मोह के धागे
मोह के धागे
आज 31 दिसम्बर है। साल का अंतिम दिन। इस साल के साथ ही कामना भी कुछ खत्म करने वाली है। 40 साल की दाग रहित लोक सेवा पूर्ण कर आज कामना सेवा से निवर्त हो रही है। जिंदगी के अमूल्य 40 साल जिसमे युवा, अधेड़ अवस्था गुजर आज बुढ़ापा दहलीज़ पर दस्तक दे चुका है।
गीता ओर एक शॉल के साथ कामना सदा-सदा के लिए उस ऑफिस से विदा हो रही है, जहा उसने अपनी जिंदगी के अनेक साल, सावन, साथ, सपने, हकीकत ओर न जाने क्या क्या जो कुछ याद है और कुछ विस्मित हो चुका है, गुजारा है।
सेवानीवर्ती के साथ ही हाथ मे कागज़ पकड़ा दिया गया कि आप को कल से ऑफिस नही आना है। आपकी मासिक पगार बंद की जाकर मासिक पेंशन शुरू की जाती है। साथ ही ऑफिस के व्हाटसअप ग्रुप से भी हटा दिया जाता है। उनकी जगह उनकी कनिस्ट सरला को निर्देश दिया जाता है, की आज ही कामना का कार्यभार ले ले। कुर्सी, कमरा सब किसी ओर को आवंटित किया जाता हैं। संसार का नियम मानते हुए कामना ने खुशी खुशी यह स्वीकृत कर लिया।
अगले दिन न कामना के पास गाड़ी थी, न ही सरकारी नौकर। आदेश दिया गया कि एक माह में सरकारी आवास खाली किया जाए। कामना ने एक जागरूक नागरिक की भांति यह सब स्वीकार किया और वो सभी सुविधाएं जो मिली थी। त्याग दी।
अब उसे हर काम अपने हाथ से करना होता था। धीरे-धीरे ऑफिस में साथ रहे लोगो का भी फ़ोन आना बंद हो गया।
सोचा क्यों न अपने बेटे के साथ रहा जाए। सुबह की बस से भरतपुर पहुच गई। बेटा करण एक सरकारी मुलाजिम था। हज़ारो सपनो के साथ यहा रहने आई। लेकिन यह क्या न बेटे को वक़्त न बहु को। पोते-पोती भी होस्टल चले गए। जिस बेटे के लिए कामना ने कई राते बिना सोये गुजारी, उसके पास माँ के लिये एक सेकंड तक नही।
बूढ़ा ओर जर्जर हो चुका शरीर भी अब साथ नही दे रहा। कभी घुटने तो कभी याद साथ छोड़ रहे है।
एक दिन जब अकेली कामना घर मे बैठी होती है, तो उसे पुराना एल्बम मिलता है। जिसमे उसकी कई यादे है। अपने पति की याद जब वो पहली बार मीले थे। उनकी शादी की याद। बेटे करण का बचपन। आफिस का पहला दिन। सखियो का साथ ओर ब न जाने क्या क्या?
अब कामना की आँखों मे, आँसू थे। कभी अपनो से घिरी रहने वाली कामना आज एक दम अकेली है। जवानी ने साथ छोड़ा फिर पति ने फिर उस घर ने जहा वो पहली बार दुल्हन बन कर आई फिर उस नौकरी ने जिसके पीछे 40 साल गुजारे, फिर नौकरी में साथ रहे सहकर्मियों ने, फिर बेटे ने फिर घुटनो ने ओर एक दिन यू ही जिंदगी भी साथ छोड़ देगी।
अगली सुबह जब कामना जगी तो उसके पास भविष्य के लिए कोई योजना न थी। न वो पाने को लेकर ख़ुश थी न खोने को लेकर आशांकित। बोध हो गया था दुनियाँ क्षणभंगुर ही। पल-पल बदल रही है। और जो इसे एक जगह रोके रखना चाहता है वो क्या है............सिर्फ मोह।
जन्म, मरण, बदलाव, खोना, पाना, पाकर खो देने यही सृस्टि का विधान है। और विधान ही मोह है।