गणेशगढ़ का मेला

गणेशगढ़ का मेला

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इस साल गणेशगढ़ का मेंला नहीं दिखाओगी? तुम्हारी आँखों से जीवंत, कई सालों से देखता आया हूँ। मेंले का शोर, उत्साह सब का साक्षी रहा हूँ। मुझे याद है कि गणेशचतुर्थी से ही छोटी छोटी दुकानें सजने लगतीं थीं। एक क़तार में लगते थे वो नीले नीले चटपटी चाट के ठेले।


शाम होते ही झूलेवाले आने लगते थे। वो गोल ऊँचा झूला तुम्हारे घर के सामने वाला, ज़्यादा ऊँचा नहीं था। मगर बच्चों की कारों वाला घुमावी झूला बड़ा शानदार था। याद है पिछले साल झूले वाली अम्मा रंगीन फुनगी भी लगवा लायी थी और बच्चे कैसे लालच भरी निगाहों से झूले को देखते रहते थे।


मुझे शिकायत थी तुमसे, की मेंरे लिए मेंले से कभी कुछ नहीं खरीदा। मगर ख़ुशी इस बात की थी, कि सालभर वीरान सी रहने वाली वो पहाड़ी तक की सड़क चहचहाहट से भर जाती थी।


तुम्हारे लिए मेंला उत्सव था और मेंरे लिए किस्सों का खज़ाना। इस बहाने तुम्हारी बच्चों जैसी बातों को घंटों सुना करता था। इस मेंले की खुशी तुम्हारी आवाज़ में सुनाई देती थी। वाणी में वायु का वेग बढ़ जाता था और कभी कभी हृदय की गति को मात देती हुई वाणी में सहसा दो पल का मौन छा जाता था। उस मौन को पूर्णविराम देती तुम्हारी लंबी सी साँसों का व्याकरण मेंरे जीवन को आज भी परिभाषित करता रहता है। तुम्हें ख़ुश और उन्मुक्त पंछी की तरह उड़ते देखना मेंरे जीवन की सबसे प्रिय अभिलाषा थी।


उठते मेंले के दिनों में तुम्हारी वो बचपन की सहेली, अपने परिवार के साथ आया करती थी। तुम कैसे अपने बचपन में मुझे शामिल कर लेती थी और बताया करती थी कि तुम्हारी सहेली हर साल एक नई गुड़िया और खिलौने वाला किचन सेट ले जाया करती थी। और हर साल उसका भाई खिलौने वाला ट्रेक्टर ले जाने की ज़िद करता था। हर साल उसकी जिद बस इसी एक ही खिलौने की होती थी। उठता मेंला, कम होते लोग.....


अपने शहर और घरों को वापस लौटते वो लोग, वो दुकानें, वो झूले तुम्हें साल भर की यादें देकर चले जाते थे। मगर अब वो यादें मेरी हैं।


शायद मेंरा इतना सौभाग्य नहीं कि गणेशगढ़ का मेंला देख सकूँ। मेंला और तुम्हारी बातें अब स्मृतियों में ही सुरक्षित रहेगीं। वो स्मृतिपटल पर बनी एक काल्पनिक कथा की तरह इन पन्नों में धूल खाया करेंगीं। उस मेंले की यादें, तुम्हारे चेहरे की रौनक, वो झूले, वो छोटी छोटी खुशियाँ, कल इन सब पर शायद किसी और का हक़ होगा।


मगर ये जीवंत स्मृतियाँ मेंरे वज़ूद का हिस्सा थीं और हमेंशा मेंरी ही जागीर रहेंगी।


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