मरा मीडीया
मरा मीडीया
आज कलम ख्यालों के खिलाफ बल से बंधी हो सर्जन की जगह विनाश का लेखन कर रही थी। आज नसों में रक्त की बजाय विष मचल रहा था। रोम-रोम आनन्द की जगह दुर्गंध जो फैला रहे थे। पहली दफा था जब किसी की लेखनी दौलत के जाल में फंस गई। जिस चश्मे से सच ढूंढा जाता था उससे ही आज सच धुंधला दिखते दिखते ओझल हो गया। सब सूना-सूना था। होता भी क्यों न हृदय ने आज प्रथम दफा समझौता किया। किसी के समक्ष आज घुटने टिक गए थे। रुबिली आर्च की आकृति ली हुए पीठ आज झुकने लगी थी।
शब्द बिकने लगे थे, कहानियां सच से कम और पाखंड से ज्यादा करीब थी। वास्तविकता का एक कतरा भी झूठ के चक्रव्यूह में न झांक पा रहा था। यह कहानी नहीं, यह सच है। सच्चाई है मेरे देश के मीडिया की। झूठ के कालेपन से सच की सफेदी को नितार कर जनता को परोसने वाला या तंत्र सच को पर्दासिन कर झूठ की मिठास से सब को मधुमय करने की फिराक में है। जी हाँ, लोकतंत्र के चतुर्थ स्तम्भ कहे जाने वाले संचार माध्यम की यह काली सच्चाई है। मेरा देश इसके संक्रमण की गिरफ्त मैं है। अब सच्चाई की गलियों से ऊपर झूठ के बैरीकेटर है। सच की खबरों का शहर उजड़ चुका है। झूठ के महल बन चुके है। भटक चुका मीडिया ने नैतिकता की हत्या कर दी है। यह दुखद है, बहुत दुःखद लेकिन यह मेरे देश के मीडिया की सच है, सच्चाई है।
विराट कोहली का कुत्ता मर गया, मरने से पहले उसने क्या खाया, किस शैम्पू से नहाता था..इत्यादि, सब को बखूबी दिखाया। बस भूल यह गए कि पन्द्रह मजदूर सैकड़ो कि०मी० पैदल चल कर थक कर पटरी पर ही सो गए। ज्यादा ज्ञानी नही थे वो, बस इतना पता था कि रेल नहीं चल रही। यह पता नहीं था कि मालगाड़ी भी रेल ही होतीं है। जब नींद की गिरफ्त में थे तो क्या पता था कि नरभक्षी रेल उनके चीथड़े करते हुए निकल जाएगी।
सूखी बासी रोटियां मांस के छितरो में मिल गई। ट्रैक पर बस पीछे रह गई तो वो टूटी चप्पलें जो उन बदनसीबों ने सड़क पर पैर रगड़-रगड़ कर घिस दी थी। इन चप्पलों ने सिवाय उन मृत शवों के पांवों में छाले किसी को न दिखे, जो सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलने से पड़े थे।
मीडिया यह सब दिखाना भूल गया। बस व्यस्त रहा यो यह दिखाने में कई रूस की मिसाइल हिन्द महासागर में फट गया। कोहली का कुत्ता मर गया। कैटरीना बर्तन धो रही है। फला एक्टर ने अपनी प्रेमिका को वीडियो कॉल किया जिसका वीडियो...इत्यादि।
लगता है लोकतंत्र का चौथा खम्बे को धन के बल पर खरीद लिया गया है। जो मीडिया कल तक सच्ची खबरों का शहर लेकर आता था, आज वो शहर उजड़ चुका। अब इसकी गलियां सूनी-सूनी है।
