कुमाता भाग १५
कुमाता भाग १५


सार्वभौमिक सत्य है कि जीवन का कुछ काल अपने पिता के घर रहने बाली बेटियां जीवन भर अपने पितगृह का कल्याण चाहती हैं। आजीवन पिता, माता और भाइयों का शुभ ही चाहती हैं। जरा सा मान देने पर प्रसन्न हो जाती हैं।
भले ही कानूनन पिता की संपत्ति पर बेटियों का भी अधिकार है। पर आज भी अधिकांश बेटियां संपत्ति के बदले मात्र भाई का स्नेह ही चाहती हैं।
अनेकों बार जब बुजुर्ग माता पिता की देखभाल कतिपय कारणों से भाई नहीं कर पाता (वे कतिपय कारण दूर नौकरी भी हो सकती है अथवा भाई का माता पिता से मोह न होना भी अथवा ऐसा भी कि भाई के स्थान पर आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव हो), उस समय बेटी खुद बेटे की भूमिका निभाती है। यद्यपि पति गृह में बेटी की जिम्मेदारी भी कम नहीं होती। फिर भी वह अपने बुजुर्ग माता पिता के प्रति जिम्मेदारी से पीछे नहीं हटती।
भारत ही नहीं अपितु विश्व के सभी देशों की बेटियों का आचरण यह सत्य स्वीकार करने के लिये पर्याप्त है कि बेटियां स्नेह करने के मामले में बेटों से बढकर ही होती हैं। फिर भी पता नहीं क्यो लोग बेटियों की उपेक्षा करते हैं। बेटों की चाहत में आज भी अनेकों बेटियां गर्भ में ही मार दी जाती हैं।
महाराज दशरथ और महारानी कौशल्या ने अपनी बेटी का परित्याग किया। पर उस निंदित आचरण का कारण कहीं से बेटी से प्रेम न होना नहीं था। राजधर्म पिता और माता के धर्म पर भारी पड़ा था। हालांकि उस समय महाराज दशरथ अवध देश के महाराज न थे। वह अवध के युवराज ही थे। फिर भी प्रजा के दुख और सुख को अपना ही दुख और सुख मानते थे। जो उनके रक्त का प्रभाव था।
दूसरी तरफ उस समय की राजकुमारी कौशल्या भी अपने पति की हृदयांगी अपने इन्हीं गुणों के कारण ही तो थीं। विवाह के कुछ समय बाद ही महारानी कौशल्या गर्भवती हो गयी। स्वास्थ्य लाभ के लिये अपने मायके रह रही थीं। युवराज दशरथ बीच बीच में समय निकालकर उनसे मिलने जाते रहते थे। युवराज, पति और आगामी संतान के पिता के धर्मों का एकसाथ पालन कर रहे थे।
वह दिन उनके जीवन में दुखों की बाढ ले आया जबकि एक तपस्वी ने उन्हें बताया कि राजकुमारी कौशल्या की गर्भस्थ संतान अवध के लिये कष्टदायी होगी। यदि जन्म के बाद उसे अवध में लाया गया तो अवध पर अनेकों प्राकृतिक आपदाएं आयेंगी। प्रजा भूखों मरने लगेगी। जिस अवध का वैभव संसार में प्रसिद्ध है, वह अपनी गरीबी और दुर्दशा के लिये जाना जायेगा।
एक सत्य यह भी है कि मनुष्य चमत्कार को नमस्कार करता है। जो दिखा, उसके अनुसार भविष्यवाणी करने बाले बड़े सिद्ध संत थे। श्रद्धा अनेकों बार सोचने समझने की शक्ति को नष्ट कर देती है। अनेकों बार पाखंड खुद धर्म का रूप रख ऐसा अधर्म करा देता है जिसका कोई भी प्रायश्चित नहीं होता। पाखंडी मन से खेलना भली प्रकार जानते हैं। दशानन रावण का वह मायावी राजकुमार दशरथ और राजकुमारी कौशल्या के मन से खेल रहा था।
हमेशा दो चार समझदारों से विचार कर आगे कुछ काम करना चाहिये। पर जब विचार शक्ति पर ही माया का पर्दा पड़ा हो तो ऐसा संभव नहीं है।
यदि युवराज दशरथ अपने पिता महाराज अज से सब सत्य बताते अथवा गुरुदेव वशिष्ठ से राय लेते तो निश्चित ही रावण का कुचक्र उसी समय सामने आ जाता। शायद ऐसे धूर्त मायावी मनुष्य को सम्मोहित भी कर देते हैं। फिर समझदार मनुष्य भी मूर्खता भरे कदम उठा लेता है। जीवन पर अपनी मूर्खता को संसार से छिपाये रखता है।
