Rajesh Kumar Shrivastava

Comedy

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Rajesh Kumar Shrivastava

Comedy

दोबारा नहीं मरुँगा !

दोबारा नहीं मरुँगा !

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रजनीकांत हाँ यही नाम था उस खुरापाती बच्चे का जो तब कक्षा तीन में पढ़ता था। वह विद्यालय का सबसे ज्यादा खुराफाती छात्र था। उसे लेकर विद्यालय का पूरा स्टाफ हमेशा सतर्क रहता था, कि न जाने वह कब और कैसा गुल खिला दे।

मेरे स्कूल ज्वाईन करते ही मुझे एच.एम. सर ने चेताया था कि ‘रजनीकांत से सावधान रहना और उस पर नजर रखना।‘ इस चेतावनी से मैं अचरज से भर गया। सात बरस के बच्चे से स्टाफ का इस तरह भयभीत रहना मेरी समझ से बाहर था। फिर भी मेरी खुशी तब दोगुनी हो गयी थी जब मुझे पढ़ाने के लिए कक्षा दूसरी मिली। कक्षा तीन को मिसेज मंजू लता शर्मा पढ़ाती थीं। 

सर ! ये है हमारा रजनीकांत और रजनीकांत ये नये सर हैं, बहुत कड़क और बेहद अनुशासन प्रिय --मिसेज शर्मा ने हमारा परिचय कराया।


नमस्ते सर -उसने बड़ी मासूमियत से कहा -

नमस्ते जी- मैंने उसे ध्यान से देखते हुए कहा। वह मुझे आम बच्चों के जैसा ही लगा। चंचल, हँसमुख और बेहद मासूम। वह मुझे कहीं से भी खुरापाती नहीं लगा।

अभी आपने उसे देखा ही कहाँ है सर -मिसेज शर्मा बोली- जल्दी ही आपको पता चलेगा कि यह कितना शैतान बच्चा है। इसने तो मेरे नाक में दम करके रखा है !! ‘’ 

जवाब में मैं मुस्करा दिया। मुझे मिसेज शर्मा की बातों पर विश्वास नहीं हुआ। 


आपको विश्वास नहीं तो चलिए हम आपस में कक्षाएँ बदल लेते हैं आप तीसरी कक्षा पढ़ायें और मैं दूसरी पढ़ाती हूँ !—मिसेज शर्मा ने मुझे चैलेंज किया - चार दिन में ही आप कक्षा बदलने के तलबगार होंगे।

मैंने रजनीकांत के विषय में जितना जाना था, उसके आधार पर कक्षाएँ बदलने का प्रस्ताव ‘आ बैल मुझे मार’ जैसे होती। अतः मैं कक्षाएँ बदलने को राजी नहीं हुआ।

श्रीमती शर्मा पहली बार सितंबर में चार दिनों की छुट्टी पर गयी। इस कारण उनके क्लास की अतिरिक्त जिम्मेदारी मुझे मिली। 

मैं रजनीकांत के प्रति सावधान था। पहला दिन आम दिनों की तरह बीता। रजनीकांत ने दूसरे दिन जो किया वह अविश्वसनीय था, वह खुराफात की अद्भुत मिसाल थी। मुझे श्रीमती शर्मा की बातों पर विश्वास करना ही पड़ा।


उस दिन सुबह से ही रुक रुक कर बारिश हो रही थी। स्कूल में सामान्य दिनों की अपेक्षा विद्यार्थियों की उपस्थिति नगण्य थी। 

मैंने तीसरी क्लास में सुलेख लेखन का काम दे रखा था। विद्यार्थियों में, सिर्फ रजनीकांत ही अकेला था जो लिखने के बजाए अपने छाता से खेल रहा था। खेल-खेल में छाते की कड़ियों को जोड़कर रखने वाला तार अपनी जगह से निकल गया। जिससे कड़ियाँ बिखर गयी। इसके बाद उसने कड़ियों को पूर्ववत करने का बहुत प्रयास किया जो सफल नहीं हुआ। उस समय मैंने उसे चिंतित तथा थोड़ा सा भयभीत देखा। 


ठीक बारह बजे लघु अवकाश की घंटी बजी। बच्चों को लघुशंका जाने की फिक्र हुई। प्रसाधन कक्ष बड़े से आँगन के परली ओर था।

रजनीकांत अपने सहपाठी से कहने लगा –‘’ ‘’ जितेंद्र ! भीगना मत ! सर डाटेंगे ?

