क्योंकि लड़के रोते नहीं

क्योंकि लड़के रोते नहीं

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सूरज साँझ के आँचल में छुप चुका था और साँझ भी अंधियारे में धीरे-धीरे खोती जा रही थी। ऐसा लग रहा है, जैसे वो अपने जीवन के हर पल को किसी न किसी रूप में, सूरज की रोशनी को अपना जीवन बनाना चाह रही है, लेकिन रात का अंधियारा उसे ऐसा करने ही नहीं देता।

उसी तरह तरु की ज़िन्दगी भी अंधियारे और उजाले के लिए तड़पती रहती थी। उसे अपने जीवन के जीने का मतलब तो पता था, पर उसे अपने खुशी के लिए क्या करना है? ये नहीं पता था। वो अपने जीवन के कशमकश में बस घूमता ही रहा, जब तक उसके जीवन में शिल्पा रही। वो उसके जीवन की खुशी तो थी, पर उसके परिवार के खुशी के लिए सबसे बड़ी रुकावट... जिससे वो अपने परिवार वालों के लिए कुछ भी नहीं कर सकता था। वो जो कुछ भी करता चोरी छिपे करता था। वह अपने परिवार के सभी सदस्यों को बहुत प्यार करता था, और उनकी सारी ज़िम्मेदारी उसके भी उसके कंधों पर थी, लेकिन वो दूसरी तरफ शिल्पा से भी बहुत प्यार करता था। उससे शादी भी करना चाहता था, और शिल्पा भी चाहती थी, लेकिन शिल्पा ऐसा कुछ भी नहीं चाहती थी 'कि तरु सबके बारे में सोचे और करें, क्योंकि वह बस अपने घर वालों के खुशियों के बारे में ही सोचता और उनके लिए ही वो सारी चीजें करता जिससे सब कुछ ठीक रहे और इससे ठीक विपरीत शिल्पा को ये सब बिल्कुल पसंद नहीं था। वो चाहती थी, कि तरु अपने और उसके बारे में सोचे..... इस बात पर दोनों की बहुत बहस होती, झगड़े होते और कभी-कभी तो रिश्ते टूटने के अंतिम कगार पर आ जाते थे, पर दोनों में प्यार बहुत था जो उनके रिश्ते को टूटने नहीं देता था। बारह साल हो गए थे उनके रिश्ते को बिन ब्याह के गुजारते हुए, लेकिन तरु की जिम्मेदारियाँ थी कि वो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी। हर बार शिल्पा के मन में शादी को लेकर कई उमंगे उठती और फिर आँखों में ही कहीं खो जाती....... क्योंकि तरु की ज़िम्मेदारियों की गठरी जो उसके सिर पर रखी हुई थी। शिल्पा ने तो अपने घर से भी सारे रिश्ते तोड़ दिए थे। बस..... अब उसका एक ही सहारा था। वो था.... तरु, पर वो! उसके ऊपर पहले से ही इतनी जिम्मेदारियां थी जो कभी खत्म ही नहीं हो पा रही थी। एक को पूरा किया तो दूसरी और फिर तीसरी, चौथी, पांचवीं और न जाने कितनी।

मैंने तो सोचा था, शायद दोनों की शादी हो गई होगी.... अभी तक दो बच्चे हो गए होंगे, पर ऐसा कुछ भी नहीं था। मैंने भी अपने जीवन के कुछ हसीन पल उन दोनों के साथ बिताएं थे और उन दोनों को एक-दूसरे के साथ जीते हुए देखा था.... पर इन पंद्रह सालों में सब कुछ बदल गया है और मैं ऐसे हालात में उन दोनों से जाऊँगा मुझे पता न था। " यही सब बात सोचते-सोचते सत्या तरु के घर जा रहा था।

शिल्पा को हमेशा हँसते हुए ही देखा था मैंने। वो हमेशा बिना सोचे समझे उत्तर देती और कहती हम ऐसे ही हैं। बिल्कुल पागल और झल्ली- सी लड़की थी... वो, और तरु सीधा-सादा सबकी खुशियों का ध्यान रखने वाला जिसे कभी अपनी खुशियां कभी दिखाई ही नहीं दीं।

मेरी मंज़िल का सफर पूरा हो चुका था और शिल्पा के घर के बाहर भीड़ लगी हुई थी। उसके माता-पिता, भाई-बहनों के साथ सभी रिश्तेदार भी मौजूद थे रोना धोना लगा हुआ था और वहीं एक किनारे अपनी ज़िम्मेदारियों के बोझ को अपने कंधों पर लिए आज भी खड़ा था। चुपचाप सीधा-सादा, शिल्पा को बहुत प्यार करने वाला तरु।

मैंने देखा कि - शिल्पा ज़मीन पर लेटी हुई थी, पर ऐसा लग रहा था कि..... वो अभी उठकर कहेगी - 'आ गए.... अब जाकर आपको फुर्सत मिली है। मुझसे मिलने की।'... पर वो सो रही थी। चिरनिद्रा में...... अंतहीन काल के लिए.... उसके होंठों पर आज भी हँसी छाई हुई है।


मैं तरु के पास गया और बोला- 'क्यों सब ठीक हैं न भाई।' तरु ने बड़े ही सीधे लहजे में कहा - 'हाँ घर में सभी ठीक है।' मुझे उसके इस जवाब को सुनकर रहा न गया। मैंने तुरंत ही कह दिया चलो ठीक हुआ शिल्पा चली गई, नहीं तो न जाने कब तक धीरे-धीरे तुम्हारी जिम्मेदारियां उसे पल-पल मारती।

मेरी बात सुनते ही तरु की आँखों में जो सूखापन था। उसमें उसके पछतावे के आँसुओं ने घर बनाना चाहा... पर उसकी ज़िम्मेदारियों ने उसे संभाल लिया क्योंकि लड़के कभी रोते नहीं।

शिल्पा जा रही थी। एक नयी दुनिया में... अपनी खुशी के अंतहीन तलाश को लिए.... तरु के प्यार को साथ लिए।



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