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Nivish kumar Singh

Abstract

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Nivish kumar Singh

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अच्छी गलती कीजिये।

अच्छी गलती कीजिये।

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इंसान हैं आप तो गलती कीजिये, कोई रोके फिर भी गलती कीजिये, अपने काया और दिल से सदा गलती करने कि हिम्मत रखिये, अभी भारत में जो हालात बने हुए हैं इसमें इंसान को इंसानों के लिए गलती करना बहुत जरूरी हैं। 

गलती कर के किसी का सर मत फोडिये, किसी का घर वर्वाद, चोरी या किसी का गला मत काटिये। 

आइये 2020 कि अपनी एक घटना बताता हु जब मेरे रोकने के वाबजूद मेरे दोस्त निर्भय, ने एक गलती की थी। 

15 फरवरी 2020 (पटना), 

इस तारीख को मैं एक अस्पताल मे भर्ती हुआ, सुई लेने के बाद बेड पर लेटा था। मेरे दोस्त मुझे चढ़ाया जाने वाला पानी, दवा, सुई , बेड शीट की सफाई सब चीजों को सही से देख- देख कर मेरे उपयोग के लिए इजाज़त दे रहे थे, मेरा पूरी तरह से ख्याल रख रहे थे, वो नही चाहते थे कि स्टाफ या डॉक्टर के किसी भी लापरवाही से मेरे साथ कोई चूक हों।

एक पल भी मुझे छोड़ के नही हट रहे थे। 

तभी मेरे बेड के बगल मे जो महिला मरीज थी उनकी तबियत अचानक बिगड़ गयी, उन्हें उसी वक़्त सुई और दवा चाहिए था लेकिन अस्पताल का मेडिसिन काउंटर बन्द हो चुका था। वे दूर के किसी गाँव से आये हुए मरीज थे,उनके साथ उनके पति और एक बुढी जो शायद उनकी सास थी, 

उन्हें पटना मे उस अस्पताल के आस पास किसी दूसरे दवा दुकान का पता नही था, ठंड का मौसम उपर से रात के 12 बज रहे थे, उन्हें समझ नही आ रहा था कि इतनी रात को वे दवा कहा से लाये।

उन्हें परेशानी मे देख अस्पताल का स्टाफ उन्हें PMCH के पास से दवा लेकर आने को बोला लेकिन उन्हें वो जगह (PMCH) पता नही थी।

तभी मेरे दोस्त (निर्भय) ने मुझसे पूछा दवा लाने मैं जाऊ इनके साथ, मैने डर के मना कर दिया पता नही ये अंजान आदमी कौंन हैं? कैसा हैं? रोड भी पुरा शांत हो चुका कोई आदमी या गाड़ी नही चल रहा। 

लेकिन मेरे मना करने के वाबजूद मेरे दोस्त उनके साथ पैदल दवा लाने निकल दिये। 

जब काफी देर हुई तो मैं परेशान हो चुका था, पता नही मेरे रोकने के वाबजूद उस इंसान के साथ जाकर निर्भय ने कोई गलती तो नही कर दी।

मेरे मन मे ये सब विचार चल ही रहे थे कि तभी दोनों लोग दवा लेकर वापस लौटे, मरीज महिला को सुई पड़ा तब जाकर उनका दर्द आराम हुआ, उन्होंने निर्भय का बहुत बहुत धनयवाद किया। 

ये देखकर मुझे बहुत खुशी हुई, अंदर से मैं बहुत शर्मिंदा था, तभी मुझे लगा की नही यार इंसानों को इंसान के लिए गलती करने कि हिम्मत करनी चाहिए। 

शायद अब आप समझ गए होंगे, 

मुझे अधिक कहने कि जरूरत नही कि मैं किस तरह की गलती को करने कि बात कर रहा। 

भगत सिंह, बापू गाँधी, स्वामी विवेकानंद, महात्मा बुद्ध, इत्यादि, इन्हें भी किसी इंसान द्वारा रुकने को कहा गया होगा, हालातो को देखकर इनका मन इन्हें भी गलती करने से रोक रहा होगा बार बार यही सलाह दे रहा होगा अपनी जींदगी देखो, अपने लिए अपनी रोटी दाल के बारे मे सोचो दूसरे के बारे मे सोचने से क्या फायदा। 

लेकिन ज़रा आप सोचिये यदि ये लोग किसी इंसान या अपने मन को सुन के रुक गये होते तो क्या होता? 

आज देश मे जरूरत हैं इंसान को इंसानों की, 

किसी इंसान के मदद करने कि जगह हम कोरोना का नाम सुनते ही उससे बहुत दूर भागने लगते हैं जबकि हमे उनके पास होना चाहिए।

(पास होने से मेरा मतलब यह नही कि आप अपनी सुरक्षा कि परवाह न करे, मदद करना हैं)। 

आप ऑक्सीजन के लिए दान कर रहे अच्छी बात हैं, लेकिन आप खुद सोचिये कि कितने दिनों तक सिलिंडर (Oxygen cylinder) वाले ऑक्सीजन से हम उन्हें या खुद को जीवित रख पाएंगे। इसलिए यहाँ भी मिलकर गलती करने की जरूरत हैं अधिक से अधिक पेड़ लगाये,

 पेड़ लगाना गलत बात नही लेकिन कुछ लोग जिन्हें केवल अपने जीवन कि चिंता होती हैं धरती कि नही वे आप पर बहुत तरीके के बात करते हुए हँसेंगे उनके इस मूर्खता को माफ करते हुए आप पेड़ लगाए क्यकी आपका लगाया हुआ पेड़ हि कल उस हँसने वाले इंसान को बचाने वाला हैं। 

कोई आपको सुने न सुने, 

देखे या न देखे, आप करते रहो अपना काम। 

देखना हैं जिसे वो हर पल आपको देख रहा। 

नीचे बंगाली गीत “एकला चलो रे” का हिन्दी अनुवाद हैं जिसे रबीन्द्रनाथ टैगोर जी ने लिखा था।

तेरी आवाज़ पे कोई ना आये तो फिर चल अकेला रे

फिर चल अकेला चल अकेला चल अकेला चल अकेला रे


यदि कोई भी ना बोले ओरे ओ रे ओ अभागे कोई भी ना बोले

यदि सभी मुख मोड़ रहे सब डरा करे

तब डरे बिना ओ तू मुक्तकंठ अपनी बात बोल अकेला रे

ओ तू मुक्तकंठ अपनी बात बोल अकेला रेतेरी आवाज़ पे कोई ना आये तो फिर चल अकेला रे


यदि लौट सब चले ओरे ओ रे ओ अभागे लौट सब चले

यदि रात गहरी चलती कोई गौर ना करे

तब पथ के कांटे ओ तू लहू लोहित चरण तल चल अकेला रे


तेरी आवाज़ पे कोई ना आये तो फिर चल अकेला रे


यदि दिया ना जले ओरे ओ रे ओ अभागे दिया ना जले

यदि बदरी आंधी रात में द्वार बंद सब करे

तब वज्र शिखा से तू ह्रदय पंजर जला और जल अकेला रे

ओ तू हृदय पंजर चला और जल अकेला रे


तेरी आवाज़ पे कोई ना आये तो फिर चल अकेला रे

फिर चल अकेला चल अकेला चल अकेला चल अकेला रे

ओ तू चल अकेला चल अकेला चल अकेला चल अकेला रे।


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