AMIT SAGAR

Tragedy Inspirational

4.3  

AMIT SAGAR

Tragedy Inspirational

लेडिस टेलर

लेडिस टेलर

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बेटियाँ जितनी माँ को प्यारी होती हैं, उतनी ही बाप को भी प्यारी होती है। हर बाप की यही ख़्वाहिश होती है कि उसकी बेटी का बचपन अच्छे से गुजरे, उसकी शादी एक अच्छे परिवार में हो, और शादी के बाद उसे कोई कष्ट ना हो। पर हर बेटी की किस्मत लक्ष्मी, पार्वती और रुकमनी जैसी नहीं होती जिन्हे हर तरह की सुख सुविधा तो थी ही साथ ही वो पति की भी अति प्रिय थीं। अपितु कुछ की किस्मत सीता द्रोपदी और सावित्री जैसी भी होती है, जिन्हे पति तो प्रिय मिलते हैं पर किस्मत उनके साथ ऐसे दाँव पेंच खेलती है कि बेचारी दूखों के भवर में फँसकर रह जाती हैं। कल का सच आज कहानी बन चुका है, और आज का सच कल कहानी बन जायेगा। कहानियों के प्रकार और रुपरेखा वही रहती है बस पात्र बदल जाते हैं, मतलब कल की सीता आज की अनिता हो सकती है कल की सावित्री आज की गायत्री भी हो सकती है। तो चलिये इस कल आज और कल के किस्से को यहीं रोककर बढ़ते है कहनी की ओर - 


वंशिका नाम की लड़की जो उन्नीसवे साल में कदम रख चुकी है। वंशिका बहुत हल्के (गरीब ) परिवार से ताल्लुख रखती है। बहुत छोटी छोटी इच्छाओ के साथ जीवन को गुजारने वाली वंशिका के बाप को बेटी की शादी की चिन्ता खाये जा रही है। पर वंशिका अभी शादी नहीं करना चाहती थी। वो कुछ सीखना चाहती है और दुनियादारी को समझना चाहती है। बाप की सोच आज के युग से मेल नहीं खाती थी यही वजह रही कि बाप ने दसवी के बाद बेटी को कॉलिज तक ना जाने दिया और‌ घर के चुल्हे चौके में‌ उलझाकर रख दिया था। पर वंशिका की तमन्ना थी कि वो कुछ ऐसा सीखे जो शादी के बाद उसके लिये मददगार हो, क्योंकि वो सारी जिन्दगी पति पर ही निर्भर नहीं रहना चाहती थी, और यह आज के हिसाब से कुछ गलत भी नहीं है । पर बाप की सोच के आगे बेटी की ख़्वाहिशें रुंधती नजर आ रही थीं । 


वंशिका अपने पिता से नर्म आवाज़ में - पापा मैं ब्यूटी पार्लर का काम सीखना चाहती हूँ। दो गली छोड़कर ही एक ब्यूटी पार्लर है। मोहल्ले की कई लड़कियाँ वहाँ सीखने जाती है, अगर आप कहें तो क्या मैं भी कल से जाना शुरू कर दूँ। 


बाप बहुत हल्की गुस्से वाली आवाज़ में - नहीं कोई जरुरत नहीं है ब्यूटी पार्लर सीखने की, मैं जानता हूँ वो क्या सीखने जाती है। इन ब्यूटी पार्लर वालियों के औढ़वे पहनावे मुझे नहीं भाते, और ना ही उनके चाल चलन मुझे अच्छे लगते हैं । 


वंशिका अपने मन को मारकर रह जाती है, आशा निराश में‌ बदल जाती है । छोटी छोटी बातों पर बच्चे माँ बाप से विद्रोह करते हैं , पर वंशिका उनमें से ना थी । उसके लियें तो बाप की आज्ञा ही सर्वोपरी है । पर तमन्ना अब भी कुछ कर गुजरने की थी । वंशिका के घर के सामने ही एक लेडीस टेलर्स थी , जो कि हमेशा सिलाई में ही व्यस्त रहती थी । उसकी उम्र पच्चीस वर्ष थी पर उससे दौगुनी उम्र की औरतें भी उसको दीदी दीदी कहकर पुकारती थी। वंशिका को उसका आचरण बहुत भाता था। वंशिका के मन में‌ लेडिस टेलर बनने की अब नई अभिलाषा की उपज हो चुकी थी, पर उसके लियें भी बाप की आज्ञा लेना जरूरी है। पर इस बार वंशिका बाप की जगह माँ से अनुरोध करती है।


वंशिका माँ से - माँ मुझे सिलाई सीखनी है।


माँ - सिलाई का क्या सीखना है, फटे पुराने कपड़े तो सिल ही लेती है, और क्या सीखेगी। 

