"आत्म कुरुक्षेत्र"
"आत्म कुरुक्षेत्र"
कुरुक्षेत्र रूपी शरीर के रण में घमासान मचा है। अज्ञान के अनगिनत रूपी कौरव और पुरुषार्थ रूपी पंच पांडव इस आत्मयुद्ध के किरदार है। कौरवो को पथभर्मित करने की पूर्ण जिम्मेदारी मन रूपी शकुनी पर है तो वही पंच पुरुषार्थ का मार्गदर्शन आत्मा रूपी कृष्ण के हाथों में है।
भृमित बुद्धि के किरदार दुर्योधन की दृष्टि को भयभीत मन के के परिचायक शकुनि ने हर लिया है। मन ने बुद्धि पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त कर लिया है। चहूँ दिशा उसे तो केवल मन द्वारा फैलाया अज्ञान ही ज्ञान से नजर आ रहा है, सृजित भय ने मति को जकड़ लिया है।
अज्ञान की सीमा स्तर को पार कर चुकी है। अपनी विजय भीष्म की अमरता मे देखने वाली भृमित बुद्धि भीष्म को अनुरागी अर्जुन से परे ले जाने की साजिश कर रही है। भृमित बुद्धि को भयभीत मन का निर्देश है कि भीष्म की बचाकर ही युद्ध विजय सम्भव है।
भीष्म एक प्रतिज्ञा है, जो समयानुरूप थी, पर यह वक़्त तो सर्वथा विपरीत है। वह भीष्म जो स्वयम की रक्षा न कर पा रहा वो कैसे भृमित दुर्योधन की सुरक्षा करेगा।
आज भृमित बुद्धि रूपी दुर्योधन का आत्मा रूपी कृष्ण के अंदर सम्माहित अनुरागी अर्जुन से सामना है। अज्ञान और ज्ञान में महायुद्ध में अंधेरे का तो अंत निश्चित ही है। पर क्या यह वाकई अंत है या केवल एक छलावा।
परमार्थ की जननी आत्मा के साथ आज दुर्गुणों की कुमाता बुद्धि और उसके लापरवाह पिता मन के साथ संघर्ष है। आतार्किक और पाप के साये में जीवित मन और भृमित मति का का अंत तो अलौकिक तर्क से ही संभव है।
लेकिन क्या यह मन और बुद्धि का अंत है...! क्या बुद्धि और मन अपनी नियति की दिशा में गमन कर रही है। सर्वथा नही..! यह अंत नही है। यह तो एक जरिया मात्र है बुद्धि को मन के कारावास से मुक्त करने का। यह विजय नही यह तो बदलाव मात्र है।
भृमित मति को निष्पक्ष मति में बदलने का बदलाव। मन पर आत्मा के नियंत्रण का बदलाव। आज्ञान पर ज्ञान के स्थापित होने का बदलाव। आंतरिक अंधेरे पर सास्वत प्रकाश के केंद्रित होने का बदलाव।
यह भौतिक युद्ध नही यह तो मानसिक और आत्मिक युद्ध है। जहाँ न हार के लिये स्थान न ही विजय के लिये जगह। यह समस्त देह भूमि, मन भूमि, आत्मभूमि और चेतन भूमि में मात्र बदलाव मात्र के लिये ही स्थान है।
यह अंत नही शुरुवात है। एक भृमित बुद्धि और भयभीत मन के केंद्र में परमार्थ बुद्धि और साहसी आत्मा का वास तो होता ही है। मन और बुद्धि के अंत के साथ इन दोनों का भी अंत निश्चित है। अतएव यह मात्र बदलाव है। बदलाव जो गलत से सही मार्ग की और है।
कोई अन्य दुर्योधन या शकुनि ही इसे अंत की संज्ञा देगा। अनुरागी अर्जुन और आत्मा रूपी कृष्ण के लिए तो यह आरम्भ का प्रथम कदम है।