'वेलेंटाइन पखवाड़ा, जी का जंजाल
'वेलेंटाइन पखवाड़ा, जी का जंजाल
जनवरी खत्म होते ही मेरी पर्सनल जेलर मेरे ऊपर कड़ी निगाह रखना शुरु कर देती है। चूंकि फरवरी माह के मध्य में ‘वेलेंटाइन डे’ आता है, पाश्चात्य संस्कृति में यह दिन ‘प्रेमदिवस’ के रुप में विख्यात है। अपने देश में वेलेंटाइन डे विख्यात कम कुख्यात अधिक है। मेरी पर्सनल जेलर अर्थात श्रीमती जी को यह डर बना रहता है कि कहीं कोई खूबसूरत नवयौवना लाल गुलाब थमाकर मुझे प्रपोज न कर दे ! इसलिए वह इन दिनों मुझे सख्त निगाहबीनी में रखती है।
मेरे विरोध करने पर कहती है कि-‘ आप अक्षय खन्ना जैसे हैण्डसम , सन्नी पाजी जैसे स्ट्रांग तथा देवानन्द जैसे सदाबहार हैं ! ऊपर से आप भी कोई कम दिलफेंक नहीं है, ऐसे में कहीं कोई बंदरिया या छछून्दरी गुलाब थमाकर आपको ले उड़ी तो मेरी लुटिया ही डूब जायेगी ! इसलिए इस मुई वेलिंनटाईन डे तक आप कही भी जायें तो मुझे साथ लेकर ही जायें । नहीं तो पंद्रह दिनों तक रोटी पानी सब बंद !’
यह धमकी हुक्का-पानी बंद से कम खतरनाक नहीं है ।
बजरंग दल, हिन्दू सेना, टी.वी.तथा अखबार वालों की मेहरबानी से श्रीमती को यह पक्का विश्वास हो चुका है कि फरवरी मेरे जैसे स्मार्ट, कमाऊं, हँसमुख तथा दिलदार पुरुषों के लिए सबसे खतरनाक महीना है ।
उसे यह अंदेशा है कि कहीं से कोई छैल-छबीली प्रकट होगी और एक लाल गुलाब थमायेगी और बंदा चुपचाप उसके पीछे-पीछ चल देगा, ।
बचपन में खेलते हुए जब मैं घर से दूर चला जाता था, तब मेरी नानी मुझे समझाया करती थी बेटा अकेले दूर न जाया कर क्योंकि रुपनगर से एक जादूगर आता है वह जिस बच्चे को अपना जादुई आईना दिखाता है, वह अपने मम्मी-पापा, नानी, मामा, दीदी, भैया सबको भूल जाता है और जादूगर के पीछे-पीछे चल पड़ता है । जादूगर उसे रुपनगर ले जाता है और ढेर सारा काम कराता है। इसलिए मेरे बच्चे ! अकेले कहीं न जाना, घर पर ही खेलना ।
मुझे विश्वास है कि इस आईने वाले जादूगर के बारे में मेरी श्रीमती जी ने अपनी नानी से सुन रक्खा है। हालांकि उसने रूपांतर करते हुए जादूगर को जादूगरनी में तथा आईने को गुलाब में बदल डाला है ।
सख्त पाबन्दियों से चिढ़कर मैंने कहा- भागवान ! जरा होश की दवा करो ! जरा मेरी शक्ल और अवस्था का तो ख्याल करो ! कोई अक्ल की अंधी ही होगी जो मुझ जैसे को घास डालेगी?
घास खाये आपके दुश्मन – वो बोली- जिस तरह किसी भी औरत से उसकी उम्र नहीं पूछी जाती और उसी तरह मर्द की उम्र नहीं देखी जाती । आपको याद है ना ? अभी कुछ महीना पहले एक बड़े सेलीब्रिटी की जवान बेटी अपने से दोगुनी उम्र वाले अधेड़ के साथ इलू-इलू करने चली गयी थी, और माँ-बाप के फरियाद को अनसुना करती हुई उसी अधेड़ से ब्याह भी रचा ली थी । माँ बाप की एक भी ना चली क्योंकि लड़की ‘बालिग’ थी, बालिग होते ही आदमी घर परिवार से आजाद हो जाता है ना ? । तब अखबारों और टी.वी. पर कितना हल्ला मचा था । नहीं-नहीं मैं कोई रिस्क नहीं लेना चाहती । ऐसे ही कोई बालिग छोकरी पीछे पड़ गयी और गुलाब, इत्र या चाकलेट या एक साथ तीनों थमा गयी तब ? नहीं बाबा !! मुझे इस तरह के ‘बालिगों’ से बहुत डर लगता है !
