"लकी चार्म"
"लकी चार्म"
विनय पूरे घर में कुछ ढूंढ़ रहा है। सोफे के नीचे से लेकिन बाहर बागवानी तक उसने सब कुछ खंगाल लिया है। झुंझला कर अब उसके चेहरे का रंग फीका पड़ा जा रहा है। आज बहुत परेशान लग रहे हो बेटा।।.....क्या बात है?? माँ के यह शब्द जब कानो में गिरे तो विनय सकपका गया।
विनय-----"आज मेरा बहुत ही बुरा हो गया है माँ, मैंने आज वो चीज़ खो दी जो मेरी कामयाबी के पीछे है। ऐसा लग रहा है को जिंदगी ही खो दी है मैंने। आज से मेरी बुरी किस्मत शुरू हो गई है"।
माँ-----"अरे हुआ क्या है ऐसा.!! क्यों बहकी-बहकी बाते कर रहा है। आज से पहले तुझे इतना परेशान नहीं देखा। अब जरा मुझे भी बतयेगा की मेरे बेटे की चिंता की वजह क्या है?? "
विनय-----"माँ, मेरा लकी बैंड गुम हो गया। आपको तो पता है न कि मैं टेनिस मे कितना फैल हो चुका था। किसी भी टूर्नामेंट मे अच्छा प्रदर्शन नही कर पा रहा था। जब से मैने मेरा लकी बैंड पहना है। तब से हर टूर्नामेंट मैं मेने मैडल जीते है।"
माँ-----"तूने अच्छे से ढूंढ़ लिया क्या?? चिंता न कर यही कही होगा। मैं आज ढूंढ़ के दे दूंगी। तू जा तेरे टूर्नामेंट का वक़्त निकला जा रहा है। "
विनय-----"अच्छा माँ, मैं निकलता हूँ। पता नही आज क्या होगा मेरा।"
उधेड़-बुन मैं बिना खाना खाये टूर्नामेंट के लिए निकल जाता है।
विनय---- " शाम को थका-हारा घर आता है, आते ही रुहासा हो माँ के गले लग जाता है। माँ मैं खत्म हो गया हूँ, अश्रुधार निकल पड़ी। आज मेरे पास मेरा लकी बैंड नही था और रोजाना मैडल जितने वाला तेरा बेटा आज खाली हाथ घर लौटा है। माँ मेरा टेनिस का बहुत बड़ा खिलाड़ी बनने का सपना टूट गया।"
माँ-----"चुप हो जा बेटा, ऐसा कुछ नही हुआ है। आज मैंने सारे दिन तेरा लकी बैंड ढूंढा। तब कही जाकर तेरे आने से कुछ टाइम पहले ही मुझे यह किताबो के बीच मिला। बहुत मैला हो रहा था। मैंने धोकर सूखा दिया। जा देख ले छत की तनी पर कपड़ो के साथ सुख रहा है...जा ले ले"
विनय-----"ओह माँ, तू कितनी प्यारी है!! कितनी चिंता है आपको मेरी। यह कहते हुए भाग कर छत पर गया और लकी बैंड को देखते ही उछल पड़ा। थैंक यू गॉड☺मेरा लकी बैंड वापस मुझे देने के लिए। खुशी-खुशी माँ के पास आया और बोला। देखना माँ कल फिर मैं मैडल लेकर आऊंगा "
दोनों गले मिलते है। और माँ उंगलियों से विनय के बाल सहलाने लग जाती है।"
अगले दिन विनय टेनिस कोट मैं अच्छा प्रदर्शन करते हुए रजत पदक पा लेता है। लकी बैंड होते हुए भी विनय आज तक रजत तो जीतता रहा है। लेकिन कभी भी स्वर्ण नही जीत सका। शाम को माँ को मैडल दिखाते हुए देखो माँ आज फिर मैंने रजत जीता है।
माँ-----"मेरा बेटा स्वर्ण कब जीतेगा...कब मैं स्वर्ण जितने वाले कि माँ होने पर इतलाऊंगी☺☺"
