Nivish kumar Singh

Abstract

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Nivish kumar Singh

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लोग क्या कहेंगे ?

लोग क्या कहेंगे ?

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उपर लिखे वाक्य को लगभग सभी लोग सोचते हैं या सोचे होंगे, ये ऐसा वाक्य हैं जिसे आप कुछ बुरा करने से पहले सोचे तो आपको बुरा होने से बचाये रखता हैं और यदि आप खुद में खुद को खोजते वक़्त ज्यादा सोचे तो आपको आप से छिन लेता हैं। 

कामयाब इंसान कुछ नया करने के लिए इस वाक्य को सोचते जरूर हैं लेकिन इसपर अधिक ध्यान नही देते, कुछ नया करने में हारने के डर से ज्यादा जीत का जुनून और विश्वाश मन मे होता हैं तभी कोई इंसान नए सोच कि तरफ अपना कदम बढ़ा पाता हैं। 

इस वाक्य को सोचने से वर्बाद और इसपर ध्यान न देने से आवाद उदाहरण यदि आप देखेंगे तो आपके आस पास ही मिल जाएंगे। 

अच्छा ऐसा कभी हुआ की कोई इंसान आपके सामने योगा कर रहा हो और आपको हँसी आई हो या फिर आपको देखकर किसी ने हँसा हो? किसी भी कार्य के लिए। 

मेरे साथ हुआ हैं, मैं योगा करते हुए इंसान को देखकर हँसा हु तब बहुत छोटा था, आप समझ सकते हैं कि मैंने क्यों हँसा क्यकी उस वक़्त मुझे योगा के लाभ के बारे मे कुछ पता नही था।

समाज़ में, आपके आस पास या रिश्तेदारों में ठीक ऐसे ही लोग होते हैं जो आपके चुने हुए नये कदम(कैरियर), नए सोच पर हँसते हैं। 

इससे अपना मनोबल कम करने की जरूरत नही, ऐसे लोग तन से बड़ा जरूर होते हैं लेकिन मन मेरी तरह बच्चा वाला होता हैं जिन्हें उस बात की समझ नही होती जो आप उन्हें बतला रहे। 

आप देखेंगे की लोगों को फिल्म देखना, संगीत सुनना,डांस करना,कविता लिखना पसंद हैं, उससे जुड़े इंसान को वे बहुत प्यार करते हैं लेकिन खुद वैसा बनने से डरते हैं,बनने के लिए रिस्क नही लेना चाहते। इसका केवल और केवल एक ही कारण होता हैं अपने आप पर विश्वाश करके खुद को खुद मे नही खोजना, 

हुनर रहते हुए भी ऐसा मत बनिये की रोज-रोज किसी चौक पर खुद को बेचने के लिए बैठना पड़े। 

जिस समाज़ मे लोग केवल एक राह के राही बन जाए वहा बुद्ध, विवेकानंद, गाँधी, भगत, आज़ाद जैसे नए नए लोग पैदा नही होते, 

इसलिए आप अपने आपको उस हथकरी से आज़ाद करके सोचे जिसमें समाज़ ने आपको बाँध रखा हों।

अब तो देश के प्रधानमंत्री ने भी साफ साफ कह दिया हैं आत्मनिर्भर बनो अर्थार्थ केवल सरकारी रोजगार के भरोसे मत बैठो। 

तो क्या आत्मनिर्भर होने के लिए हम केवल उद्योग के पीछे भागे? 

 नहीं, आपमें जिस चीज के प्रति प्रेम हैं उस ओर ही खुद को ले जाइए अभिनय,संगीत,विज्ञान,उद्योग,साहित्य,योग,संयासी,

राजनीति,शिक्षक इत्यादि। 

आप यकीन मानिये जो आप जानते हैं उसे मन से और खुशी खुशी दिल से करते हैं। 

सबसे जरूरी बात जो आप बनना चाहते हैं उस विषय मे सलाह ऐसे इंसान से ले जो बन चुका हों, उसमें भी ऐसे लोग जिन्हें वहा पहुँच कर भी दाम और नाम भले अधिक न मिला हों लेकिन अपना काम ईमानदारी से करते हों। 

आप ईमानदार शिक्षक के पास जाएँगे तो वह दीन होते हुए भी आपके शिक्षक बनने कि सोच का स्वागत करेंगे, आपके मनोबल को बढ़ाएंगे लेकिन वही आप ऐसे शिक्षक के पास जाते हैं जो रोज रोज स्कूल केवल अपना वेतन उठाने के लिए हाजिरी बनाने जाते हैं तो वो आपको रोकेंगे, आपका मनोबल कम कर देंगे। 

लेकिन आप खुद सोच सकते हैं शिक्षक और शिक्षा के बिना देश कैसा होगा। 

कुछ करने से पहले खुद को समय दीजिये, एकांत मे गहरा ध्यान लगा खुद को खुद में खोजिये और जब खुद को खोज ले फिर कौन क्या कहेगा इसकी परवाह न करे,

अपने आप को कभी किसी चीज में कमजोर न समझे, जिस चीज के लिए खुद को खोजा हैं ईमानदारी पूर्वक उस चीज के लिए अभ्यास निरंतर करते रहे कभी रुके नही, और सदा याद रखे आप में वो बात हैं जो आप बनना चाहते हैं, जो करना चाहते हैं तभी उसे पुरा करने को आप आगे बढ़े हैं। 

कर्म करो फल कि इच्छा मत करो, इसे आप समझिये

काम से काम मिले

काम से दाम मिले

काम से नाम बने। 

काम, दाम, नाम पाने के लिए जरूरी हैं की पहले हम काम करे। 


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