राजकुमारी कौशल्या ने उचित समय पर एक कन्या को जन्म दिया। उसकी भोली सूरत पर मोह गयीं। पहली संतान और उसे भी प्रजा की भलाई के लिये त्याग देना कोई आसान काम न था। प्रजा के हित की कामना से भविष्य के प्रजावत्सल नरेश और प्रजावत्सल महारानी वह महान पाप कर बैठे जिसके दंडस्वरूप आज तक संतान सुख से बंचित थे। अनेकों जन्मों की तपस्या निष्फल हो रही थी।
सत्यवादिता की प्रतिज्ञा लिये मनुष्य कभी भी अपने मुख से झूठ नहीं बोलते। पर आपत्ति के समय अनेकों तरीके होते हैं। न तो राजकुमार दशरथ ने कुछ झूठ कहा और न राजकुमारी कौशल्या ने। पर झूठ फैला क्योंकि उनके निर्देश पर दाई झूठ बोलने में सक्षम थी। ऐसे झूठ पर अविश्वास करने का कोई कारण भी न था। वहीं राजकुमार दशरथ और राजकुमारी कौशल्या की वह पुत्री अवध से बहुत दूर राजकुमार दशरथ के बचपन के मित्र एक राजकुमार के घर पल रही थी। परित्याग के बाद भी बेटी की खुशियां का पूरा ध्यान रखा गया।
अवध नरेश बनने के बाद व्यस्तता में भले ही उस पुत्री के वियोग का दुख कुछ कम हुआ। पर सर्वदा तो समाप्त नहीं हुआ। इतने समय बाद भी महाराज दशरथ और महारानी कौशल्या अपनी बेटी को एकांत में याद कर लेते थे। दूसरा सत्य यह भी था कि उस दुख को कम करने के लिये ही वह दिन रात प्रजा के हित में लगे रहते थे। शायद राजधर्म निभाकर दोनों अपनी भूल का प्रायश्चित कर रहे थे।
महाराज दशरथ की वह कन्या निश्चित ही असुरों का वध नहीं करेगी। पर असुरों का वध कर धर्म की स्थापना करने बाले भगवान श्री राम के धरा पर अवतार की राह वही बनेगी। केवल उसी के आह्वान पर भगवान धरती पर आकर मानव लीला करेंगे। अनेकों वरदानों और देवों को आश्वासन देने के बाद भी यदि भगवान अभी तक शांत थे तो मात्र अपनी बहन को सम्मान दिलाने के लिये। मात्र माता और पिता की बेटी से मिलन के लिये। मात्र इस सत्य को प्रतिपादित करने के लिये कि बेटियां कभी भी पिता के लिये अहितकर नहीं होती हैं। मात्र यह सिद्ध करने के लिये कि अनेकों भेदभाव के बाद भी बेटी पिता का हित ही चाहती है।
बेटी की वर्तमान स्थिति ज्ञात कर लेने के बाद भी महाराज दशरथ और महारानी कौशल्या वह साहस जुटा नहीं पा रहे थे कि अपनी बेटी से क्षमा मांग सकें। बेटी के प्रश्नों के सही उत्तर दे पाने में खुद को असमर्थ पा रहे थे। बेटी का सामना कर पाने में अक्षम थे।
महाराज दशरथ और महारानी कौशल्या तो कुछ कर न पाये। पर अपने पति और बड़ी बहन के समान महारानी कौशल्या के दुखों को दूर करने के लिये महारानी कैकेयी एक बार फिर से मुनि श्रृंगी के आश्रम को निकल लीं। पर इस बार वह मुनि से मिलने नहीं जा रही थी। महारानी कैकेयी जा रही थीं, महाराज दशरथ और महारानी कैकेयी की उस बेटी शांता से मिलने जो उन्हीं तपस्वी श्रृंगी की धर्मपत्नी थीं। महर्षि वशिष्ठ द्वारा खुद कोई अनुष्ठान न कर महाराज दशरथ को महर्षि श्रृंगी के पास भेजने का कारण स्पष्ट था। महर्षि वशिष्ठ से कुछ भी रहस्य छिपा नहीं है। महाराज को पुत्र प्राप्ति करायेंगे तो महर्षि श्रृंगी ही।जो कि महाराज दशरथ की पुत्री शांता के पति हैं।
महर्षि श्रृंगी ने महारानी कैकेयी को शांता से मिलने से नहीं रोका। यही तो वह चाहते थे। वैसे अनेकों राजकुमारों को ठुकराकर एक तपस्वी को पति चुनने बाली शांता को महाराज दशरथ की धन संपदा में कोई रुचि थी, ऐसी कल्पना भी छोटी सोच का द्योतक होगी।
