लघुकथा-गुल्लक

लघुकथा-गुल्लक

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दिसम्बर की सर्द शाम में उस दिन 6 साल का रोहन घर आते ही अपनी घर नुमा गुल्लक को खोल कर बैठ गया,और पैसे गिनने लगा,उसकी मम्मी रेखा जब कमरे मे आयीं तो देखा कि वो स्कूल से घर आने के बाद कपड़े बदलने की वजह गुल्लक के पैसे गिन रहा है तो वो समझ गयीं कि जरूर कोई बात है,उनने प्यार से पूछा,"

मेरे राजा बेटे को कुछ चाहिए क्या,क्यों आते ही गुल्लक के पैसे निकालने लगे बेटा आप,?"

बड़ी मासुमियत से रोहन ने जवाब दिया,"मम्मा कितनी ठंड है न,और वो अपनी गली में जो काला डॉगी रहता है न, वो आज ठंड के मारे कांप रहा था तो मैंने सोचा कि उसके लिए स्वेटर लाऊंगा बाज़ार से,आप चलोगे न मेरे साथ?"

रेखा ने स्नेह से अपने बेटे को बाहों में भर लिया, उसे समझ आ गया था कि पैसों की गुल्लक भले ही खाली हो, मेरे बेटे के मन में मानवता की गुल्लक हमेशा ऐसे ही भरी रहेगी।


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