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Shafali Gupta

Abstract

3.5  

Shafali Gupta

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लम्हे ज़िन्दगी के

लम्हे ज़िन्दगी के

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लम्हे ज़िन्दगी के एक याद बनकर रह जाते है।दोस्तो! कुछ अच्छे , कुछ बुरे एक दास्तान बनकर रह जाते है। एक बार लम्हे बीत जाते है तो लौटकर नहीं आते अच्छे लम्हे याद आते है तो हम हस लेते है । बुरे लम्हे याद आते है तो हम रो देते है लेकिन बुरे लम्हे को तो कोई याद नहीं करना चाहता अच्छे लम्हे को सब अपनी याद की पोटली में संभालखर रखते हैं। मेरी ज़िन्दगी के सुनहरे लम्हों में एक लम्हा ऐसा है जो मुझे कभी नहीं भूलता । मेरे स्कूल का पहला दिन जब मैं पहली बार स्कूल गई थी अपने पापा का हाथ थामे रोते हुए चलती जा रही थी और पापा का समझाना की बेटा यह ज़िन्दगी की शुर

ुआत है । शुरुआत ही रोने से करोगी तो सिखोगी कैसे? केहने को तो मै रो रही थी आप सोच रहे होंगे कि यह सुनहरा लम्हा कैसे हुआ । दोस्तो!मेरे पापा का साथ मेरे लिए सुनहरा पल से कम नहीं था जो आज भी मुझे याद है वैसे तो ज़िन्दगी में बहुत से अच्छे- बुरे लम्हे होते है लेकिन कुछ लम्हे ऐसे होते है जो भूलाने से भी नहीं भूलते। कई बार बुरे लम्हे ऐसे भी होते है जो आपकी आंखों के सामने से हटते नहीं है जैसे मेरे पापा का मुझे छोड़कर चले जाना। मेरी ज़िन्दगी का सबसे बुरा लम्हा है। मेरी ज़िन्दगी के दो ही लम्हे है वो भी अपने पापा के साथ जुड़े हुए एक अच्छा और एक बुरा।


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