बहुत छोटी सी बात को भी बहुत बड़ा दर्जा देते हुए वंशिका ने माँ से कहा कि माँ मैं लेडीस टेलर बनना चाहती हूँ । 


माँ बोली अब जो भी बनना है अपने घर जाकर बनना । तेरे बाप कई जगह रिस्ता देख चुके है , महिने दो महिने बाद तेरी शादी हो जायेगी फिर क्यों इस सिलाई के झंझट में पड़ना चाहती है । अब तू बालक थोड़ी ही ना है जो मैं तुझे घर से बाहर भेजूंगी। मुझसे तो कह दिया पर अपने बाप से ना कहना वरना बहुत गुस्सा करेंगे ।


वंशिका - पर माँ सिलाई सीखने में हर्ज क्या है। मैं सीलाई लेडीस से सीखना चाहती हूँ किसी लड़के से नहीं जो कि पापा मुझ पर गुस्सा करेंगे। पापा खुद तो कहीं भी घूमने जाते हैं । क्या पापा को मुझ पर जरा भी विश्वास नहीं है, और मेरे ही पापा क्यो यहाँ के सारे बाप ही बेटियों पर विश्वास आखिर क्यों नहीं करते । आखिर हमसे यह हमारी आज़ादी क्यो छीन लेते है । क्या यह सारे आदमी घर से बाहर कहीं भी घूमने की आज़ादी भगवान के घर से लिखवाकर लाते हैं । इन्हे कोई क्यो नहीं रोकता । और माँ आपने भी कह दिया जो कुछ सीखना है अपने घर जाकर सीखना , पर मेरा घर है कहाँ । और माँ मैं कहाँ मील दो मील जा रही हूँ , सामने ही तो है लेडिस टेलर की दुकान । 


माँ अब खामोश हो जाती है, क्योंकि माँ को आभास हो गया है कि बेटी अब की बार पक्की ज़िद पर है और फिर बेटी छोटे बच्चों की तरह हिर्ष लगा लेती है। बेटी की ज़िद के आगे माँ को झुकना ही पड़ता है , पर माँ एक शर्त रखती है कि , तेरे पापा को यह बात पता ना चले । जब तेरे पापा खेत पर जाते हैं उसी वक्त तू भी सिलाई सीखने चली जाया कर। माँ की हामी पाकर बेटी भी माँ को यह विश्वास दिलाती है कि मेरी वजह से कभी माँ बाप का सिर नहीं झुकेगा। 


और इस तरह वंशिका ने सिलाई सीखना शुरू कर दिया था । उसे सिलाई सीखते हुऐ अब आठ महीने हो चुके हैं, वंशिका का दिमाग सामान्य लड़कियों से तेज है जिस कारण वो बहुत जल्दी बहुत कुछ सीख चुकी है और अगले चार महीने में वो एक परफेक्ट टेलर बन जायेगी । वंशिका बहुत खुश थी क्योंकि उसके दिल की तमन्ना समझो पूरी ही होने वाली थी , पर तमन्ना पूरी होने से पहले ही ना जाने कैंसे वंशिका के बाप को यह बात पता चल गयी कि वंशिका सिलाई सीखने जाती है वो भी बाप से बिना आज्ञा लियें , वैसे तो वंशिका का बाप इत‌ना बुरा ना था पर वो नहीं चाहता था कि उसकी बेटी बिना पूँछे घर से बाहर कदम रखे , क्योकि वो समाज में चल  रही बुराइयों से बहुत डरा और सहमा रहता था। आये दिन उसको यही किस्से सुनने को मिलते थे कि फला की बेटी फला के लड़के के साथ भाग गयी , फला की लड़की ने फला के लड़के के चक्कर मे जहर खा लिया । उसे बेटी पर तो विश्वास था पर समाज पर विश्वास नहीं था। वो डरता था कहीं उसकी बेटी भी समाज के रंग मे ना रंग जाये , और इस उम्र मे वो अपनी जगहसाई नहीं कराना चाहता था, इसलिए पता चलने पर उसने वंशिका की बहुत पिटाई की । और उसकी सिलाई सीखने का सपना बीच में ही तोड़ दिया।

और दो महीने के अन्दर उसकी शादी भी कर दी ।


वशिंका भी अपनी उम्मीदों का गला घोट चुकी थी और वो बाप के विचारो की अवहेलना ना करना चाहती थी । बाप को बेटी की शादी की इतनी जल्दी हुई कि उसने दूर पास कुछ ना सोचा और दो सौ किलोमीटर दूर बेटी को ब्याह दिया। वशिंका भी मन बना चुकी थी कि शादी तो करनी ही है आज नहीं तो कल इसलियें उसने भी खुशी खुशी शादी कर ली । 

