हिम्मत
हिम्मत
बहुत ऊँची पहाड़ी पर झुग्गियां बना कर निवास करती थी सम्भा।
पति के साथ अक्सर माता दर्शन का डोला भी ले जाती थी...। कई बार आते समय लकड़ियां भर लाती थी, जिससे चूल्हा जलता था।
आज भी वो अपने पति दीनू और साथी महिलाओं के साथ डोला लेकर गई थी।.....आधे रास्ते में ही तेज खाँसी की वजह से रास्ते में रुकना पड़ा।
"अरे तुमने कहा था, ऊपर तक पहुँचा कर आएंगे.. रुक क्यों गए।" डोले में बैठे दम्पत्ति ने कहा ।
"हुजूर, मैं, सांस का मरीज हूँ। आज कुछ ज्यादा तबीयत खराब हो गई। अब आगे न जा पाऊँगा। आप यहीं तक का पैसा दे दें हुजूर।" वह हाथ जोड़कर बोला।
"नहीं, तुमने ऊपर पहुँचाने का वादा किया था। ...अब आधे रास्ते के पैसे नहीं देने वाले हम।" तुनककर आदमी बोला।
"दे दीजिए साहिब, बीमार का पेट काटकर कौन सा धर्म कमा लेंगे।"
दीनू की पत्नी सम्भा का दयनीय भाव मुखरित हुआ।
आसपास के सभी लोगों को उसकी दशा देखकर दया आ गई।... और सभी पैसे देने की गुजारिश करने लगे।.....किन्तु दम्पत्ति ने दूसरा डोला किया और ऊपर चढ़ गए।
अचानक दीनू को खाँसी का तेज दौरा आया और वो वहीं लुढ़क गया।
दोनों आँखों में समुंदर भरकर,....दीनू की पत्नी सम्भा ने आसपास खड़े लोगों की और दया की दृष्टि से देखा।.....लेकिन शायद सभी की आँखों का पानी सिर्फ उस पत्नी की आँख में समा गया था।
सम्भा ने हिम्मत नहीं हारी।.....कंधे पर रखे कपड़े में बेहोश दीनू को लपेटा, लकड़ी और सूखे पत्तों का बिछौना अपने टोकरे में बिछाया पति को लिटाया, और साथी महिलाओं की मदद से सर पर उठा सरकारी चिकित्सालय की और चल पड़ी।