" माॅ। क्या यह सत्य है। क्या आप भी इसपर विश्वास करती हैं। क्या एक पिता और माता राजधर्म निभाने के लिये, प्रजा के कल्याण के लिये अपनी पहली संतान को त्याग सकते हैं। लगता तो नहीं। वैसे असंभव कुछ भी नहीं है। पर किसी भी सत्य की सत्यता तो तभी सिद्ध होती है जबकि परिस्थितियां समान हों। यदि प्रजा के हित के लिये कन्या का त्याग किया जा सकता है तो प्रजा के कल्याण के लिये पुत्र का त्याग भी किया जा सकता है। "
शांता का तर्क हर तरीके से सही था। जब तक समान परिस्थिति न हों, कुछ भी कहा जा सकता है। क्या महारानी कैकेयी ऐसा कर सकती है। वह भी तो अवध की रानी हैं। क्या भविष्य में अवध के उत्थान के लिये वह अपने पुत्र का परित्याग कर सकती हैं। क्या ऐसा करते समय एक माता की ममता उन्हें रोकेगी नहीं। प्रश्न अनेकों हैं। इनका उत्तर भी उन्हीं परिस्थितियों में दिया जा सकता है। अभी तो इस प्रश्न का उत्तर केवल मौन ही है।
कुछ देर रुककर और माता कैकेयी के भावों का अवलोकन कर शांता फिर से बोलने लगी।
" माता। निश्चित ही मैंने आपके गर्भ से जन्म नहीं लिया है। निश्चित ही आयु में भी आप मुझसे बहुत ज्यादा बड़ी नहीं है। फिर भी मैं जानती हूं कि आप एक महान नारी हैं। आपने अपने पति के लिये अपने प्राणों को भी संकट में डाल दिया था। माता। एक सत्य यह भी है कि बेटी कभी भी अपने पिता का अहित नहीं चाहती। बेटी हमेशा अपने पिता का कल्याण चाहती है। अवसर मिलने पर पिता के प्रति अपना धर्म निर्वाह करने में कभी भी पीछे नहीं हटती यद्यपि उसका प्रमुख धर्म ही पति की सेवा करना बताया है। माता। आपने सावित्री की कहानी तो सुनी ही होगी। देवी सावित्री को जब यमराज ने वर मांगने को कहा था तब उसने पहले वर में अपने ससुर को उनका राज्य मांगा था। फिर दूसरे वर के रूप में अपने पिता के लिये पुत्रों की ही याचना की थी। निश्चित ही विवाह के बाद एक कन्या पहले अपनी ससुराल की चिंता करती है जो कि उसका धर्म भी है। पर वह अपने मायके को कभी भी नहीं भूलती। यही सत्य है। आपकी बात सत्य हो सकती है कि पिता जी ने मेरा परित्याग केवल प्रजा की भलाई की इच्छा से किया था। पर यह बात निश्चित ही सत्य है कि पिता से परित्यक्ता होने पर भी मैं अपने पिता का कल्याण चाहती हूं। मैं अपने पिता को सुखी देखना चाहती हू। माता। आप निश्चिंत रहें। आपके जामाता निश्चित ही वह अनुष्ठान कराने अयोध्या आयेंगे जिसके बाद अयोध्या को भावी नरेश की प्राप्ति होगी। "
एक बेटी की ऐसी उदारता के प्रतिउत्तर में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। बेटियां निस्वार्थ भाव से पिता का हित चाहती हैं। यही सत्य है।
जिस तरह पति के सम्मान की रक्षा करना एक पत्नी का धर्म है। ठीक उसी तरह पत्नी को यथोचित सम्मान दिलाना एक पति का दायित्व है। महर्षि श्रृंगी अब अपनी पत्नी को सम्मान दिलाने के बाद ही अयोध्या में अनुष्ठान करेंगें। भगवान को धरा पर उनकी बहन लेकर आयी। बाल्मीकि रामायण का यह प्रसंग उपयुक्त होने पर भी जनमानस के मन में क्यों रहस्य बन गया, यह बहुत बड़ा रहस्य है।
बेटियां भी बेटों के समान दायित्व निर्वाह करती हैं। इसमें कुछ भी संदेह नहीं है।
क्रमशः अगले भाग में