कीर्ति

कीर्ति

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गाँव के मोगली से शुरू हुआ सफ़र शक्तिमान सा घूमता और अंधेरे से लड़ता हुआ लक्ष्य के लेफ्टिनेंट शेरगिल तक गया,

फिर थोड़ा ठहरकर ब्रूसली और टॉम क्रूज भी बना। मन मे बसे प्रेमचंद से प्रेम जुदा हुआ और केवल चंद बचा फिर जाकर मिर्ज़ा ग़ालिब और गुलज़ार के चमन के गुलों की शक़्ल इख़्तियार कर गया।

सफ़र अभी बाकी है और वो जो एकमात्र याद थी तुम्हारी, जिस नाम से तुम बुलाती थी, वो नाम अब मेरा तख़ल्लुस बन गया है, सनदें अता होती हैं मुझ पर सरकार की...

सफ़र अभी बाक़ी है, क्योंकि मृत्यु कीर्तिमय होगी।


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