तो क्या करूँ ? मेरे पास छाता नहीं है, और यह जोर से आई हुई है –जितेंद्र ने जवाब दिया।

तू मेरा छाता ले जा – उसने दरियादिली दिखाते हुए कहा – पहले तू हो आ ! फिर मैं जाऊँगा !! 

जितेंद्र खुश हो गया। उसने छाता लिया और उसे खोला, ! जरा सा दबाव पड़ते ही छाते की सारी कड़ियाँ बाहर को झूल गयीं। 

जितेंद्र कुछ कह पाता उससे पहले ही रजनीकांत बुक्का फाड़कर रोने लगा फिर उससे कहा – तुमने मेरा छाता तोड़ दिया ? 

वह पहले से टूटा था यार ! मैंने कुछ किया ही नहीं – जितेंद्र बोला।

नहीं ! तुम्ही ने मेरा छाता तोड़ा है। मैं बड़े सर को बताऊंगा, नहीं तो इसे ठीक करो।

मैं कैसे ठीक करूँ! मेरी कोई गलती नहीं है —जितेंद्र रुआंसा हो गया, —तुम्हारा छाता पहले से ही टूटा हुआ था।।

नहीं तुमने तोड़ा है,- मैं तुम्हारा शिकायत करुँगा -उसने कहा और किया भी। यदि मैंने उसे न देखा होता तब जितेंद्र ही कसूरवार ठहराया जाता। मिसेज शर्मा ठीक कहती थी कि वह बड़ा ही चालबाज और ऊधमी बच्चा है, उसने जितेंद्र को पूरा प्लान बनाकर फंसाया था। 


उसकी होशियारी ने हम शिक्षकों का अच्छा मनोरंजन किया। हमने उसके पिताजी को भी उसकी चालबाजियों से अवगत कराया ना। वे भी माथा ठोककर रह गये। बोले – आप लोग ही इसे सुधारें सर !! मैं परेशान हो गया हूँ इसकी शैतानियों से !!’

कुछ महीने चैन से बीते। दिसंबर की एक सुबह रजनीकांत एक मेज से दूसरे मेज पर कूदने का खतरनाक स्टंट कर रहा था। उसकी देखादेखी उसके कुछ सहपाठी भी वैसा ही कर रहे थे।


कक्षा से धम धम की आवाजें स्टाफरूम तक सुनाई दे रही थी, किसी बच्चे ने मिसेज शर्मा से शिकायत करते हुए कहा – ‘मैम ! रजनीकांत हनुमान बना है और डेस्क पर कूद रहा है।‘

श्रीमती शर्मा बड़बड़ाई -- ‘इस रजनीकांत के बच्चे ने नाक में दम करके रखा है, ठहर बच्चू ! अभी मजा चखाती हूँ’! 

थोड़ी ही देर में बच्चों का शोर थम गया। श्रीमती शर्मा लौटी ही थी कि एकाएक पहले से भी ज्यादा शोर हुआ। एक बच्चा दौड़ते हुए आया बोला – सर ! सर ! वो रजनीकांत मर गया !!

क्या ? हम सब चौक उठे !

हाँ सर ! वो मर गया !- उसने दोहराया और भाग खड़ा हुआ।


अब दौड़ने की बारी हमारी थी। लंच छोड़ कर सभी तीसरी क्लास पहुँचे। कक्षा के बाहर पूरा स्कूल इकट्ठा था। सभी एड़ियाँ उचकाकर भीतर देखने की कोशिश में थे। हम रास्ता बनाते हुए भीतर गये।

वह बेंच पर चित्त लेटा पड़ा था, उसके दोनों हाथ नीचे लटक रहे थे। उसकी जीभ बाहर को निकली थी, और आँखें बंद थी।

अब रोने की बारी मिसेज शर्मा की थी ! वे बिना पूछे कहने लगीं –सर मैंने कुछ नहीं किया !! कसम से सर !! मैंने इसे सिर्फ डांटा ही था फिर ये क्या हो गया ! हे भगवान ! हाय मैं क्या करूँ !

