"साँची प्रीत" एक प्रेम कहानी
"साँची प्रीत" एक प्रेम कहानी
मैं कबीर जयपुर राजस्थान का रहने वाला 25 साल का एक लड़का हूँ। मैं खुद में खोया हुआ हमेशा खुश रहने वाला, सपनो को सबसे ऊपर और मेहनत को प्राथमिकता देने वाला कुछ सुलझा हुआ कुछ उलझा हुआ, साफ हृदय वाला इंसान हूँ।
जिंदगी का हर सूरज मेरे लिए उम्मीदों का आसमान औऱ उन्हें पाने की हिम्मत लेकर रोजाना मेरी दहलीज़ पर आकर मेरे घर के दरवाजे को यह कहते हुए खटखटाता था। उठ जाओ मिस्टर तुमहारे सपनो की दुनिया बाहर तुम्हारी राह देख रही है।
मैं हर रोज इसी ख्याल के साथ सुबह की किरण से मिलता की आज मैं अपने सपनो के आसमा की ओर कुछ कदम ओर बढ़ाऊंगा, ओर रात को मैं नींद से जब मिलता तो ये सोचता कि कुछ फासला तो आज पार हुआ ओर थोड़ा बाकी रह गया है। भोर की लाली से पहले ओर सांझ की गोधूली के बाद रात मेरी अपनी हुआ करती थी। बाकी सुबह दोपहर ओर शाम मेरे सपनों की हमसफर थी।
जिंदगी में सब इतना अच्छा चल रहा था कि जिंदगी का हर पल अपना सा लगता था, हर पल पर मेरा काबू था और हर पहर मेरे इशारो का गुलाम। खुद का साथ मुझे दुनिया के अरबो लोगो के साथ का एहसास कराता था।
अकेले में हर पल आपका अपना होता है, आप अपने मालिक खुद होते है। जिंदगी के हर कदम को अपने अनुसार चलाने का अपना ही मजा है। मैं भी इस मजे में रमा हुआ था।
एक वक्त बाद अकेले में कोई कितना भी खुश क्यों न हो, मन के किसी कोने में एक ठीस हमेशा बनी रहती हैं, कि कोई अपना नही, या हम किसी के नही। यही ठीस मेरे मन मे भी कभी न कभी कही न कही खटकती थी, शायद उस वक़्त जब जग सोया होता है। ओर मैं खुद के खोया होता हूं। तो खुद को पाकर भी मैं कही न कही खुद से ही दूर होने लगा था।
अकेलापन चाहे कितना भी अच्छा हो लेकिन कभी भी यह खुद के कंधे पर खुद का सर रखने की इजाजत नही देता। आंखों से निकलने वाले आंसुओ की सबसे अच्छी नियति यह हैं कि उसे किसी अपने की उंगलियों से पोंछा जाये। कुछ ऐसी ही थी मेरी भी हालत। मैं खुश तो था, पर था अकेला, न सर रखने को कोई कंधा था, न आंसू पूंछने को किसी अपने की उंगलियां।
शायद हर अनजान आदमी को यह सब अच्छा ही लगता है ओर मुझे भी लगा, ओर में भी निकल चला किसी अपने की तलाश मे। सोशल मीडिया से ज्यादा कोई खोजी ऐसे वक्त में दूसरा नही हो सकता। और फेसबुक पर बातो का दौर शुरू हो जाये तो समझ लीजिए कि आप ऐसी दुनिया में जहाँ आप किसी को भी पा सकते है, ओर किसी को खोना भी उतना ही आसन हैं। करोड़ो की भीड़ में किसी एक अपने को ढूंढना इतना ही मुश्किल है जितना गहरे सागर की तलहटी से मोती को ढूंढ लेना। लोगो का हुजूम था यहाँ कुछ सच्चे तो कुछ झूठे, सच्चे लोगो मे किसी अपने जैसे को ढूंढ पाना बहुत ही कठिन काम था। यह नया दौर था जहाँ प्यार भी डिजिटली होने लगा था। हर बार एक नया शक्श ओर हर बार वही नही शुरुवात ओर वही खात्मा। झूठ से ही शुरू ओर झूठ पर ही खत्म। वास्तविक दुनिया से कई गुना ज्यादा फरेबी था यह आभासी संसार। रिश्तों के नाम पर दो मीठे सच्चे बोल मिल पाना इतना ही कठिन जितना पानी पर पानी लिखना। अपने की तलाश में कब खुद से दूर हो बैठे, कब खुद सच्चे से झूठे बन बैठे, पता ही नही चला। अकेलेपन में कंधा तलाशने निकले पर जब भी अकेले रहे खुद को खुद ही समझाते रहे।
