कठपुतलियां

कठपुतलियां

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" रमेश के पिताजी आर्मी में थे और शहीद हो गए।"

" पेंशन मिली थी लेकिन रमेश कमाने चला गया।'

वो काफी होशियार था तो एक महानुभाव के कहने पर कॉलेज ज्वाइन कर ली।

और अब वो कॉलेज से आया हुआ है।

" अरे ! रमेश तू क्या कर रहा है।

"अंकल जी फिलहाल तो कॉलेज कि छुट्टी है और घर पर थोड़ा बहुत पढ़ लेता हूं।

रमेश अच्छा खासा होशियार लड़का है, बस वो लोगो की बातो में आ जाता है।

और ये ही डर उसके घरवालों को लगता है कि कहीं पिछली बार की तरह ये पढ़ाई न छोड़ दें।

पहले भी 12 वीं के बाद लोगो के कहने पर कमाने दिल्ली चला गया था।

और 6 माह बाद लौटा तो कॉलेज में एक साल लेट हो गया।

और अब भी रमेश शाम को चौपाल में बैठता है और यही शब्द भंडार सुनता है।

आखिर एक दिन रमेश फिर चला गया कमाने और 2 साल बाद लौटा लेकिन अब पढ़ नहीं सकता है।

क्योंकि पढ़ाई तो छोड़ चुका है वो और यूपीएससी कि तैयारी करने वाला रमेश आज एक कम्पनी में मैनेजर है।

हमने समाज में अक्सर देखा है कि कुछ लोग ऐसे होते हैं

जो दूसरो के इशारों को अपनी राह समझते है।

लोगों के कहने पर चलते हैं।

दूसरे लोग एक तरह से उनकी कमजोरी बन जाते हैं।

समाज में ऐसे लोगो का कोई सार्थक जीवन नहीं होता है।

लोगो के कहने पर घर में अजीब व्यवहार करने लगते है, घरवालों को परेशान करते हैं।

अपना जीवन जब खुद जी नहीं सकते हो तो क्या घंटा जिंदगी जी रहे हो।

लोगों को बस इतना कहना पड़ता है, तू ये है, तेरी घर में कोई इज्जत नहीं है,

बस फिर क्या चाहिए, घर आते ही तू, तू मैं, मैं शुरू।

अरे भाई तेरी जिंदगी तू जीना यार, क्यों फालतू बातें में रहा है।

अन्यथा, कठपुतली को तो नचाया ही जाता,

आप नाचने वाले न बनकर जिंदगी को नचाने वाले बने तो बेहतर होगा।


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