"बिना तेरे, मैं कुछ नही"
"बिना तेरे, मैं कुछ नही"
सुबह सुबह आज पार्वती ने पहली बार कुछ ऐसा किया कि, देख कर यकीन न हुआ। सर पर दुपट्टा रख, हाथ में पूजा की थाली, जिसके एक कोने पर तांबे के पात्र में जल और पलाश के पीले फूल। गेंदे के पुष्प की बनी माला और इत्र की एक छोटी सी शीशी।
नास्तिक पार्वती पहले दफा आज मंदिर की सीढ़ियों का आलिंगन कर रही थी। सामने बैठे शिवलिंग भी आज मुस्करा दिए। पार्वती के मन में जहाँ ज्यादा उधेड़ -बुन थी वही प्राचीन शिव मंदिर के स्थापित शिवलिंग पार्वती का दर्ष्यालिंगन कर मचल रहा था।
शिवालय में ज्यूँ ही कदम रखे, ऊपर से टनकारा बज उठा, शिवालय का जर्रा जर्रा आज आनंदित था। इत्र से ज्यादा पार्वती अपनी महक से महक रही थी।
22 साल बाद आज शिव के तीसरे नेत्र में चमक थी। त्रिलोकी का ध्यान आज हवा हो चुका था, कामदेव को नियंत्रित करने वाले आदि अनंत के स्वामी भी कामपाश के बंदी थे।
पार्वती की आभा दुर्गा के 7 रूपों का मिश्रण था, तो शिव सृष्टि के कण कण के स्वामी। दोनों एक दूजे के पूरक और दोनों बिन एक दूजे के पूर्ण अधूरे।
आज तलक पार्वती खुद में शिव ढूंढती थी, और शिवालय का शिवलिंग दुनिया में पार्वती को ढूंढता रहा।
दोनों बंधे अंतर्मन से पर जिव्हा तो निःशब्द और मृत शव के समकक्ष। न शिव कुछ कहे न पार्वती के मुंह से कुछ निकले। सदियों से पूजनीय नारी के समक्ष आज नर रूपी शिव फिर नतमस्तक।
अंततः नंदी के स्वामी तीनों लोक के संहारक का धैर्य विचलित हो ही गया। त्रिनेत्र जो संहार का स्तोत्र था आज प्रेम का चित्र बन गया। आज फिर स्त्री विजय हुई नर आज फिर स्त्री का गमन करने लगा।
अंततः पार्वती की रक्तसम लाल जिव्हा से कुछ वेदबोली सुनाई दी। प्राणनाथ शिव आप दुनिया के स्वामी है और मैं आपकी। प्रेम का जन्म आपसे है और पालन मेरे आँचल में। आप भले ही काम सही, भूत सही, भविष्य सही, पर रति ओर वर्तमान तो मुझ में ही समाया है।
बिना वर्तमान के भूत और भविष्य निश्चफली है। बिना रति के काम बेकार है। अगर आपको सम्पूर्ण होना होगा तो अपने पूरक का आव्हान तो करना होगा।
बिन एक के दूजा खंडित है, लेकिन पुकार तो हमेशा काम की होगी तभी रति दौड़ कर आयेगी। आपके दर आना मेरा कर्तव्य और मुझे अपना बना लेना आपका अधिकार, आगे विचार सिर्फ आपका!!
शिव के चेहरे पर मुस्कान थी तो पार्वती भी खिलखिला रही थी। सच प्रेम के पूरक तो दोनों है, दोनों के प्रेम की एक ही मंजिल, पर शुरुआत तो शुरुआत ही है, शिव ही तो शुरू (आदि) ओर शिव ही तो खत्म (अंत) है।।