श्री मती जी से ज्यादा गुस्सा मुझे यूरोपियन साहबों पर है, जिन्होंने एक-दो दिन में निबटने वाले काम को जबरदस्ती पूरे पंद्रह दिनों तक फैला रखा है ।
दरअसल अठारहवीं-उन्नीसवीं शताब्दी में यूरोपियनों के पास लड़ने-लड़ाने के अलावा कोई दूसरा काम नहीं होता था । खर्च के लिए उपनिवेशों सें लूट खसोट की अकूत धनराशि आती थी । इनका सारा काम इनके बेगार मे गुलाम करते थे और ये साहब लोग बैठे-बैठे मौज करते थे । मौज के नाम पर कभी चाकलेटडे, तो कभी परफ्यूम डे, कभी किसिंग डे, तो कभी मिसिंग डे मनाया करते थे । इसी तरह के और भी अनेक ऊल जुलूल डे हैं, जिन्हें यूरोपियनों की देखादेखी हम भी बड़े चाव से मनाने लगे हैं ।
अब जमाना बदल चुका है । अब वे (हमारे योरोपियन आदर्श) काम करते हैं और हम ‘डे’ मनाते हैं, साथ ही मुफ्त का माल ढूँढते हुए महँगाई का रोना रोते हैं ।
उस जमाने में योरोपियन्स प्रेम के मामले में कितने नौसिखिया थे कि उन्होंने निहायत ही छुप-छुपाकर पूर्ण एकांत में खुफिया तरीकें से किये जाने वाले काम के लिए उन्होंने पूरे पखवाड़े की घेर रखा था, यह घेराबंदी आज भी बदस्तूर जारी है, ताज्जुब है कि घेराबन्दी तथा आंदोलनों के लिये मशहूर हो रहे हिन्दुस्तान में इसके लिए कोई दिल्ली या यू.पी.या बिहार की सड़कें नहीं घेर रहा है ।
इक्कीसवीं सदी का बीस बरस भी बीत चुकने क बावजूद हमारे यहाँ वेलेंटाइन डे जिज्ञासा, जुगुप्सा, घृणा-वितृष्णा, क्रोध तथा नापसंदगी का मिला-जुला भाव उत्पन्न करता है ।
बिन ब्याहे लड़का -लड़की या स्त्री-पुरुष उच्छृंखलता पूर्वक परस्पर बांहों में बाँहें डालकर सड़कों-पार्कों तथा अन्य सार्वजनिक स्थानों पर घूमे और घड़ी घड़ी चूमाचाटी की कोशिश करें । इससे भारतीय संस्कृति को मानने वालों में रोष तथा कौतूहल दोनों उत्पन्न होना स्वाभाविक है। इसी रोष ने कतिपय राष्ट्र वादी संगठनों को ‘मोहब्बत के दुश्मन’ का तमगा दिलाया हुआ है।
पाश्चात्य प्रेम पर्व सात फरवरी को ‘’गुलाब दिवस’’ से शुरु होता है और बीस फरवरी को मिसिंग डे मनाने के साथ खत्म होता है। मुख्य पर्व ‘वेलेण्टाईन डे’ चौदह फरवरी को होता है ।
श्रीमती जी कहती हैं कि --इन विदेशियों में दिखावा और चोंचलेबाजी हमसे अधिक है । अब आप बतायें कि यदि कोई लड़का/लड़की रोज-रोज गुलाब, चाकलेट, परफ्यूम तथा गिफ्ट वगैरह खरीदेगा/खरीदेगी, तो किसी को भी यह समझते देर नहीं लगेगी कि इसका किसी न किसी के साथ कोई लफड़ा जरूर है ।
इनकी बात में दम तो है, मैंने मन ही मन कहा । मैंने प्रत्यक्ष में कहा—बिल्कुल ! वैसे हर बात जुबानी नहीं कही जाती ! कुछ इशारों में और कुछ प्रतीकों के माध्यम से भी कही जाती है ।
सही है- श्रीमती जी आगे बोलीं--किंतु आज के युवा को आजादी चाहिए ना। हर चीज और हर बात में आजादी चाहिए ! कुछ मामलों में तो उसे स्वयं यह भी पता नहीं होता कि वह किससे और किस चीज की आजादी मांग रहा है ।
आज का पाश्चात्य मस्तिष्क वाला युवा बहुत ढक-छुपकर और सावधानी पूर्वक किए जाने वाले काम को भी खुलकर आदि मानव की तरह सरेआम करने की आजादी चाहता है। आजाद ख्याल पसंद युवा हाल फिलहाल यह मानने को तैयार ही नहीं है कि अपनी संस्कृति भी है तथा इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी भी उसी के कंधों पर है ।
नीति कहती है कि ‘मनुष्य अपने सभी आभूषण भले ही उतार फेंके,! कोई बात नहीं! किंतु, लज्जा और मर्यादा नामक आभूषणों को कभी ना उतारें ! इन्हें सदैव पहने रहना चाहिए । ये मनुष्य को पशु नहीं बनने देते तथा विषम परिस्थितियों में भी मनुष्य को मनुष्य बनाये रखने में सहायता करते है’’ ।
मगर अफसोस ! कि ऐसी नीतियुक्त बातें अत्याधुनिक तथा ‘बालिग’ युवाओं के लिए उपहास तथा परिहास का विषय होती है ।
भारतीय हिन्दू संस्कृति की रक्षा के अलावा यह भी याद रखना जरूरी है कि गेहूँ के साथ घुन भी पिसता ही है, अर्थात कोई बजरंगी या कोई ….सैनिक आपको भी उद्दंड, जिद्दी तथा निर्लज्ज प्रेमी समझकर यथोचित सेवा सत्कार न कर दे इसलिए प्रेम पखवाड़े में सतर्कता बरतने में ही समझदारी है ।
मुझे श्रीमतीजी के तर्कों का कोई जवाब नहीं सूझा तब मैंने खामोश रहने में ही अपनी भलाई समझा ।
प्रेम-पखवाड़े में गुलाब, इत्र-फुलेल, चाकलेट वगैरह खरीदने से सख्त परहेज़ करता हूँ । इससे दोहरा लाभ होता है, पहला-तथाकथित राष्ट्रवादी स्वयं सेवियों से सुरक्षा होती है, तथा दूसरा गृह क्लेश की कोई संभावना नहीं होती ! अस्तु….।।