अभियान
अभियान
"आ गई तू, अरे तेरा मुँह लटका क्यों है" खाँसती हुई रामकली ने बेटी से पूछा।
"माँ, तुम्हारी दवाई आज भी नहीं ला पाई" अरे कोई बात नहीं तू दुखी न हो।
"माँ, अब हम ये पन्नी बीनने का काम बंद करके कुछ और देखते हैं, ये सफाई अभियान में अब पन्नियाँ भी नहीं मिलती और वो कचरा मैदान वाला बाबू रोज 10 रुपये अलग से लेता है पन्नी बीनने के।
"बात तो तेरी सही है बिटिया पर मेरा काम भी बीमारी की वजह से छूट गया है। ज्यादा खाँसी के कारण मेमसाहब ने मना कर दिया काम पर आने को।"
"कोई बात नहीं माँ मैं चली जाऊँगी तुम्हारी जगह काम पर" पररर बिटिया तू...बर्तन..झाड़ू।
"तो क्या हुआ माँ काम में कैसी शर्म" चलो अब कुछ खा लो बापू आ गये तो उनका दारू का नाटक शुरू हो जाएगा ।
"हाँ, बेटा" एक ठंडी साँस गहरी सोच के साथ।
"आ गई करमजली बहुत हुआ ये रात में पढ़ना पढ़ाना अब गई तो टाँग तोड़ दूँगा" पिता ने नशे में उठकर मारने की कोशिश की पर असफल रहा।
उपेक्षित नजर पिता पर डालकर उसने माँ को इशारे से बुलाया,
"माँ अभी टीचर ने बताया कि स्वच्छता अभियान में कुछ पढ़े लिखे बच्चों की आवश्यकता है सर्वे में तो मैने अपना नाम लिखवा दिया, लेकिन एक दिक्कत है पैसा महिना पूरा होने पर मिलेगा तब तक कैसे घर चलेगा? चिंता और खुशी दोनो समाई थी श्यामा के स्वर में।
"तू चिंता ना कर बिटिया वो सब में देख लूँगी, वैसे मेरा भी बुलावा आया था, मेमसाब को दूसरी कामवाली नहीं मिली तो मैने उनसे कहा कि मुँह पर कपड़ा बांधकर रखूँगी। और उन्होंने थोड़ी दवाई भी भिजवा दी।" पर माँ बापू!
"देख बिटिया नशे में आदमी सिर्फ चिल्ला सकता है और कुछ नहीं कर सकता" माँ का आश्वस्त स्वर था।
काश माँ पॉलीथिन के साथ नशे का भी कोई सार्थक अभियान चल पाता।
