Gajanan Pandey

Drama

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Gajanan Pandey

Drama

कण्णगी

कण्णगी

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दक्षिण भारत के चोल वंश की राजधानी कावेरीपट्टण ( यह नाम इसलिए पडा क्योंकि इस नगर के निकट गोदावरी नदी बहती है )।

उस नगर के व्यापारी मानायगन की पुत्री थी - कण्णगी। इसी नगर के एक धनिक व्यापारी - माचात्तुवान का एक लड़का, जिसका नाम कोवलन था।

शुभ मुहूर्त में उन दोनों का विवाह कर दिया गया। उनके विवाह में चोलराजा द्वारा भी उन्हें बहुमूल्य उपहार दिये गये।सुखपूर्वक उनका वैवाहिक जीवन बीत रहा था।

इस नगर में हर साल इन्द्रोत्सव मनाने की परम्परा थी। 28 दिनों तक चलने वाले इस उत्सव में नृत्य- गीत आदि के कार्यक्रम भी होते थे।

इस उत्सव में देश के कोने-कोने से कलाकार व नर्तकों ने अपनी कला का प्रदर्शन किया।

इस दौरान राज्य के प्रमुख नृत्य- भरतनाट्यम को ' माधवी नामक कुशल नृत्यांगना द्वारा प्रस्तुत किया गया था।

रंगमंदिर में नृत्य कार्यक्रम के प्रदर्शन की व्यवस्था की गई चोलराजा स्वयं इस समारोह में उपस्थित थे।

राजा ने नृत्य के उपरांत माधवी को उपहार स्वरूप 'माणिक हार ' भेंट किया।

माधवी ने इस हार को वरमाला के रूप में सामने रखकर अपनी दासी से नगर के लोगों में यह प्रस्ताव रखने का आदेश दिया कि जो कोई भी इस रत्नजडित हार के मूल्य की दुगुनी कीमत देकर इसे खरीद लेगा - माधवी उससे विवाह कर लेगी।

घोषणा के अनुसार कोवलन ने उस हार के मूल्य की दुगुनी कीमत देकर उसे खरीद लिया विवाह के बाद माधवी व कोवलन साथ रहने लगे।वह माधवी के प्रेम में कण्णगी को भुला बैठा।

इधर कण्णगी पति वियोग में दुखी रहने लगी परंतु उसने कोवलन पर कोई दोषारोपण नहीं किया।

कुछ समय के बाद माधवी को कन्या रत्न की प्राप्ति हुई उसका नाम- मणिमेखला रखा गया।

एक समय इन्द्रोत्सव में कोवलन ने माधवी के हाथों से वीणा लेकर- एक सुंदर स्त्री के रूप में कावेरी नदी पर गीत सुनाया और माधवी ने चोलराज पर गीत प्रस्तुत किया।

कोवलन ने माधवी द्वारा प्रस्तुत गीत को लेकर शंका व भ्रम के वशीभूत होकर माधवी को त्याग दिया।

इधर कण्णगी जो पति वियोग में दिन काट रही थी- उसने एक बुरा स्वप्न देखा कि उसके स्वामी कोवलन पर चोरी का झूठा इल्जाम लगाकर राजा द्वारा उसे मृत्यु दंड दिया गया।

और इस अन्यायपूर्ण कृत्य के लिए कण्णगी ने शाप देकर नगर को भस्म कर दिया।

यह अशुभ स्वप्न से कण्णगी को बहुत दुख हुआ और वह कोवलन के लिए चिंता में पड गयी।

अचानक एक दिन अकस्मात कोवलन उसे दिखाई दिया।

कोवलन को कण्णगी की दुर्दशा देखकर बहुत दुख हुआ और वह पश्चाताप करने लगा कि वह एक धोखेबाज स्त्री के फेर में पडकर उसने कण्णगी को छोड़ दिया, कण्णगी व कोवलन फिर साथ हो गये।कण्णगी ने कोवलन को उसके पास रखा ' नुपूर ' दिया ताकि वह उसे बेचकर अपने भावी जीवन को सुव्यवस्थित कर सके।

कोवलन ने उस नुपूर को एक सुनार को उसका मूल्य जानने के लिए दिखाया।उसे देखकर सुनार के मन में लोभ आ गया और उसने राजा को रानी के चोरी हुए गहने का आरोप कोवलन पर लगाकर उसकी शिकायत की। जबकि उस हार की चोरी उस सुनार ने ही की थी।

राजा ने इस अपराध के लिए बिना सत्य का पता लगाये कोवलन को मृत्यु दंड देने का आदेश दे दिया।

निरपराध कोवलन को मृत्यु दंड देने के बाद क्रुद्ध होकर कण्णगी ने राजा के सामने जाकर चोरी का असली राज खोला कि आपने सुनार की झूठी बात को सच मान लिया और मेरे निर्दोष पति को मृत्यु दंड दिया है।इस प्रकार आपने यह अन्याय पूर्ण कार्य किया है।

राजा को जब सच मालूम हुआ तो वह बहुत लज्जित हुआ कि मेरे हाथों अन्याय हुआ है और इस तीव्र दुख में राजा ने अपना प्राण त्याग दिया और कण्णगी ने ' नगर को भस्म करने का शाप दिया।नगर जल उठा और कण्णगी ने अपने पति के पीछे देह त्याग दिया।

कहानी के संबंध में 50 शब्द-

शिक्षा- इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने अधिकारों का भली भाँति व सावधानीपूर्वक उपयोग करना चाहिए ताकि किसी के साथ अन्याय न होने पाये।


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