बचपन से पचपन तक का सफर
बचपन से पचपन तक का सफर
बचपन किसे अच्छा नहीं लगता? मुझे तो मेरा बचपन बहुत प्यारा लगता था आज भी मुझे मेरा बचपन याद है बचपन में किसी चीज़ की फिकर नहीं
होती थी ना पैसे की ना खाने पीने की। फिकर होती थी तो बस ये की शरारत कैसे करें शाम को पार्क में खेलने जाना और मम्मी का ये कहना दूध पीकर जाओ और जल्दी आना। और देर से आने पर मम्मी की डांट खाना ये सब बचपन में ही क्यूँ होता था अब तो कोई डाँटने वाला ही नहीं। दीवाली का इंतज़ार करना और पापा से जिद करके बहुत सारे पटाके, कपड़े उलटी सीधे चीजे खरीद के लाना ये सब अब कहाँ रहा। घर के बाहर कदम निकाला और स्कूल में रखना जहाँ दुनिया ही अलग थी। जहाँ मां बाप नहीं थे, नये नये लोग और हमारे जैसे ही बच्चे थे मुझे आज भी अपने स्कूल का पहला दिन याद है की जब मेरे पापा मुझे स्कूल छोड़ने गए थे और मैं रो रो रोकर कह रही थी की मुझे स्कूल नहीं जाना। फिर पापा बोले बेटा मैं जल्दी ही लेने आऊंगा और वो मुझे लेने भी आये थे रोज छोड़ते और जल्दी लेने आते ऐसे मैं उनके सहारे स्कूल में बैठना सिख गई। जिन्दगी का पहला कदम जो मैंने अपने पापा के सहारे स्कूल में रखा। जिन्दगी का दुसरा कदम रखा अपने कॉलेज में दाखिला। पहली बार कॉलेज जाने पर वो ही टेंशन दुबारा की कॉलेज में क्या होगा स्कूल में तो पापा जल्दी लेने आते थे यहाँ कॉलेज में कौन आएगा?
कॉलेज का पहला दिन और फिर से पापा ने मेरा हाथ थामा और मुझे बस स्टॉप तक ले गए और बस में बिठा दिया बोले घबराओ मत हिम्मत से आगे बढ़ो इसी लाइन के सहारे मैंने दुसरा कदम कॉलेज के तरफ बढ़ाया और वहाँ&n
bsp;धीरे-धीरे नये दोस्त बने और हम वहाँ खुब मस्ती करने लगे कॉलेज के दिन मुझे आज भी याद है। किसी ने सच ही कहा है कि जब स्कूल में होते है तो जब कॉलेज जाने की इच्छा होती है और कॉलेज में आते है तो स्कूल के दिन याद आते है की स्कूल ही अच्छा था कॉलेज में तो कोई रोक टोक ही नहीं है फिर मेरी जिन्दगी में एक और बदलाव आया मैंने अपने करियर की शुरुआत करने के लिए अपना कदम बढ़ाया जिसमें मेरे पापा फिर मेरे साथ आये और फिर उन्होंने मेरा हाथ थामा और मुझे इंटरव्यू पर ले जाने लगे उनकी हिम्मत देने की वजह से मुझे एक बहुत अच्छी नौकरी मिली स्कूल में । फिर एक बार मुझे डर लगा की अब क्या होगा फिर वो बोले हर चीज़ का सामना हिम्मत से करना चाहिए। हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती और हार के बाद ही जीत होती है। हार हमें ही जिन्दगी के अनुभव सिखाती है ये सीख मुझे आज भी याद है और इसी के सहारे मैंने अपने स्कूल की नौकरी की शुरुआत की कुछ समय बाद जिन्दगी ने करवट ली और मेरा अपने घर से जाने का समय आ गया और मेरी शादी हो गई। फिर एक बार मैं घबराई की किसी और के घर में जाने के बाद मेरा क्या होगा। फिर मेरे पापा मेरी हिम्मत बढ़ाने आये और बोले तेरे पापा अभी भी तेरे साथ है उसके बाद मैं एक नये घर में आई एक डर के साथ। बचपन से यहाँ तक का सफर मैंने अपने पापा की सीख के सहारे तय किया । लेकिन मैं अकेली मेरे पापा मेरे सहारे अब इस दुनिया में नहीं रहे । एक बार फिर मेरे जिन्दगी ने करवट ली लेकिन इस बार मेरा हाथ थामने के लिए मेरे पापा नहीं है। मैं अकेली बस अकेली।