Priyanka Gupta

Abstract Drama Inspirational

4.5  

Priyanka Gupta

Abstract Drama Inspirational

लड़की साँवली है!!! Prompt 10

लड़की साँवली है!!! Prompt 10

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"देख दिव्या, जब लड़के वाले आयें, तब तू मत निकलना। दोनों बहनें जुड़वाँ हो, लेकिन दोनों में कितना अंतर है?" कला जी ने अपनी बेटी से कहा।

"और, आज जरा इस काव्या को तू ही तैयार कर देना। फाउंडेशन वगैरह सब अच्छे से लगा देना, ताकि इसका रंग थोड़ा उजला दिखे। एक तो भगवान् ने शक्ल ऐसी दी है और ऊपर से अक्ल भी दे दी। अब लड़कियों की लोग शक्ल ही अच्छी चाहते हैं, अच्छी अक्ल वाली लड़की तो बहुत ही कम लोगों को पसंद आती है" कला ने काव्या की तरफ देखते हुए कहा।

कला को काव्या की आँखों में गुस्सा नज़र आ गया था, इसलिए उसके कुछ बोलने से पहले ही वह यह कहते हुए निकल गयी कि, "बेटा, अच्छे से तैयार हो जाओ। मुझे और भी काम है।"

कला की दो जुड़वा बेटियाँ हैं काव्या और दिव्या। काव्या सांवली है और विदेशों में रंगभेद का विरोध करने वाले हम भारतीय खुद गोरेपन के पीछे कितना पागल हैं, इसका सबूत आपको वैवाहिक विज्ञापन पढ़कर मिल जाएगा। काव्या एक होशियार लड़की है, जो अभी विदेश जाकर पढाई करने के लिए प्रयास कर रही है। उसने छात्रवृत्ति प्राप्त करने के लिए परीक्षा भी दे रखी है। काव्या के पापा ने कभी भी अपनी बेटी के सपनों पर रोक लगाने की कोशिश नहीं की। उसके पापा जहाँ बेटियों की उड़ान को रोकते नहीं हैं, वहीँ उन्हें उड़ने के लिए आसमान देने की कोशिश भी नहीं करते। वह इस मामले में उदासीन हैं। वह न तो कला की बातों का खुलकर विरोध करते हैं और न ही अपनी बेटी का समर्थन।

दिव्या का रंग उजला हुआ है। दिव्या पढाई-लिखाई में औसत विद्यार्थी रही है, स्नातक के बाद उसने कुकिंग, ब्यूटी पार्लर, इंटीरियर डेकोरेशन का कोर्स कर लिया है। दोनों बहिनें जुड़वाँ हैं, लेकिन कुछ मिनट्स से काव्या, दिव्या से बड़ी है। फिर काव्या के सांवले रंग की वजह से कला को उसकी शादी की बड़ी चिंता रहती है। 

आसपास की महिलाएं और अन्य रिश्तेदार कला की चिंता यह कह कहकर और बढ़ा देते हैं कि, "दिव्या को तो कोई लड़का न नहीं कर सकता, लेकिन काव्या को घर से निकालना मुश्किल हो जाएगा। तुम्हारे पास तो देने को लाखों का दहेज़ भी नहीं है। "

अतः कला स्नातक के बाद से ही काव्या के लिए लड़के देख रही है, लेकिन कहीं बात नहीं बन रही। एक -दो लड़के वालों ने तो आगे से काव्या की जगह दिव्या का हाथ तक माँग लिया था। कला और उनके पति ने विनम्रता से ऐसे प्रस्तावों को इंकार कर दिया था। 

कला अपनी बेटियों की शादी के लिए चिन्तित अवश्य थी, लेकिन उसके बावजूद ऐसे लोगों के बीच में अपनी कोई भी बेटी देना नहीं चाहती थी, जो कि बड़ी की जगह छोटी बेटी का रिश्ता माँगे। इस कारण, कला सावधानी बरतते हुए, दिव्या को लड़के वालों के सामने आने ही नहीं देती,आज भी कला ने दिव्या को लड़के वालों के सामने न आने के लिए बोल दिया था। 

कला के कमरे से बाहर जाते ही दिव्या ने काव्या से कहा, " दीदी, आपको यह लीपापोती पसंद नहीं है। आप अपने आप ही तैयार हो जाओ।"

"हाँ दिवु, मैं जैसी हूँ, वैसा ही मुझे पसंद किया जाए और स्वीकार भी। ",ऐसा कहकर काव्या ने अपने बाल सँवारे और माथे पर छोटी सी बिंदी लगा ली, आँखों में काजल और होठों पर हल्की सी लिपस्टिक। 

कला एक बार फिर कमरे में आयी और काव्या को अपने कहे अनुसार तैयार न देखकर कहने लगी, "तुम्हारी माँ हूँ, दुश्मन नहीं। जब लोगों को गोरी लड़की ही चाहिए तो क्या करें। आज अगर थोड़ा फाउंडेशन लगा लेती तो क्या हो जाता?",कला और कुछ कहती, उससे पहले ही दरवाज़े की घंटी बज गयी। 

