कर्मों का फल
कर्मों का फल


गुप्ता जी शहर के प्रसिद्ध प्रोफेसर थे इन छुट्टियों में वे अपने बेटे के साथ हैदराबाद घूमने गए थे साथ ही बेटे के लिए एक लड़की देखने का भी प्रोग्राम था मगर लड़की के परिवार वालों ने 2 दिन देर से आने को कहा टिकट की व्यवस्था के कारण 2 दिन पहले ही जाकर से घूमने की प्लानिंग गुप्ता जी ने की मगर इस बीच सड़क दुर्घटना हो गई (एक्सीडेंट ) बेटा बुरी तरह घायल हो गया लोगों की मदद से उसे अस्पताल ले गए
अस्पताल पहुंचने तक उनकी बेटी की हालत बहुत खराब हो गई और डॉक्टर ने देखकर कहख तुरंत ऑपरेशन करना पड़ेगा
अस्पताल बहुत बड़ा था मोटी रकम लगेगी सोचकर गुप्ता जी एटीएम से पैसे निकलवाने चले गए जब यह काउंटर वापस आए तो ऑपरेशन की तैयारी हो चुकी थी जब उन्होंने डॉक्टर को देखा तो गुप्ता जी हैरान हो गए ,उनका छात्र। एक पल के लिए अजनबी शहर में कोई अपना देख कर खुश हुए और दूसरे ही पल उन्हें याद हो गया कि आज तक की सबसे ज्यादा रिश्वत मैंने इन्हीं से ली थी बहुत मोटी रकम देकर उसे डॉक्टर बनाया था
नकली अंकसूची उनकी आंखों के सामने घूम रही थी उनके बेटा एक तरफ, सोच रहे थे मैंने धोखा किया है यह तो छोटे-मोटे ऑपरेशन ही कर सकता है ।
मेरे बेटे का सिर फूटा है पैर भी टूटा है क्या रे सफल होगा मन ही मन रो रहे थे । मेरे लालच का फल कहीं मेरे बेटे को न भुगतना पड़े उनके पास कोई दूसरा चारा नहीं था वह निशब्द बाहर इंतजार कर रहे थे और ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे।उनका बेटा जल्दी स्वस्थ हो जाए ।वो सोच रहे थे जीवन में कभी मैं किसी को नकली अंकसूची नहीं बना कर दूंगा. मगर वह डॉक्टर सफल नहीं हो पाया।
सच में पहले कहते थे कर्मों का फल कई जन्मों तक भुगतना पड़ता है मगर आजकल जमाना फास्ट हो गया है और कर्म फल भी इसी जन्म में मिलने लगे हैं।