ – नाग ने कहा और रास्ता छोड़ दिया।
लड़का आगे चला। कुछ आगे जाने पर उसे एक बाघ मिला। उसने भी वही बात कही – मुझे बहुत भूख लगी है, मैं तुम्हे खाऊँगा।
लड़का बोला -बाघ भाई। आज भाई दूज है, मेरी बहन मेरी बाट जोह रही होगी इसलिए अभी मुझे जाने दो, जब लौटूँ तब मुझे खा लेना !
ऐसा है तो जाओ -बाघ ने कहा – मगर अपना वचन याद रखना।
उसे नमस्कार कर लड़का आगे बढ़ा। इसके बाद और कोई बाधा नहीं आई। वह अपनी बहन के घर पहुंचा। बहन द्वार पर बैठी भाई की बाट देख रही थी।
भाई को आया देख उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। उसने सबसे पहले भाई का हाथ-पैर धुलाया। फिर मंगल चौक बना उस पर लकड़ी का पाटा रखा। पाटे पर भाई को बैठा कर चावल रोली तथा दही से तिलक किया। आरती उतारी। इसके बाद खीर, पूरियां, मालपुए तथा मिठाईयाँ परोसी।
भाई को नदी,नाग तथा बाघ को दिये अपने वचनों की चिंता थी। इसलिए वह थोड़ा सा खाकर उठ गया और वापस लौटने को तैयार हुआ।
भाई की दशा बहन से छिपी न रही। उसने पूछा – भाई ! तुम इतने उदास क्यों हो ! मुझे बताओ। कदाचित मैं तुम्हारी कुछ सहायता कर सकूँ।
भाई ने बहन को रास्ते का सारा हाल सुना दिया। बहन बोली – भाई ! तुम चिंता मत करो ! भगवान की दया से सब ठीक होगा ! मैं भी तुम्हारे साथ चलती हूँ।
भाई के बहुत मना करने पर भी बहन नहीं । उसने रास्ते के लिए कुछ सामान लिया और भाई के साथ चल दी।
बाघ उसी ठिकाने बैठा मिला। बहिन ने थैले मे से मांस निकाला और बाघ को देते हुए बोली – बाघ भैया ! आज भैया दूज है लो तुम अपनी बहन के हाथ से भोजन करो।
बाघ ने खुशी-खुशी मांस खाया। बहन को देख एक बार धीरे से गुर्राया मानों आशीर्वाद दे रहा हो, फिर वह जंगल मे चला गया।
आगे उनकी मुलाकात नागराज से हुई। बहिन ने एक कटोरा दूध उसके सामने रखा और बोली – नाग भैया ! आज भाई दूज है लो तुम भी अपनी बहन के हाथ से दूध पीयो।
नाग फुफकारना छोड़कर दूध पीने लगा। दूध पीने के बाद उसने एक बार बहन को देखा फिर सरसराता हुआ झाड़ियों में जा घुसा।
इसके बाद वे नदी के पास पहुंचे। बहिन नदी के लिये लाल चुनरी लाई थी। नदी को चुनरी ओढ़ा कर वह बोली – नदी बहन ! भाई दूज के उपलक्ष्य में भाई की ओर से यह तुम्हारा नेग-सम्मान और भेंट है। इसे स्वीकार करो और प्यारे भैया को दीर्घायु होने का आशीर्वाद दो।
नदी उपहार पाकर प्रसन्न और शांत हो गयी।
इसके बाद दोनों भाई-बहन हँसी-खुशी अपने-अपने स्थान को लौट गये इस प्रकार बहन के प्रेम तथा चतुराई से भाई का संकट दूर हुआ तथा उसके वचनों की रक्षा हुई।
भाईदूज के दिन बहिनें अपने भाईयों को तिलककर उसके दीर्घायु की कामना करती हैं तथा भाई भी अपने बहन को संकट के समय सहायता करने तथा रक्षा करने का वचन देते हैं। यही इस पर्व का महत्व तथा संदेश है।