तब ही काव्या के पापा महेश ने आवाज़ लगाते हुए कहा कि, "वो लोग आ गए हैं। ", कला बड़बड़ाते हुए काव्या को कमरे में छोड़कर आ गयी थी। 

कला और महेश ने लड़के वालों स्वागत किया। लड़का दीपेश अपनी छोटी बहिन और माता -पिता के साथ आया था। दीपेश को देखते ही, कला की सारी उम्मीदों ने दम तोड़ दिया था। उजले रंग का दीपेश कभी भी काव्या को पसंद नहीं करेगा और एक बार फिर से मेरी बेटी रिजेक्ट हो जायेगी। कला ने महेश को इशारे से किचेन में चलने के लिए कहा और किचेन में पहुँचते ही कला कहने लगी, "लड़का फोटो में गोरा दिख नहीं रहा था। यह तो हमारी काव्या को नापसंद कर देगा। "

"अब कोई बात नहीं। ये लोग घर तक आ गए हैं तो हमारे मेहमान हैं। आगे काव्या की किस्मत। ",महेश ऐसा कहते हुए चले गए। 

दीपेश और उसके घरवालों से हलकी -फुलकी बातचीत हो रही थी। कला ने उनको नाश्ता सर्व कर दिया था। काव्या किचेन में चाय बना रही थी और कला के बुलावे का इंतज़ार थी। उतने में ही कला ने काव्या को चाय लेकर आने को कहा। 

काव्या जैसे ही चाय लेकर पहुंची, दीपेश की माँ ने दीपेश को धीरे से कहा, "लड़की साँवली है, लेकिन फोटो में तो गोरी लग रही थी। " दीपेश ने इशारे से अपनी माँ को चुप रहने के लिए कहा। 

बातों -बातों में दीपेश ने बताया कि वह विदेश में भी नौकरी की कोशिश कर रहा है। कुछ कम्पनीज में इंटरव्यू भी दिया है। उसके विदेश जाने से पहले मम्मी -पापा की इच्छा रखते हुए वह शादी कर रहा है। 

काव्या ने उसे अपनी छात्रवृत्ति के बारे में बताया। दीपेश ने कहा, "यह तो बहुत ही अच्छी बात है। "

अभी बातें ही चल रही थी कि कूरियर ब्वॉय एक पत्र लेकर आ गया। यह पत्र काव्या को छात्रवृत्ति मिलने का था। 

दीपेश ने कहा, " मम्मी -पापा मुझे काव्या जी पसंद है। अगर काव्याजी को कोई ऐतराज़ न हो तो मैं इस शादी के लिए तैयार हूँ। "

"लेकिन बेटा। ",दीपेश की मम्मी ने कहा। 

"मम्मी, मुझे काव्या जी पसंद है। अपने सपनों के लिए प्रयास करने वाली हैं। जब अपने सपनों को महत्व देती हैं तो मेरे सपनों को भी समझेंगी। ",दीपेश ने कहा। 

"नहीं बेटा, काव्या का रंग थोड़ा साँवला है। ",दीपेश की मम्मी ने धीरे से कहा। 

"मम्मी, जब से आप यहाँ आयी हो, काव्या जी के रंग को लेकर शिकायत किये जा रहे हो। सोचा था कि इस बात की उपेक्षा कर दूँ। लेकिन अगर उपेक्षा की तो काव्या जी को बार -बार यह एहसास करवाया जाएगा कि उनमें कुछ कमी हैं। ",दीपेश ने कहा। 

काव्या विस्मित सी दीपेश की बातें सुने जा रही थी। उसकी बातें सुनकर वह मन ही मन दीपेश को अपना जीवनसाथी बनाने का फैसला ले चुकी थी।

"हमें अपने सौंदर्य मानकों के अनुसार किसी के बारे में राय बनाने का कोई हक़ नहीं। ईश्वर की बनाई इस दुनिया में हर चीज़ खूबसूरत है, खूबसूरती इंसान की आँखों में होती है। काव्या जी को कटघरे में खड़ा करने का अर्थ है कि ईश्वर के सृजन पर प्रश्न करना। ",दीपेश ने कहा।

"जैसी तुम्हारी मर्ज़ी बेटा। ",दीपेश की मम्मी ने कहा। 

"अरे लेक्चर देते हुए, हमने काव्या जी से तो उनकी इच्छा पूछी ही नहीं। ",दीपेश ने कहा। 

"मुझे भी यह रिश्ता मंजूर है" काव्या ने कहा।

कला और महेशजी के चेहरे पर मुस्कान की लकीरें खिंच गयी थीं। कला और महेशजी के चेहरे पर मुस्कान की लकीरें खिंच गयी थीं। कला ने दिव्या को मिठाई के साथ बाहर बुला लिया था, दीपेश ने उन सबके सामने सौंदर्य की नयी परिभाषा जो रख दी थी। 


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