इंसान की सबसे बड़ी ताकत है उसका आशावादी होना, ओर सब ने प्यार में धोखा खाया है, लेकिन प्यार पर सबको विश्वास है। यही प्यार की ताकत है कि वो सबको गिराता है, पर खुद अडिग खड़ा रहता है। हर कदम पर इम्तिहान लेना इसकी आदत है। विश्वास इसकी आत्मा है, जहां विश्वास टूटा आपका प्यार खत्म ओर आप खेल से बाहर। लेकिन 16 उम्र की दहलीज से शुरू होने वाला यह प्यार रूपी केमिकल हर धोखे को सहने की हिम्मत और खोज को अनवरत जारी रखने की हिम्मत देता रहता हैं।
सुना था मैंने भी कभी कभी चाबियों के गुच्छे की आखिरी चाबी से भी ताला खुलता है। इसी मंत्र का अनुसरण करते हुए, बार बार प्यार में दिल टूट जाने के बाद फिर इस तलाश में की कोई तो चाबी किसी शख्श के पास होगी जो इस आत्मा की परतों को खोलते हुए गहराई तक उतर जायेगा। कोई तो अपना हो जायेगा।
यू करते करते दिन गुजरे, फिर महीने गुजरे, ओर फिर साल, मगर यहा फ्लर्ट की तेज धूप तो थी पर सच्चे प्यार की बारिश कही नही थी। प्यार का अकाल था और काम मुफ्त में मिल रहा था। यौवन की दहलीज थी तो बहकना भी वाजिब था, आखिर काम रूपी केमिकल जड़े जो फैला रहा था। लेकिन काम से क्षण भर सुख तो मिलता है लेकिन अलौकिक शांति नही, ओर मैं तो तलाश में था उस शांति की जिसे पाकर मैं उसमे रम जाऊ। ओर वो शांति थी किसी अपने के प्यार में, जिसकी तलाश अनवरत जारी थी।
घड़िया भी देर सवेर अच्छा वक्त लेकर आती है, मेरे लिए भी वक़्त कुछ पहर अच्छे लेकर आया, मुझे बहुत अच्छे से याद हैं वो तारीख थी 3 फरवरी 2020 ओर दिन था सोमवार, ओर घड़ी में बजे थे शाम के 7:30 ओर किसी अपने पुराने सहपाठिन के नाम से मिलते जुलते नाम को मैने पहली बार फेसबुक पर देखा। उसका नाम था श्रुति, जैसा नाम वैसी ही मीठी, अकेली थी वो भी तलाश रही थी कोई उसके जैसा, जो समझे उसे, समझाये उसे, यहा शायद मेरी तलाश पूरी होनी थी ।।
आज 3 फरवरी हैं, आज इक नदी दरिया में समा जाने को बेताब थी। इक खुशबु आज हवा में मिल जाने को थी। इंतज़ार की घड़ियां खत्म होने को थी। रेगिस्तान में आज बारिश होने को थी। सदियों का फासला आज पार होने को था। आज हम पहली बार हम मिलने वाले है।
सारे दिन आफिस के काम से थक जाने के बाद सोमवार की वो शाम आई। घड़ी में तकरीबन 7:30 बजे थे। रोज की तरह आफिस से आने के बाद फ्रेश होकर सुस्ताने के बाद सोफे पर बैठ हाथ मे मोबाइल पकड़ा। दोस्तों से फ़ोन पर कुछ गपसप की। दिन में आये सारे मैसेज को देखने के बाद एकाएक ही याद आया फेसबुक को देखे हफ्ता बीत गया है। यह पहला कदम था जो मुझे उस आभासी दुनिया में ले जा रहा था। जहाँ से मुझे सच से रूबरू होना था, या अगर यह कहु की मेरी जिंदगी के सबसे बड़े टर्निंग पॉइंट की और में जाने को तैयार था।
