भारतीयता का कॉलम
भारतीयता का कॉलम
उसका जन्म एक सैनिक परिवार में हुआ था। उसके पिता भारतीय सेना में रहकर राष्ट्र सेवा कर रहे थे।उसका लालन पालन देश के विभिन्न भागों में स्थित सैनिक छावनियों में हुआ था। वो कभी पूर्वोत्तर में उगते सूरज के साथ दौड़ लगा देता, तो कभी हुगली नदी में हावड़ा ब्रिज के उस पार डूबते सूरज को एकटक निहारता हुआ दूर कहीं बज रहे रबींद्रों संगीत की लय में खो जाता।
उसके जीवन का एक हिस्सा कश्मीर की वादियों में बर्फ़ के पहाड़ों के बीच, तो दूसरा हिस्सा मंगलोर के समुद्र तट पर भागते हुए बीता है। उसकी बोलियां विविध थीं। उसे पूर्वोत्तर ने प्यार दिया, तो दक्षिण ने उसे दक्ष बनाया... उत्तर ने उसके बालमन के बचकाने प्रश्नों के उत्तर दिए तो पश्चिम ने उसे जीवन पथ पर आई हर आंधी से लड़ना और जीतना सिखाया। उसे नाम मिला भारत, उसकी जाति थी भारतीय, उसका धर्म था राष्ट्रसेवा।
सैनिक छावनी में उसने मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और चर्च एक ही छत के नीचे देखे जिसे सर्वधर्म स्थल कहा जाता था। एक कोने में बने मंदिर से प्रसाद लेने के बाद वो दूसरे कोने में बने गुरुद्वारे का लंगर खाने भाग जाया करता था। उसे चर्च में संडे की प्रेयर से भी लगाव था। जब कभी मौलवीजी छुट्टी पर होते तो उनकी जगह पंडितजी क़ुरान की तिलावत कर देते थे। तो कभी कभी पंडित जी की जगह मौलवी जी जवानों की कलाइयों पर कलावा बांध कर टीका लगा दिया करते थे।
यही तो था भारत, यहीं तो था भारत। कारगिल युद्ध ऑपरेशन विजय में उसके पिताजी का जाना उसे याद है। उसे याद है कैसे हर शाम युद्ध में गए हुए सैनिकों के बच्चे और पत्नियां एक साथ बैठा करती थीं और एक दूसरे को हौसला दिया करती थीं। सैनिक युद्ध नहीं चाहते लेकिन युद्ध राजनीति का ही एक रूप है जिसमे संवाद की जगह गोलियां बोलती हैं और रक्त जवाब देता है। सैनिक राजनीति नहीं करता और यदि सैनिक राजनीति करने लग जाते हैं तो विश्व का भूगोल और इतिहास बदल जाता है। सैनिक जब राजनेता हो जाते हैं तब दुनियां या तो एक बड़ा बदलाव, एक नए समाज का पदार्पण या फिर एक महाविध्वंश देखती है, हिटलर और मुसोलिनी जैसे सैनिक नेताओं को विश्व शायद ही कभी भूल पाए।
भारत के पिता जब कश्मीर से घायल होकर लौटे तो उसने भी कसम खाई की वह जीवनभर अपने पिता के समान राष्ट्रसेवा करेगा और नाम, नमक व निशान का ध्येय ही उसका लक्ष्य रहेगा। परंतु भारत अनभिज्ञ था, कि कैंट के बाहर एक दूसरी दुनियां उसकी प्रतीक्षा कर रही है।
कॉलेज में गया तो देखा की एडमिशन फॉर्म में एक अजीब सा कॉलम है, "धर्म".... उसका धर्म भारतीय था लेकिन विकल्पों में केवल हिंदू मुस्लिम ईसाई सिख ही दिखा। हतप्रभ होकर उसने चारो ओर देखा तो उसे बताया गया की वो हिंदू है। बिना हिंदू लिखे उसे उच्च शिक्षा नहीं मिल पाएगी। इसलिए भारत का धर्म अब हिंदू हो गया था। भारत की नई पहचान उसका हिंदू होना थी।
उसे नेताओं द्वारा बताया गया की एक विशेष वर्ग के लोग हिंदुओं से नफरत करते हैं, धर्मांतरण करते हैं। एक विशेष वर्ग से भारत को खतरा है।उसे नेताओं ने बताया गया की कुछ लोगों ने उसके मंदिर तोड़े, ट्रेन जलाई।
भारत चुपचाप सुनता रहा, दुखी होता रहा की काश यहां भी मंदिर मस्जिद की जगह सर्वधर्म स्थल होते। और ये नेता धर्म की राजनीति न करते। काश जाति वाले कॉलम में भारतीय भी एक विकल्प होता।
