Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Kusum Sharma

Abstract

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Kusum Sharma

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लॉक डाउन

लॉक डाउन

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आज पन्द्रह दिनों से दो अनुभवी आँखे देख रही थीं.. कि सारा काम,खाना, बातचीत,बच्चों के खेल आपस में मिलजुल कर हो रहे थे।


किराना व्यवसायी थे राम बाबू छोटे शहर में; तो नियत समय पर दुकान भी खोलनी ही थी।लेकिन बाद का समय माँ के पास बैठकर ओर बच्चों के साथ खेलकर ही निकलता था।

बिना नौकर ओर बाइयों के चौका भी चल ही रहा था,बल्कि खूब मन से पकवान बना रही थी बहुएँ।


उन अनुभवी आँखों को बस एक ही बात खल रही थी।

काश ! ये लॉक डाउन वाला बन्द दो महीनों पहले हुआ होता; तो दोनो बेटों के परिवार को एक संग खिलखिलाते ओर खाते पीते देखती।


"क्या हुआ माँ सा आप इतनी चुप और एकटक दीवार को क्यों देख रही हो?" बड़ी बहू अचानक ही पूछ बैठी।

"कुछ नहीं बड़ी बहू छोटी के हाथ की पापड़ बड़ी की साग खाने का मन हो रहा था।"बेटे पोतों वाली बड़ी बहू उनके साग की टीस को समझ गई।

"हैलो, हाँ छोटी बहू लो माँ सा से बात करो" और मोबाइल हाथ में थमा दिया।

उधर छोटी मुस्कुराकर कह रही थी.."माँ सा धंधे दुकान अलग हुए हैं हम नही।" 



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