कुछ फेसबुक पेज देखने के बाद, एकाएक सामने फ्रेंड पैनल में इक फ़ोटो सामने आई। उसका पीले रंग का सूट ऐसे लग रहा था जैसे मंदिर के कुमकुम से रंगा हो। चेहरे पर छोटी सी काली बिंदी ऐसी लग रही जैसे गोल पूर्णिमा के चांद के बीच कोई चकोर उड़ान भर रहा है। उसकी काली लंबी आंखे जैसे कोई शांत झील हो। उसकी मंद-मंद मुस्कान ऐसे लग रही थी जिसे पंजाब के किसी गाँव मे सरसो के खेत लहरा रहे हो। उसके गुलाबी होठ गुलाब की क्यारी ओर उसका गोरा रंग ऐसा लग रहा था जैसे केसर की कोई फसल हो। चेहरे से सादगी की बूंदे ऐसे टपक रही थी जैसे सर्द रातों में बूंदों सी औस टपकती है।
दुनियां की किसी डिक्शनरी में कोई ऐसा शब्द ही नही जो उसकी सुंदरता को बयाँ कर सके। यू तो मैं भी एक शौकिया कवि हूँ, लेकिन मेरे पास कोई अल्फ़ाज़ ही नही थे जो उस कायनात को कागज़ ओर कलम में बांध दे।
जैसे ही मैंने फोटो में उसकी सूरत देखी, देखते ही पता नही मैं कहा खो गया। मेरे अंदर वीणा सी बजने लगी। यह आज तक का सबसे अच्छा एहसास था। एक ऐसा एहसास जो बताया जा ही नही सकता बस महसूस किया जा सकता हैं। वो एक पल ऐसा था कि मैं आज भी उस पल को याद करता हू तो उसी पल में वापस चला जाता हूं। लगता है वक़्त रुक सा गया है, और कायनात की हर खुशी मेरे को छू रही है।
10 मिनट बिना पलक झपकाये मैं उसे एकटक देखता ही रहा। खुद से ही सवाल कर बैठा की क्यों कुदरत ने इसे बनाया होगा। इतनी सुंदर की सुंदरता के किसी साँचे से उसे तोला नही जा सकता। हाथ लगने से मैला होना तो सुना था, हवा का झोंका भी उसे छू जाए तो वो मैली हो जाये।
कुदरत के सिवाय कोई भी किसी मैं ऐसी सुंदरता और सादगी नही डाल सकता। जिस की एक दफा सूरत देख कर में खुद को भूल गया हूँ, और बार-बार उसे देखने को तैयार हूं, ऐसा मेरी जिंदगी में पहली बार हुआ था।
10 मिनट एकटक देखने के बाद जब मोबाइल की घंटी बजी तो मेरी खुली आँखों की नींद टूटी। यह कॉल मेरे दोस्त का था, उसकी कॉल लेते ही मेरे मुह से निकलने वाली पहली लाइन थी, की बेवक़्त फ़ोन मत किया कर। बस यह लाइन खत्म कर मैंने फ़ोन कट कर दिया। ठंडी आह भरने लगा कि आखिर यह है कोंन। जिसने मुझे 10 मिनट में ही अपना बना लिया, वो भी बिना मिले बिना बात करे।
अब मेरे अंदर एक खलबली सी मची हुई थी। ओर मन मचला जा रहा था कि इसकी ओर फ़ोटो देखू, लेकिन उसके एकाउंट में मुश्किल से 10 फ़ोटो होगी और हर फ़ोटो पहली फ़ोटो से ज्यादा सुंदर और अलौकिक थी। कहते है ना सुंदरता कभी स्थाई नही होती, सुंदरता तो पल पल बढ़ती ओर बदलती है। ठीक ऐसे ही उनकी उन 10 फ़ोटो में सुंदरता के 10 अलग अलग रूप थे, हर रूप अपने आप मे अलग और अलौकिक था।