और इसी चाहत को पूरा करने की ख्वाहिश लिए भारत रात दिन कठिन संघर्ष और अभावों के बावजूद पढ़ता रहा और उच्च शिक्षा में विशिष्ठ योग्यता प्राप्त कर विश्वविद्यालय की प्राविण्य सूची में स्थान प्राप्त करता रहा। उसका लक्ष्य था भारत को फिर से जगद्गुरु बनाना, उसका स्वपन था की हर भारतीय का धर्म भारतीयता हो। उसके सपने राष्ट्र सेवा और राष्ट्र के साथ समस्त विश्व में सुख शांति स्थापित करने के थे। उसकी आंखों में आसमान से ज्यादा सितारे चमकते थे। चाहता तो वो अपने मित्रों की तरह एक सुगम जीवन चुन सकता था या अपनी मेरिट के दम पर विदेश जाकर धन संपत्ति अर्जित कर सकता था। भारत एक अतिराष्ट्र भक्त और महत्वाकांक्षी युवक था, अतः उसने एक सुगम जीवन जीने की जगह क्रांतिकारी बदलाव लाने और संघर्ष द्वारा राष्ट्रनिर्माण की राह को चुना।
लेकिन भारत के सपनो को विराम तब लगा जब उसने अखिल भारतीय सेवा में आवेदन करते समय एक और नया कॉलम देखा, जिसमे लिखा था अपनी "जाति" लिखिए।
हतप्रभ अचंभित सा भारत फिर से चारो तरफ देखता रह गया। फिर उसे जातिगत राजनीति करने वालों ने बताया गया वो उस जाति से आता है जिसे सरकारी सुविधाओं के लाभ नहीं मिलते। उसे बताया गया की उसके पूर्वजों ने समाज में जुल्म किए थे जिसकी सजा उसे भुगतनी होगी। एग्जाम फॉर्म की उसे चार गुना ज्यादा कीमत देनी पड़ेगी। उसे किसी भी प्रकार की कोई स्कॉलरशिप नहीं मिलेगी। उसका गोल्ड मेडल किसी काम का नहीं। भारत ने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया लेकिन दुर्भाग्य से यही हुआ, तब भारत ने पहली बार जाना की उसकी जाति क्या है। भरे मन से उसने यूपीएससी की परीक्षा दी लेकिन अच्छे अंक आने के बाद भी उसका चयन नहीं हुआ। वो अचंभित था की उससे बहुत कम अंक लाने वालों का चयन सरकारी सेवाओं में अधिकारी के रूप में हो गया पर अच्छे अंक आने के बाद भी उसका चयन केवल इसलिए नहीं हुआ क्योंकि उसका एक जाति विशेष में जन्म हुआ था। वो हतप्रभ था की उसकी पिछली चार पीढ़ियां तो देश की सेवा करती आई हैं और राष्ट्र के लिए बलिदान देती आईं है तो फिर उसके कौन से पूर्वज थे जिन्होंने लोगों पर जुल्म किए थे??
भारत इस व्यवस्था से लड़ता रहा उसके सपने मरते रहे। दुनियां बदलने वाला भारत अपनी जाति न बदल सका। आरक्षण की भेंट चढ़ता गया।संसाधनों से रहित गरीब सैनिक का बेटा हारने लगा तो उसके बुजुर्ग सेवानिवृत पिता ने हौसला बढ़ाया। उस घायल सैनिक को बुढ़ापे में फिर से नौकरी करनी पड़ी ताकि जवान बेटा सरकारी अफसर बन सके और अपनी बेटी की अच्छी जगह शादी कर सके।
भारत हर बार अपनी पूरी कोशिश करता रहा लेकिन इस व्यवस्था से जीत न सका। आरक्षण रूपी दानव विकराल रूप लेता रहा और भारत मरता रहा। सरकारी अधिकारी न बन पाने की वजह से उसका सदैव साथ देने का वचन देने वाली उसकी प्रेमिका ने भी भारत को छोड़ दिया। हर तरफ से थका हारा और टूटा हुआ भारत अब हिंदू था सामान्य वर्ग से था एक जाति विशेष से था, बेरोजगार था, गोल्ड मेडलिस्ट था, सब ऐब थे सारे मसले थे लेकिन भारत अब भारत नही था।
वर्षों बाद भारत को लोग एक कट्टर हिंदू नेता के रूप में जानने लगे ।भारत अपनी जाति के लिए लड़ता है। जाति और धर्म के नाम को राजनितिक रंग देकर वो भी महान बन सकता था लेकिन उसका सैनिक मन ये कभी स्वीकार कर न सका। लेकिन अब भारत का धर्मांतरण हो चुका है। कुछ दिन पहले पता गया की भारत बीमार हुआ और शायद भारत मर भी जाता। लेकिन भारत मरते नहीं, भारत संघर्ष करते हैं और दुनियां बदलते हैं।
भारत लग गया कुछ सवालों के जवाब खोजने में की ये जाति ये धर्म क्या भारत को विरासत में मिले थे या भारतीय सेना ने सिखाए थे?? या फिर ये उस सरकार, उस व्यवस्था की देन है जो जातिगत भेदभाव मिटाने के नाम पर पिछले 75 वर्षों से न जाने कितने ही भारत को मारती आई है। और इतने वर्षों के बाद भी आखिर क्यों लोगों को खुद को पिछड़ा साबित करने की होड़ लगी हुई है। आखिर क्यों??