हम कितने छोटे हैं ?
हम कितने छोटे हैं ?


विनायक ने,सपने में भी सोचा नहीं था कि ऐसा दिन भी आयेगा कि' घर में कैद हो जाना होगा। '
वह विनायक,जो अक्सर पैदल चलना इसलिए पसंद करता था कि यह भी,अपने को स्वस्थ रखने का तरीका है।
कभी घर के काम से तो कभी अपनी चिट्ठी पोस्ट करने/मेल करने या सभा- गोष्ठियों में भाग लेने में मशगूल/व्यस्त रहा करता था।
पर अब जैसे ' जिंदगी थम सी गयी है।'सडक पर सन्नाटा पसरा है। घर पर बच्चे- पत्नी व ' वर्क फ्राम होम 'वाले अपने काम में लगे हैं।
विनायक ने भी आज प्रातः घर की साफ- सफाई में लगने का फैसला किया ।अलमारी में रखी चीजों को बडे करीने से लगाया। दिल में संतोष का भाव पैदा हुआ। ' चलो यह काम तो अच्छे से निपट गया। '
नहा- धोकर,भगवान की पूजा की ।भोजनादि के बाद,अपने पसंद के काम पर पढाई व लेखन की मेज पर आ बैठा।
21 दिन का लाकडाउन है। इसलिए विनायक ने पढने के लिए कुछ पुस्तकें अपनी लाइब्रेरी से निकाल रखी है
सामने बलराम अग्रवाल द्वारा संपादित पुस्तक- " सोजे वतन व अन्य जब्तशुदा कहानियां (लेखक प्रेमचंद)
रखी है ।
प्रस्तावना में संपादक ने प्रेमचंद के पुत्र अमृतराय द्वारा लिखित ' प्रेमचंद- कलम का सिपाही ' तथा हंसराज रहबर की पुस्तक ' प्रेमचंद- जीवन,कला व कृतित्व ' के आधार पर प्रेमचंद का जीवन परिचय देते हुए बताया कि धनपतराय श्रीवास्तव (सरकारी नौकरी में) से नवाबराय(उर्दू अफसाना निगार) और फिर प्रेमचंद तक का सफर कैसे अंजाम तक पहुंचा ?
चूंकि ' धनपत' नाम उनके पिता ने दिया,' नवाब ' उनके ताऊ ने व ' प्रेमचंद,' उर्दू 'जमाना 'के संपादक मुंशी दयानरायन निगम ने दिया।
विनायक विचार करता है कि आज के हालात प्रकृति व समय का खेल ही तो है ।' समय बडा बलवान है।' सब बेबस हैं -इसके आगे ।
वह इंसान जो अपने को ही सब कुछ समझ बैठा है । वह अपने धन, बल व यश - शोहरत के दम पर सब खरीद सकता है ।
अपने भीतर के अहंकार के वशीभूत इंसान को अपने - आगे कुछ भी दिखाई नहीं देता है।
जबकि आज की परिस्थिति ने उसे दिखाया है कि
'हम कितने छोटे हैं?'
यह वक्त है- अपने को समझने का ।अपनी फितरत को भुलाकर प्रकृति के साथ जुडने का है ।
' मैं ' नहीं 'हम' - बनने में ही भलाई है।
सब उस दाता के हाथ है ।हम तो मात्र रक्षक हैं। हमारे हाथ बस इतना है कि ' हम उस जगतनियंता के बताये हुए मार्ग पर चलें ।उन नियमों का पालन करें,जो मानवतावादी है। यही जीवन जीने का सच्चा मार्ग है।'