विनय---"माँ जरूर वो दिन भी आयेगा। ओर दोनों हसते हुए गले लगते है।"
विनय रोज दर रोज कठिन मेहनत करता जा रहा है और अच्छा खेलता जा रहा है। एक दिन फिर लकी बैंड कही गुम हो जाता है। और विनय फिर दुखी और शंकाओ से घिर जाता है। हर वक़्त की तरह अपनी माँ को अपनी समस्या बताता है।
विनय-----"माँ आज, फिर मेरा लकी बैंड गम हो गया है। अब फिर मेरा बुरा वक्त शुरू होने वाला है। माँ मैं क्या करूँ। "
माँ-----"बेटा!! आज तुझे कुछ बताना है जो तुझ से मैंने छिपाया है। तेरा लकी बैंड आज नही खोया, वो उसी दिन खो गया था जिस दिन तुम रो रहे थे और मैंने तुम्हें कहा था कि बैंड छत की तनी पर से लिया था। "
विनय-----"क्या बोल रही हो माँ "
माँ-----"हाँ बेटा, उस दिन बहुत ढूंढने पर भी मुझे तेरा बैंड नही मिला था तो मैं कपड़ो की पुरानी दुकान पर गई। वह तेरे बैंड का हु बु हु पुराना बैंड देखा ओर खरीद लिया। मैने तुझ से झूठ बोला था बैठा। मुझे पता था कि तु उसे लकी मानता था। इसलिए मुझे यह सब करना पड़ा।"
विनय-----"माँ, कितनी बुरी ही तुम। मुझसे झूठ बोला आपने। "
माँ-----"बेटा तेरे भले के लिए मुझे कुछ भी करना पड़े तो मैं करूंगी। तुझे यह बताने के लिए की तू तेरी मेहनत से मैडल जीतता आया है, किसी बैंड के कारण नही!! यह बताने के लिए मुझे यही रास्ता मिला। तेरी मेहनत ही तुझे मैडल दिलाती है अगर तू बैंड के कारण जीतता तो तू स्वर्ण जीतता न कि रजत।
तूने मन मैं यह बैठा लिया है कि बैंड ही तेरी जीत कारण है..कही न कही तू यह भूल गया कि तेरी मेहनत हर किसी लकी चार्म से ज्यादा बडी है। मैं चाहती तो आज भी दुकान से बैंड लाकर तुझे झूट-मूठ मैं दे देती। लेकिन वो तुझे सच का ज्ञान नही करा पाता। तुझे तेरी मेहनत की शक्ति का पता नही चल पाता। तुम फिर किसी ऐसे झूठ मैं फस जाते ओर फसते ही जाते। अंत मे तुम अंधविश्वास के जाल में ऐसे फस जाते जहा से कभी बाहर नही आ पाते। सफलता की वास्तविक कारण तुम्हारी मेहनत है। यह सच हमेशा के लिए गौण हो जाता।
लकी चार्म जैसा कुछ नही होता। यह बैड किसी भी आलसी को मैडल नही दिला सकता। मेहनती को किसी बैंड की जरूरत नही। मेहनतअपनी हिम्मत के बल पर सब प्राप्त कर लेती है। इन सब से बाहर निकलो ओर सच का सामना करो"
अब विनय का मन स्थिर था। माँ ने आज उसे सच की राह दिखाई है। उसे आज आत्मबोध हो गई। अब माँ के लिए मन मे कोई शिकायत नही थी बल्कि माँ के लिए सम्मान और बढ़ गया था। मन ही मन विचार उठ रहा था,, कितनी प्यारी है मेरी माँ।
अगले दिन टेनिस कोर्ट मे, विनय की कलाई पर वो बैंड नही था जो उसकी पहचान थी लेकिन गले मे रजत की जगह गोल्ड मैडल था। उसे एहसास हो गया था कि लकी चार्म केवल एक झूठ है और मेहनत केवल एक सच।।
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