किस्सा राखी का
किस्सा राखी का
राखी भाई बहन का त्यौहार है यह एक पवित्र बंधन है इस त्यौहार को सावन के महीने में मनाया जाता है। इस त्यौहार को मनाने के लिए बहनों को बेसब्री से इंतजार रहता है। इस त्यौहार की कुछ पौराणिक कथाएं भी हैं । जैसे की द्रोपदी ने भगवान श्री कृष्ण के हाथ में चोट लगने पर दुपट्टे को फाड़ कर छोटा सा टुकड़ा बांधा था। तब भगवान कृष्ण ने द्रोपदी को आशीर्वाद के रूप में कहा था कि मैं तुम्हारी आजीवन रक्षा करूंगा। इस तरह और भी कई कहानियां इस राखी के त्योहार की। इस त्योहार में बहन भाई को राखी बांधती है और भाई आशीर्वाद के रूप में आजीवन रक्षा करने का वचन देता है। इस राखी के त्यौहार पर ही मुझे मेरा एक किस्सा याद आ रहा है जो बहुत ही मजेदार है। मेरी नई-नई शादी हुई थी। वह मेरी ससुराल में पहली राखी थी। मैं बहुत खुश थी कि मेरा भैया आएगा और मुझे ले जाएगा। राखी के त्यौहार का उत्साह ही कुछ ऐसा होता है। मुझे घर जाने की बहुत जल्दी थी । लगता था कि
“ना जाने किसी ने मेरे पंख लगा दिए बस उड़ने की तैयारी थी”
घर पहुंच कर खासकर अपने सखियों के साथ मिलकर राखी का त्यौहार मनाने का मन में बड़ा उत्साह भरा था कि जाकर उनके साथ मिलकर राखी का त्यौहार मनाएंगे। मेरी खुशी को देखकर मेरे ससुराल वाले बोलने लगे चलो इसे चिढ़ाते हैं, थोड़ा सा मजा लेते हैं और वो लोग मेरे भाई को भी शामिल कर लिये। उसको बोले तुम थोड़ी देर में आना, तुम छुप जाओ, अब वो लोग मुझे चिढ़ाने लगे कि तुम्हारा भैया नहीं आएगा, हो गया अब तुम यही राखी का त्यौहार मना लेना। वो लोग बोलने लगे अगले साल तुम राखी पर चले जाना। हो सकता है कि उसको समय ना मिला हो तुमको लेने आने के लिए। यह सुनकर मेरे तो होश ही उड़ गए। ऐसा लगा कि-
“ किसी ने उड़ती हुई चिड़िया के पंख काट दिए हो और वह हताश होकर जमीन में आकर गिर गई;
मेरी धड़कनें तो एकदम बंद होने की कगार पर थी। तब मेरी शक्ल देखकर वो लोग बोले यह बहुत दुखी हो गई चलो इसे बता देते हैं कि हम लोग तुमको छेड़ रहे थे। तुम्हारा भाई आया है और मेरे भाई को बोले, “आ जाओ भाई” तुम्हारी बहन को हम लोग कुछ ज्यादा ही सता दिए हैं” यह सुनकर मेरी जान में जान आई। वो लोग बोले जाओ अपनी बहन से मिल लो तुम्हारा बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रही थी, हम लोगों ने उसे दुखी कर दिया। मेरा भाई आया तब मेरे जान में जान आई। और फिर से मैं अपनी तैयारियों में जुट गई। संयोग की बात तो यह हुई की मेरे भाई के साथ उसका दोस्त भी आया हुआ था। वह उदास था वह हमेशा कहता था कि काश! मेरी भी बहन होती और मुझे राखी बांधती, मुझे भैया बोलती, आज के दिन राखी बांधती। तब मैं हंसते हुए बोली इतना क्यों दुखी होते हो भैया? मुझे ही अपनी बहना बना लो। मैं ही आज से राखी बांध दिया करूंगी और आप मेरे भैया बन जाइए। वह हंसते हुए बोले हां तुम मेरी बहन बन जाओ लेकिन तुम मुझे जीवन भर राखी बांधने का वचन दो तभी राखी बांध पाओगी। मैं बोली ठीक है भैया! मुझे क्या है, मेरी रक्षा के लिए मेरे पास दो- दो भाई हो जाएंगे। और हम दोनों की आंखें आंसू से भर आए । और मैंने फिर दोनों भाइयों को राखी बांधी। तब से मैं उनको हमेशा राखी बांधती थी। मैं चाहे जहां रहूं मेरी राखी संयोग से रक्षाबंधन से पहले उनके पास पहुंच जाती थी। बहुत खुश होते थे, वह राखी हाथ में बंधवाते और सबको दिखाते रहते देखो मेरी राखी आ गई ।जब मैं राखी में जाऊं तो वह सुबह- सुबह से आ जाया करते थे राखी बंधवाते और बहुत खुश हुआ करते थे। अब वह बेचारे इस दुनिया में नहीं रहे फिर भी मैं उनकी याद में उनके नाम की राखी रखती हूं और मैं संकल्प ली हुई हूँ कि जब तक मैं इस दुनिया में रहूंगी तब तक अपने उस भैया के नाम की राखी रखकर अपनी बहन का धर्म निभाऊंगी। इस तरह राखी के किस्से ना जाने कितने याद आते हैं उन लम्हों की याद में लगता है काश! वह वापस आते और हम एक बार फिर से उन लम्हों को जी लेते।