पहले की समय की दिवाली
पहले की समय की दिवाली
नमस्ते!दोस्तों मैं आज दिवाली की सफाई करते हुए ये सोच रही थी की पहले की दिवाली और अब की दिवाली मैं क्या फर्क हैं?आपको फर्क लगता है? मुझे तो लगता हैं? पहले की दिवाली बहुत मज़ेदार होती थी। मुझे अपने बचपन की दिवाली आज भी बहुत याद आती है। वैसे तो कहतें हैं कि दिवाली दीपों की पंक्तियों का त्योहार हैं लेकिन आजकल तो ऐसा लगता है कि पँक्ति मैं पहले कौन आएगा उसका त्योहार है कि मेरा घर अच्छा होना चाहिए,हम जो गिफ्ट दे रहे हैं वो सबसे अच्छे होने चाहिए कहीं हम सबसे पीछे ना रहे जाये। और हमारे गिफ्ट सबसे अच्छे होने चाहिए। जेब में पैसे हो ना हो दिवाली पर शान नहीं जानी चाहिए । श्री राम जी कहते थे कि "प्राण जाए पर वचन ना जाए "। आजकल का इन्सान कहता है कि जान जाये तो जायेपर शान ना जाये। पहले दिवाली में एक अपनापन होता था कुछ सप्ताह पहले ही घर पर पकवान बनने लग जाते थे।सब घर की औरते मिल झुल्कर काम करती थी घर की सफाई भी मिल झुल्कर की
जाती थी। जीतने हारने की दौर न्ही होती थी सब काम प्यार से होता था हारने या जीतने के लिए नही। पकवान तो आजकल भी बंटे हैं लेकिन दुकाअनो से खरीदते भी हैं ।
ये दिखाने के लिए की हमने महंगी मिठाई ली है इससे कम तो हम लेते ही नहीं है।पहले की मिठाई मै रिश्तो की मिठास होती थी अब की दिवाली की मिठाई मे रिश्तो की मिठास नहीं होती है। पहले एक बड़े परिवार दिवाली की पूजा करने का अपना ही मज़ा आता था बच्चे पठाके जलाकर खूब मज़ा मस्ती करते थे। लेकिन आज के समय में तो प्रदूशंन ने तो बच्चों से ये हक भी छीन लिया। कई सम्मज़ के लोगो ने दीवाली के त्योहार को मनाने का एक अलग तरीका अपना रखा हैं। जुऑ खेलने और शराब पीने का। हाय!! रे मेरी नये जमाने की दुनिया के त्योहार मनाने का तरीका बहुत गलत है। मैं इन लोगो से सहमत नही हो।
आप हैं? दीवाली का त्योहार मिलने जुलने का त्योहार है नाकी एक दूसरे को धकका मार कर अपनी शान दिखाने का त्योहार है।