लॉकडाउन का मसीहा
लॉकडाउन का मसीहा
प्याज़ 25 ₹ किलो....!!
बाहर से आवाज सुनकर उसकी तरफ देखा, लॉकडाउन के सन्नाटे को भेदती उसकी मार्मिक आवाज....!!
समाने वाली भाभी बाहर आई और कहा 50 में ढ़ाई किलो मिल रहे हैं और ये लूट रहा है।
ये सुनते ही उसकी आंखो में गाठें सी लग गई.... चेहरा उतर गया और बोला दीदी आप 50 में ढ़ाई किलो ले जाइए।
मैंने पूछा पहले यहां कभी नही देखा, उसने कहा, सर लॉकडाउन हुआ और मार्केटिंग की जॉब थी दिल्ली में वो चली गई, पोस्ट ग्रेजुएट हूं एमबीए किया है। पिताजी को कोविड हुआ था अब वो नहीं है तो खाली बैठने से अच्छा पुलिस वाले को 50 रुपए दो निकल लो, कुछ तो कमाई होगी। मैंने कहा भाई बहुत रिस्क लेते हो, हमारे यहां बिल्कुल भी सब्जी नहीं थी, मैं जाने वाला ही था। मुझे भी प्याज देना और थोड़ी.....
उसकी आंखों की गांठे खुल चुकी थी, चेहरा खिला हुआ था। मुझे किसी अपने की कही बात याद आई " रेजिलिएंस" बहुत जरूरी है जीत के लिए।
वो लॉक डाउन का मसीहा अपनी रंग बिरंगी सब्जियां लेकर जा चुका था।
मां ने सब्जियां देख कर कहा, इतना सारा प्याज रखा तो था.... ।।
मैंने चुपचाप प्याज टोकरी में रख दिए और चला आया।
ये जो मायूसी की गांठे लिए घूमते अंजाने लोग, अपने दिल और जीवन के लिए जद्दोजहद करते ये अनगिनत योद्धा। बस यही गांठे तो खोलनी हैं। ये युद्ध ये संघर्ष इनके लिए ही है।