मेरी स्तिथि उस विद्यार्थी की तरह हो गई जिसका अगले दिन इम्तिहान हो, और कल के इंतज़ार में जो रात भर करवटे बदल रहा हो। मैं एक पल ओर बर्बाद किये बगैर उससे बात करने को आतुर था। लेकिन मेने खुद को थोड़ा कंट्रोल किया। सोचा की बात करने से पहले जान तो ले कि आखिर पहले ही पल में मुझ में रम जाने वाली यह है कौन।
श्रुति सिंह, नाम था इनका, अब समझ आया की इनका नाम श्रुति ही क्यों है, क्योंकि उसकी मिठास को कोई रिया,दिया नाम सूट नही करता। इसलिए सोच समझ कर रब ने नाम दिया है, "श्रुति"।
मेरी एक सहपाठिन हुआ करती थी श्रुति, हालांकि वो कभी मेरे मित्र समूह का हिस्सा नही रही। लेकिन श्रुति नाम देख कर लग रहा था कि, कॉलेज के 4 साल में श्रुति से बात न करके मेने कोई गलती की है। यह मात्र नाम ही नही था यह इक एहसास सा था, जो मुझ में समा गया था।
18 अप्रैल को धरती पर आई थी मोहतरमा जी। मेरा जन्म 12 जून को हुआ। मेरे जहन में आया कि यह मुझ से दोगुनी है और मैं इसका आधा। थोड़ी बहुत नंबर विज्ञान भी पढ़ा है, तो याद आया की उसके जन्मदिन में मेरे जन्मदिन का पूरा पूरा भाग जा रहा है। इसका मतलब दोनों एक दूजे की जिंदगी में पूरा पूरा भाग लेंगे। इंजीनियरिंग की आड़ी-टेडी गणित तक लगा ली। बिना बात किये पूरे विश्वास के साथ मैं पिछले 30 मिनट से उसे महसूस कर सपनो के एक सुंदर शहर में दाखिल हो चुका था।
वो हरियाणा के फरीदाबाद की रहने वाली है, मैंने गूगल मैप से अपने शहर जयपुर ओर उसके फरीदाबाद की दूरी का आंकलन लिया। 269 किमी दूर थी वी मुझ से ओर मेरी i10 गाड़ी से लगभग 6 घंटे दूर।
यह सब देखना बेवकूफीभरा तो है, लेकिन जब कोई पहली नजर में अच्छा लगे तो समझ लीजिए कि हर बेवकूफी खूबसूरत हैं। हर किसी को ऐसी बेवकूफी एक बार जरूर करनी चहिए, दोस्तो के बीच जब बैठे तो कुछ ऐसा हर किसी के पास होना चाहिए जिसे सुना कर बेवकूफी का तमगा हासिल किया जा सके।
उसके एक्टिविटी में देखा कि उसे कविताये पसंद है, उसने किसी कविताओं के पेज को लाइक कर रखा था, मेरे लिए इस से अच्छी बात ओर क्या हो सकती है।
मैने उसकी आई०डी० की सूचना को बड़ी बारीकी से देखा, काश अगर मैंने इतनी बारिखी से इंजीनियरिंग को देखा होता तो शायद आज मैं नासा मैं स्पेस वैज्ञानिक होता।
मैं बस अब उस से यह पूछना चाहता था कि, तुम आसमाँ की दुनिया छोड़ इस धरती पर क्यों आई हो। जितनी उत्तेजना थी उतनी ही झिझक ओर डर भी। डर यह की कही बात ही न करे तो क्या होगा सारे सपने छन से टूट जायँगे। झिझक यह की बात हुई तो अपनी बात कैसे शुरू करूँगा।
एक उलझन मन को और सता रही थी कि पहले मैसेज भेजू या फ्रेंड रिक्वेस्ट। काफी देर सोचने के बाद निर्णय लिया कि पहले दोस्ती के लिए निमन्त्रण देते है और फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजते है। लेकिन उसकी आई०डी० मैं तो फ्रेंड रिक्वेस्ट का कोई ऑप्शन ही नही है।
अब निर्णय लिया गया कि मैसेज किया जाये, ओर पहला मेसेज मैने लिखा "नमस्ते"
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