कलेक्टर साहब
कलेक्टर साहब
विदिशा जिले के नए कलेक्टर भानुप्रताप अपने जिले में सभी को प्रिय थे, रात दिन केवल जनसेवा में लगे रहते थे, उन्हें समाज के हर वर्ग का स्नेह समान रूप में मिलता था। उनके ऑफिस में पदस्थ वरिष्ठ क्लर्क श्री अमितलाल जी ने कहा, सर मैं मैडम के गाँव ड्यूटी में जा रहा हूँ, कोई ख़बर हो तो बता दीजिए।
भानुप्रताप ने अपने पूर्व परिचित अमितलाल की ओर देखा, और उठ खड़े हुए, लंबी सी साँस लेकर खिड़की की ओर देखने लगे, यादों में अतीत का एक धुंधला कमरा उभर आया, यू.पी.एस. सी. की तैयारी में रात भर जागते पढ़ते हुए एक लड़के का संघर्ष नज़र आया, वो अधूरी कहानी याद आयी जिसे न चाहते हुए भी क़िस्मत में लिखा जा चुका था.... तभी भानु को ऑफिस के बाहर जो लॉन था उसके बीच में लगी गाँधीजी की प्रतिमा पर चढ़ाये गए पुष्पों का मुरझाया हार दिख गया, भानुप्रताप ने सोचा ही था कि कल इनको बदलवा दूंगा, सुबह ख़ुद फाटक के पास वाली फूलों की दुकान से नया पुष्पों का हार लेता आऊँगा, की तभी अमितलाल जी ने खाँसते हुए कहा,
"साहब कोई ख़बर हो तो ?"
भानुप्रताप का ध्यान एक बार फ़िर से दस साल पुरानी किसी बात पर जाकर अटक गया, और बोले..."उससे कहना....." इतना कहकर फिर किसी सोच में डूब गए और इस दफ़ा आसमान पर छाए हल्के कत्थई बादलों में जब निगाह गड़ाई तो पानी की दो बूँदे उनकी आँखों से होती हुई गालों पर सरक गयीं, इन बूँदों का खारापन जब जुबान को महसूस हुआ तो रूमाल निकालकर आँसू साफ़ किये और तेज़ चाल से ऑफिस के बाहर निकल गए।
अमितलाल ने ऑफ़िस में टेबल के कोने में रखी उस बड़ी बड़ी आँखों वाली लड़की की तस्वीर को देखा और बुदबुदाते हुए, "जी साहब मैं समझ गया, मैं कह दूँगा।" कहा और ऑफिस का दरवाजा बाहर से लगा दिया फिर जब बाहर आकर देखा तो पता लगा कि कलेक्टर साहब अपने सरकारी बंगले पर जा चुके थे।