प्रधानाध्यापक जी ने कहा – मैडम ! आप थोड़ी देर शांत रहें,। देखते हैं क्या हुआ है।।‘

लेकिन ये रजनीकांत ---?


आप चिंता न करें – उन्होंने कहा और उसके एक हाथ को छुआ और उसके नाड़ी की जांच की। 

फिर चपरासी से बोले – मायाराम ! एक बाल्टी ठंडा पानी और एक पतली सी छड़ी ढूँढकर ला ! जल्दी !!’’

मायाराम तुरंत आफिस की ओर भागा। 

इधर मोहनलाल चौहान ने शर्मा मैडम को डराने की कोशिश की :-- मैम ! अगर ये लड़का जिंदा नहीं हुआ, तब मार तो हम सभी को पड़ेगी ! लेकिन फांसी की सजा अकेले आपको मिलेगी !’


फाँसी ..! हाय सर तब तो मैं मर ही जाऊँगी सर ! मिसेज शर्मा का बदन पत्ते की तरह कांपने लगा।

हाँ मैम ! इसीलिए तो फाँसी होती है -चौहान सर गमगीन दिखाई देते हुए बोले – वैसे फाँसी लगने पर जीभ एक बीता बाहर लटक जाता है--- 

मैडम दोबारा रोना शुरु करतीं, उससे पहले ही मायाराम दोनों सामान ले आया। 

प्रधानाध्यापक जी ने पूछा – मायाराम ! पानी कितना ठंडा है ? 

बहुत ! बहुत ज्यादा ठंडा है सर ! उसने जवाब दिया।

अच्छा तुम रजनीकांत के सिर में पानी डालना शुरु करो !उससे पहले छड़ी मुझे दो - प्रधानाध्यापक जी ने कहा।


यस सर ! – मायाराम ने कहा और बाल्टी उठाया। पानी की पहली बूंद गिरने से पहले ही रजनीकांत उठ बैठा और प्रधानाध्यापक से बोला – सर ! मुझे माफ कर दीजिए !! सर। मैं आज के बाद कभी नहीं मरुँगा !!

उसकी आखिरी बात से हम सबकी हंसी छूट गई

मैंने पूछा – सच कहते हो ?

जी सर ! अब मैं कभी नहीं मरुँगा !

उसे सही सलामत देख कर मिसेज शर्मा का डर गुस्से मे बदल गया – रह तो जा नालायक ! पाजी !! शैतान !!- वह उसकी ओर लपकी। 

हमने उसे रोका -अभी नहीं मैम ! बाद में आपको बहुत मौके मिलेंगे। 

रजनीकांत को जिंदा देखकर बच्चों की भीड़ छंटने लगी। 


इस घटना हुए बरसों बीत गये। 

अभी हाल ही में मेरी मुलाकात रजनीकांत हुई। उसने मुझे पहचाना और प्रणाम किया। अब वह शादीशुदा और बाल-बच्चेदार था। साथ में उसकी पत्नी और दो प्यारे-प्यारे बच्चे थे। मैंनें उससे पूछना चाहा – क्यों रजनीकांत ! दोबारा थोड़े मरेगा ?


उसने सवाल से पहले ही जवाब दे दिया – नहीं सर ! मैं चाहूँ भी तो ये मुझे नहीं मरने देंगें।-- उसने अपने पत्नी और बच्चों की ओर इशारा करते हुए कहा। अब वह पहले वाला ऊधमी और शरारती रजनीकांत नहीं बल्कि एक धीर गंभीर तथा जिम्मेदार गृहस्थ था।



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