अपनों का संग- होली का रंग
अपनों का संग- होली का रंग
आज कुमुद की सहेली,रमा का विवाह होने जा रहा है। वह रमा, जिसे उसके शिक्षक मनोहर जी ने पढाया और आज उसके विवाह का दिन है।
मनोहर और रमा की सारी सहेलियां। गांव के मुखिया,अन्य पडोसी,घर पर इकट्ठे हो गये हैं।
पास के गाँव से,बारात आने को है।राजेश,एक पढा - लिखा नौजवान है और बैंक में नौकरी करता है।
रमा के पिता रामधन इस रिश्ते से खुश हैं। रमा की मा,अपनी लाडली बेटी रमा की विदाई की वेला पर, आंसुओ को रोक नहीं पाती है।
उसके दिल में,रमा की ससुराल के परिवार की संपन्नता व राजेश के नौकरी पर होने से,वह जहां खुश है। वहीं रह - रह के उसे रोना आता है कि रमा की विदाई के बाद, घर तो सूना हो जाएगा। अब कौन हैं,यहाँ हम पति - पत्नी का ध्यान रखनेवाला।
फिर भी,रमा की मा आशा ने दिल पर पत्थर रख लिया। यह सोचकर कि ' लड़कियों को एक न एक दिन मायके को छोड़कर अपनी ससुराल जाना होता है। '
बडी धूमधाम से रमा का विवाह संपन्न हो गया।
रमा अपनी ससुराल चली गई। रमा ने, शादी से पूर्व,राजेश को एक बार देखा था। जब वह उसे देखने आया था।उस समय दोनों ने आपस में कुछ बातें की थी।जैसे तुम्हारी पढाई कहां तक हुई है,नाम व रुचि आदि क्या हैं ?
इस प्रथम परिचय की यादें लिए रमा, सुहाग की सेज पर,राजेश का इंतजार कर रही थी।
घर को, विवाह के लिए खूब सजाया और रंग- रोगन किया गया था। रमा का कमरा तो खूब आकर्षक व सुख - सुविधाओं से लेश था।
राजेश ने कमरे में कदम रखा तो रमा की दिल की धड़कनें तेज हो गई। प्रथम मिलन की रात्रि में,सहज संकोचवश रमा ने अपने प्रिय को,अपने को सौंप दिया।
राजेश,पत्नी के रूप में रमा को पाकर बहुत खुश था।
रमा ने भी अपने को घर की जरूरतों के हिसाब से ढाल लिया था।उनमें सबके लिए भोजन आदि का प्रबंध करना,पूजा - पाठ, सास - ससुर को रामायण आदि पढकर सुनाना यानि उनकी सेवा- टहल में उससे कोई चूक न होती।
उसकी सास के लिए तो वह बेटी से बढकर थी। ससुर भी उसकी बढाई करते नहीं थकते।
दिन - महीने कैसे बीत गये पता न चला और होली का त्यौहार आने को है।रमा के मन - शरीर में सिहरन दौड़ पडी।
उसने अपने पति के आगे बड़े प्यार से प्रस्ताव रखा।' देख ते हो जी! होली 9 मार्च को है।और मैं अपने मायके में यह होली अपनों के साथ मनाना चाहती हूँ।
चलो न! हम और आप मेरे गांव चलते हैं।'
राजेश ने बहाना बनाते हुए कहा, ' इस बार तो जाना नहीं हो पाएगा।दफ्तर में काफी काम है।छुट्टी शायद ही मिल पाए।'
रमा मायूस हो गई।तब राजेश ने उसे अपनी बाहों में भर लिया और कहने लगा, ' अरे तुम दुखी हो गयीं,यह तो मैं मजाक कर रहा था।'
रमा इस बात पर चहकने लगी।चलो जाओ, तुम बड़े वो हो।'
रमा बेचैनी से होली पर अपने गांव जाने का सपना देखने लगी।
आखिर वह दिन आ ही गया। वे दोनों आज होली पे, अपने गांव में थे।
घर में सभी व खासकर राजेश की छोटी साली रागिनी तो अपने जीजू के साथ होली खेलने के लिए बेताब थी।
राजेश जब घर पहुंचा तो रागिनी ने शरारत में उसे मिर्च मिला शरबत पेश किया। राजेश को प्यास लगी थी, उसने सहज रूप शरबत का गिलास हाथों में ले लिया। मुंह से लगाते ही वह शी - शी की आवाज़ निकालने लगा। सास - ससुर ने रागिनी को डांट लगायी, 'क्या ऐसे भी मजाक किया जाता है ?' और सास यमुना देवी ने दौड़कर, मिठाई की तश्तरी उसे थमा दी।' लो थोड़ी मिठाई खा लो, मुंह का तीखापन कम हो जाएगा।और राजेश ने,फौरन दो - तीन मिठाई पेट में उतार ली।
कल रंग पंचमी का त्यौहार है। फिर राजेश ने अपनी ससुराल में पहली होली पर, अपनी साली व रमा को रंगों से सराबोर कर दिया। खूब मस्ती व शरारत से पूर्ण इस त्यौहार ने 'राजेश व रमा को एक -दूसरे के करीब ला दिया। प्यार की अद्भुत चमक उन दोनों की आंखों में देखी जा सकती थी।