दिल दिमाग
दिल दिमाग
दिमाग अपने ज्ञान के नशे में मगरूर थाबोले जा रहा था।
आखिर सुनने की कोई सीमा होती है,
बेचारा दिल, दिल की असहाय अवस्था, दिमाग की सक्रियता और शैतानी के आगे शरीर के अन्य अंग बिल्कुल शिथिल अवस्था में आ गये थे।
सभी ने एक साथ दिल से निवेदन किया कि तुम सिर्फ सही सोच और सही दिशा का साथ देकर अपनी सक्रियता बनाये रखो।
दिमाग की दलीलों से अगर संतुष्ट नही तो बस अपना काम करो हताश मत हो।
क्यों कि इस शारीरिक मशीनरी का अहम हिस्सा हो अगर तुम रुक गये तो शरीर की पूरी मशीनरी रुक जाएगी।
दिमाग ने अन्य अंगों की रिक्वेस्ट सुनकर ठहाका लगाया हहहहहहह क्या तुम भी इस दिल के आगे गिड़गिड़ा रहे हो अरे कोई मदद चाहिए तो मुझसे कहो।
दिल ने शांत होकर दिमाग के ठहाकों को सुना लेकिन मुँह बोल बोल पड़ा तुम्हारा गुरुर दुनियाँ चला सकता है लेकिन क्या तुम इस शरीर तंत्र को संचालित कर सकते हो !
अगर दिल न हो तो तुम्हारा औचित्य ही क्या तुम दिल के बिना पूर्ण हो ?
प्रश्न साभिमान था।
देखो बहुत कड़वी बात है लेकिन सच ये कि तुम वास्तविकता के नाम पर लोगों को उलझाते होशायद यही कारण है कि दिल और धड़कन को आदमी सिर्फ जीने की निशानी मानता है। और यहीं से मानवेतर भावनाएं खत्म होकर सिर्फ स्वार्थ का आवरण पहन कर इंसान चल रहा है,बी प्रक्टिकल का नारा भी तुम्हारा ही है न ?
हहहहह अट्टहास कर उठा दिमागअरे मुँह जनता हूँ तुम कड़वी बात ही बोलोगेलेकिन में बताता हूँ सुनो ! मुझसे नीचे इसीलिए हो और में इस शरीर में सबसे ऊपरटॉप पर सबसे ऊँचाऊपरहहहहह।
लेकिन तभी कुछ समय के लिए दिल ने धड़कना बन्द किया, ओर दिमाग धड़ाम से जमीं पर।