क्या यही है इश्क़
क्या यही है इश्क़
गुजर गए वर्ष कई लेकिन आज भी मीरा के कंठ में तो बस कान्हा कान्हा ही गुजयमान है। दर दर की हर ठोकर में भी जब कान्हा दिखने लगे तो कोई ऐसी प्रीत को क्या कहे? एक और मीरा के जगउपहास का कारण कान्हा है तो मीरा के अंतर्मन के केंद्र में निवास कर रहे प्रीत की वजह भी तो कान्हा ही है।
स्वयम की स्मृति में खुद को विस्मित कर हर क्षण कान्हा की रट में ऐसी खोई की अब प्रीत की मूरत मीरा खुद को महारानी बुलाने से कही ज्यादा रास बिहारीन बुलाने में धन्य मानने लगी। क्या प्रीत की ऐसी कोई प्रजाति होती है, जिसमे मीरा जन्मी ?
जग में उपस्तिथ आत्ममृत हर प्राणी इसे पाखंड और विमंदित क्रिया कह कर संकेत कर रहा कि मीरा अब जगवासी न रही अब वो स्वप्नवासी हो गई। स्वप्न ही उसका संसार और स्वप्न का देव कान्हा ही उसका स्वामी।
हर कोई स्वप्न को तो स्वप्न मानने को सहमत है, पर स्वप्न स्वामी कान्हा को हकीकत न माने भला यह किसकी हिम्मत ?
कीमत कोई भी हो भला मीरा को कान्हा स्वप्न से विमुख करने प्रपंज की सभा आयोजित हुई। पर मीरा के स्वप्न से कान्हा को दूर करने का जुआ भला कौन खेले...! यह एक ऐसा निरुत्तर प्रश्न था जिसका न किसी के पास प्रतिउत्तर है न ही संभावित परिणाम का खाखाचित्र।
परमेश्वर से भी भला कोई उच्च सोपान पर विराजमान है..! शायद नही ? लेकिन पुरुष प्रधान कुल ने पति को स्वयमसिद्ध परमेश्वर कहने में कोई अन्याय नजर न आया।
कोन भला इस प्रपंज सभा को समझाये की ईश्वर तो केवल प्रेम ईश्वर वाला आलोकिक प्रेमस्वरूप परमेश्वर है, जो आत्मा मे विराजता है। मीरा की तो आत्मा ही अब कान्हा है जो प्रीतश्वर है न कि परमेस्वर।
परम् ईश्वर वाला लौकिक पति स्वरूप पाखंडी परमेश्वर से अलौकिक प्रीतश्वर से कहाँ तुलना? लेकिन पुरुष स्वरूप पाखंडी पति का अहंकार किसी स्त्री स्वरूप मीरा या अदृश्य प्रीतश्वर से चोटिल हो जाये तो यह चोट तो समस्त पतिस्वरुप प्रजाति के विरुद्ध हुआ न। कैसे मीरा और कैसे कान्हा को यह सभा माफ कर? आखिर प्रकृति के नियम से ऊपर निर्मित मानव नियम पर यह आक्रमण जो है।
परम् रूपी अहंकार कभी जीवनकेन्द्र नही हो सकता, जीवन का मध्य बिंदु तो केवल प्रेम ही है। मीरा प्रेम रूपी मध्य बिंदु की धुरी है जिसके निकट भी परम रूपी अहंकारी पतिपरमेश्वर नही फटक सकता।
महल की झूठी आभा को भला कब यह मंजूर की मीरा परम् से निकट न रहे। पथभर्मित मति साजिश के सिवाय कोनसा अन्य उतम मार्ग ढूंढ़ सकती थी। प्रीत की हत्या देह की हत्या से ही सम्भव है। विष देह का समापन के साथ प्रीत का भी अंत कर देगा।
कण्ठ से ज्यूँही नीलवर्ण विष नीचे उतरा। मीरा का लौकिक निल वर्ण अलौकिक दुधिया हो गया, लौकिक कर्ज चूक गया। मीरा देह सहित कान्हा के नील वर्ण में सम्माहित हो गई। राजबहु मीरा कान्हा की जोगिन मीरा बन गई। जोगिन को कैसा महल। हाथ मे मंजीरा और जिव्हा पर बस कान्हा कान्हा लिए प्रेमस्थली मथुरा ही अब मीरा की प्रीतस्थली हो गई।
महल का भी भरम निकल गया। परमेश्वर पर पुनः प्रीतश्वर प्रभावी हो गया। राजकानून सूक्ष्म और कुदरतप्रीत वृहद प्रमाणित हुई। मीरा कान्हा की ही है, जग ने यह सहमति प्रदान की है। राधा रूप मीरा का युगीन प्रेम अनन्त प्रेम की परिभाषा बन गया।