आस्था

आस्था

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अपने होश को खोते खोते रीतिका ने फिर वही बात सुनी अपनी सासु माँ के मुख से"इतना समझाती थी कि अरे भाई भगवान को खुश रखो,पूजा पाठ करो,"सुनते सुनते वो तो बेहोश हो गयी पर सासु माँ का कहना जारी रहा,पर न तो बहू को सुनना है न ही बेटे को,बस 2 मिनट भगवान का ध्यान कर लिया बस हाथ जोड़ कर और इन्हें लगता है कि बस हो गए भगवान खुश,अरे ऐसे कहीं भगवान खुश होते हैं,अब हो गयी न गड़बड़

डॉक्टर ने साफ साफ कहा है कि केस जटिल हो गया है",,हे भगवान अब क्या होगा,,कहती कहती बिलख पड़ीं रीतिका की सास रमा देवी,उनकी चिंता जायज थी,,परेशानी में व्याकुल होकर उनके मुंह से सब कटु ही निकल रहा था,,जब भी कहती थी पूजा पाठ करो हमेशा कह देती थी कि माँ कुछ नहीं होता पूजा पाठ से ,ईश्वर में "आस्था"होनी चाहिए बस,देखना आप ईश्वर हमारा सब अच्छा ही करेंगे।

अब तो अंकुर भी घबराने लगा था अपनी माँ की बातें सुन सुन कर,,क्योंकि डॉक्टर ने साफ साफ कहा था कि premature labor pain हैं,हो सकता है हम माँ या बच्चे में से किसी एक को ही बचा पाएं,,

खेर आपरेशन शुरू हो चुका था,,रमादेवी जो खुद असहाय थीं,जिनकी खुद की देखवाल बहू बेटे और नौकर करते थे,आज मन ही मन ईश्वर से निरन्तर प्रार्थना कर रही थीं,,अपनी बहू के ही अंदाज़ में बिना कोई मूरत सामने ,बिना कोई दिया जलाये।।

आखिरकार ऑपेरशन खत्म हुआ,

नर्स ने एक स्वस्थ बच्चा उनकी गोद मे थमाया और डॉक्टर आ कर बोले कि ये चमत्कार ही था जो इतने कंप्लीकेशन्स के बाद भी आपकी बहु और पोता दोनों सुरक्षित हैं।।

उन्होंने तुरंत सजल आँखों से मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद कहा,उनके कानों में रीतिका के वही शब्द गूंज रहे थे,

अरे माँ भगवान कभी नहीं कहते पूजा पाठ करने को,बस उनमे आस्था होनी चाहिए,देखना हमारे साथ सब अच्छा होगा,।।

     


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