शादी के साल भर तक तो आना जाना ठीक ठाक ही रहा पर अत्याधिक दूर होने के कारण दोनो तरफ से ही आना जाना बहुत कम या कह लो बन्द हो गया। 


वशिंका की शादी को बारह साल बीत चुके थे। पर अत्यधिक दूर शादी होने के कारण पिछले ग्याराह सालों से ना तो बाप को बेटी की कोई  खबर मिल पायी थी और ना ही बेटी को बाप का कोई हालचाल मिल पाया था । बस ईश्वर की आस और विश्वास पर ही दोनो तरफ से एक दूसरे को खुश हाल समझ लिया जाता और अपने अपने हृदय को धीरज दे देते। 


एक दिन की बात है वंशिका के पिता को अचानक ही बेटी की यादों का उफान ह्मदय से ऊपर जा पहुँचा बेटी से बिछड़ने की वो पीड़ा कभी ना हुई जो आज हो रही थी। मन व्याकुल और ‌बेचैन हो रहा था। बाप को कभी बेटी की इतनी चिन्ता ना हुई, पर इतने दिनो बाद ऐसा क्यो हो रहा था, शायद यह रिश्तों के तार थे जो अलग होकर भी एक दूसरे से जुड़े थे। बाप से रहा ना गया और अगले ही दिन पत्नि से मशवरा कर बाप बेटी से मिलने को उसके घर चल पड़ा। 


रास्ता लम्बा था बेटी का घर दूर था सो बेटी की ही यादों की माला लिये वक्त गुजर रहा था। बचपन में उसका तुतलाकर बोलना, खिलखिलाकर हँसना, और डाँटने पर सिसक सिसक कर रोना। स्कूल जाना , खाना लाकर देना साल दर साल के वो सारे पल आँखो के सामने ऐसे गुजर रहे थे जैसे यादों का आईना कोई फिल्म दिखा रहा हो, और फिल्म इतनी लम्बी थी कि रास्ता छोटा पड़ गया। 


दोपहर दो बजे घर से चला बाप रात आठ बजे बेटी के घर पहुँच पाया था, पर बेटी घर पर ना थी। घर पर थे तीन छोटे छोटे बच्चे, बच्चों को देखकर बाप का मन गदगदा जाता है वो समझ जाता है कि यह उसी के नाती हैं, पर बेटी और दामाद को ना पाकर मन थोड़ा चिन्तित हो जाता है । बाप बच्चों से पूछता है बेटा मम्मी पापा कहाँ है ? तो बड़ा लड़का जिसकी उम्र दस साल है बताता है कि मम्मी तो काम पर गयी हैं, और इतना कहकर चुप हो जाता है।   

बाप फिर से पूछता है और तुम्हारे पापा कहाँ है ? 

तीनों बच्चों के मुँह से कोई अल्फाज नहीं निकलते और उदास मन से सिर को नीचे झुका लेते हैं । 


बाप अपने नातीयों को दिलासा देते हुए कहता है डरो मत बच्चो मैं तुम्हारा नाना हूँ । इतना सुनकर बच्चो के चेहरे पर मुस्कान आयी बच्चो की मुस्का‌न देखकर नाना ने भी बच्चों को गले से लगा लिया। और एक बार फिर पूछा कि अब तो बता दो तुम्हारे पापा कहाँ हैं वो काम पर क्यों नहीं जाते है ।


इस बार लड़का कहता है नाना जी माँ बताने को मना करती है। 

बाप- अच्छा कोई बात‌ नहीं यह बताओ .... इतने में ही वंशिका घर पहुँच जाती है। जिसके तन के कपड़े दिन भर काम करने के करण अत्यधिक मेले हो चुके थे, चेहरे पर दिन भर की मेहनत का पसिना साफ चमक रहा था और शरीर भी थका थका सा लग रहा था आँखो में उदासी थी।


बाप को देखते ही उम्र मानो पल भर में ही बाराह साल पीछे पहुँच गई थी। बाप को यूँ अचानक देख कुछ पलों के लिये वो भूल गयी थी की उसके तीन बच्चे हैं बल्कि वो तो खुद बचपन का एहसास ले रही थी , वो अपने आप को अपने मन की रानी , और बाप की लडली समझ रही थी जैसे वो शादी से पहले थी । खुशी का सैलाब इतना तेज था की उसके आगे कोई दुख दर्द टिक ना सका , वो काफी दैर तक बाप का चेहरा निहारती रही बाप के चेहरे से नजर हटकर जैंसे ही बच्चों की तरफ देखा तो सारे सुख मानो भाप की तरह उड़ गये। और फिर सिलसिला शुरू हुआ सुख दुख की कहने का । 


बाप - बेटी दामाद जी कहाँ है ? 


