लक्ष्य
लक्ष्य


पांडव और कौरव राजकुमारों को गुरु द्रोणाचार्य धनुर्विद्या का प्रशिक्षण दे रहे हैं।
सभी गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।
गुरुकुल हमारी प्राचीन शिक्षा पद्धति का अप्रतिम उदाहरण है। यहां छात्र जीवन के दौरान गुरु अपने शिष्यों को - सबके साथ समता का व्यवहार करने, शिक्षा के साथ शारीरिक श्रम व आत्मनिर्भर बनाने के नैसर्गिक गुणों का सूत्रपात करते हैं।
हमारे आर्ष ग्रंथो - रामायण व महाभारत काल में इस गुरुकुल प्रणाली द्वारा ही राज परिवार के सदस्यों को शिक्षा दी जाती थी।
गुरु द्रोणाचार्य के समक्ष सारे शिष्य मौजूद हैं।
वे एक - एक कर सामने के वृक्ष पर बैठी चिडिया पर निशाना लगाना सिखा रहे हैं।
वे हर शिष्य से प्रश्न करते हैं कि ' तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है ? '
कोई कहता है - सामने वृक्ष पर चिडिया दिखाई दे रही है।
कोई कहता है 'वृ
क्ष और चिडिया दिखाई देती है। '
फिर उन्होंने यही प्रश्न अर्जुन से किया।
अर्जुन ने कहा ' गुरुजी मुझे वृक्ष पर बैठी चिडिया की आख दिखाई देती है और इसके अलावा मैं और कुछ नहीं देखता हूँ। जिस पर मुझे निशाना लगाना है।'
गुरु द्रोणाचार्य, इस उत्तर से बहुत खुश हुए और उन्होंने सभी को यह समझाया कि ' अपने लक्ष्य पर हमारी नजर होनी चाहिए बाकी सारी चीज गौण है। '
यानि हर छात्र को एकाग्र चित्त से अपने पाठ्यक्रम पर ध्यान केंद्रित करने से ही कोई भी छात्र परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकता है।
कहानी के संबंध में 50 शब्द-
लक्ष्य प्राप्ति में हमारी पैनी नजर, एकाग्रता, लगन व उत्साह जैसे गुणों का होना आवश्यक होता है।
यदि मन में कोई दुविधा, भ्रम व असमंजस की स्थिति बनी हुई हो तो लक्ष्य प्राप्ति में हमसे चूक हो सकती है। यही इस कथा का मूल तत्व हैं।