बाप का यह सवाल सुनकर बेटी का भी सिर नीचे झुक गया, और आँसू बह निकले। बेटी के आँसू बहते देख बाप ने बेटी के सिर पर जैसे ही हाथ रखा तो वो जोर जोर से रोने लगी । बाप समझ चुका था कुछ ना कुछ अनर्थ ‌हुआ है , पर क्या हुआ है जो मेरी बेटी मुझे बता नहीं पा रही है । बेटी को यूँ रोता दैख बाप की आँखें नम सी होने लगी पर उसने अपने आप को सँभाला और कहा - बेटी रोने से मुझे कैसे पता चलेगा तुझे क्या दुख है , एक बार बता तो सही । आखिर दामाद जी को हुआ क्या है । 


बेटी अब भी बात को पीने की  और छुपाने की कोशिश करती है और कहती है कुछ नहीं हुआ है , पर यह सिसकियाँ और बहते आँसू बात को छिपा ना सके । और अन्तः मुँह से सच को निकलना ही पड़ा । 


बेटी - सारा दौष मेरी किस्मत का है पापा, वो जेल में हैं, चार साल पहले मुझे छोड़कर वो किसी और के साथ चले गये , जिसके साथ गये थे उसके माँ बाप ने उन्हें घिनौने काम के झूठे इल्जाम मे फँसवा दिया। दो साल तक तो कैश ही चलता रहा जो जमा पूँजी थी सब चली गयी दो साल बाद हम कैश हार गये और उन्हे चौदहा साल की सजा हो गयी ।


पिछले दो साल से वो जेल में हैं, और इन दो सालों में हमने बहुत दुख सहे हैं, लोगो के तानों से लेकर ‍‍‍आये दिन घर के फाँको तक का यह सफर बहुत मुश्किल से कट रहा था बच्चों के रोत बिलखते और भूखे चेहरे देखकर ही मैंने अपने घर की सीमा उलाँघी है। बाहर काम करके ही मैं‌ अपने बच्चों का पेट पाल सकी नहीं तो भूखों मरने तक की नौबत आ गयी थी। 


बेटी की ऐसी हालत देख बाप का गला भर आया , और बोला बेटी तूने तो सदियों से चली आ रही कहावत को सच में ही सच कर दिया हमें बिल्कुल ही पराया कर दिया , तुने अपने बाप को इस काबिल भी ना समझा कि वो तेरा दर्द बाँट सके। जिस बेटी को मैंने सड़क पर झाड़ू भी ना लगाने दी वो आज घर घर झाड़ू चौका कर रही है, नहीं बेटी अब मैं यह नहीं होने दूँगा हम कल सुबह ही घर चलेंगे ।


पर बेटी ने वक्त और बाप से समाज के बारे में बहुत कुछ सीख लिया था , उसने बाप के घर चलने को तो हाँ कह दिया पर रहने के लियें ना कह दिया । उसने कहा - पापा आप ही तो कहते थे कि शादी के बाद पति घर ही अपना घर होता है , और अपने घर को मैं छोड़ना नहीं चाहती बहुत मुश्किलों से सँभलना सीखा है । 19 साल आप पर बोझ बनकर रही पर अब मैं किसी पर बोझ बनकर नहीं रहना चाहती । 


बाप बेटी की भावनाओं को ठेस नहीं पहुँचाना चाहता था सो बेटी की बात मान ली। सुबह होते ही वो बेटी और नातीओ को लेकर अपने घर के लिये रवाना हो चले । बाप और बेटी दोनो के चेहरों पर सिर्फ और सिर्फ उदासी थी , और वही उदासी आंसुओं में तब्दील हो गयी जब रास्ते में उन्होने एक लेडिस टेलर की दुकान देखी जिसमें एक औरत कुर्सी पर बैठी कपड़े सिल रही थी जिसके चेहरे पर स्वाभिमानी की मुस्कान थी और वो मुस्कान इसलिये थी क्योंकि उसे सुबह उठकर घर घर बर्तन नहीं माँजने थे किसी के ताने नहीं सुनने थे रात को आठ आठ बजे घर नहीं लौटना था वो तो अपने मन की मालिक थी क्योंकि उसके पास एक हु‌नर था । बाप को अब पछतावा हो रहा था कि काश मैं भी अपनी बेटी को ऐसा ही कोई हुनर सीखने देता तो आज वो यूँ घर घर खाक ना छानती । 


पर बेटी को बाप पर कोई क्रोध ना था वो तो किस्मत को दोष देकर रह गइ।

अन्त में बेटियों के लियें सिर्फ इतना ही कह‌ा चाहुँगा कि- 


बेटियाँ जो पढ़ना चाहे दुनिया में आगे बढ़ना चाहे 

किस्मत को भी पटकी दे देंगी गर वो किस्मत से लड़ना चाहे 

हर बेटी के हाथ में हो अगर कोई हुनर 

तो आसान हो जाता है जीवन का सफर। 



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