savitri garg

Abstract Drama

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savitri garg

Abstract Drama

घर

घर

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हर किसी का सपना होता है कि अपनी एक छाया होनी चाहिए, एक घर होना चाहिए । जहां पर इंसान दिन भर की दिनचर्या के बाद अपना आराम करने का समय सुकून से बिता सके। अमीर हो या गरीब हो, घर बनाना अपने जीवन का एक लक्ष्य समझता है। इंसान तो इंसान , पशु-पक्षी भी अपना एक घरौंदा बनाते हैं । चाहे दिन भर जहां रहे शाम को वापस लौट कर अपने घोसले पर ही आते हैं।

हमारे बड़े बुजुर्ग भी कहते हैं कि जीवन में एक घर होना ही चाहिए । 

तरह-तरह के सामानों को जोड़कर घर तो बन जाता है लेकिन आज के परिवेश में वह मकान बन कर रह जाता है।घर तो वहां ! जहां शाम को कोई इंतजार करे, जहां अपनों को देखकर दिल खुश हो जाए , जहां मन को चैन मिले ,थ जहां घर वालों के साथ बैठकर बातें करने में मन की सारी उलझन सुलझ जाए, सारी चिंताएं मिट जाए ,दिन भर दुनिया जहान की बातों से उबर कर रात में सुकून की नींद आ जाए। घर वो जहां सब एक साथ मिलजुल कर रहे, मुसीबत के समय में घर वाले एक दूसरे के साथ हों , वक्त पर एक दूसरे की हिम्मत बनकर आगे आए, कभी कोई घबराए तो एक दूसरे का हौसला बढ़ाये और आगे बढ़ने में मदद करें और एक दूसरे को आगे बढ़ते देखकर खुश हो।

कहते हैं कि

 घर के सब साथ हो तो हर मुश्किल आसान हो जाती है।

घर तो वह जिसमें अच्छाई, बुराई सब समा जाए। अमीर हो या गरीब सबको घर की तलाश होती है मकान की नहीं।

हमारे गांव में एक परिवार रहता था। वह बहुत गरीब था। उनके यहां सदस्यों की संख्या ज्यादा थी घर बहुत छोटा था। लेकिन उनको इस बात का कभी अफसोस नहीं था। वह कहते थे कि हमें बड़ा मकान नहीं चाहिए हमारा घर भले ही छोटा है लेकिन बहुत अच्छा है यहां सुकून है, चैन है ,आराम है। हम सब एक दूसरे के साथ रहते हैं इसलिए यह छोटा सा घर भी हमारे लिए बहुत अच्छा है। हम सब एक साथ खाते हैं, एक साथ बातचीत करते हैं ,एक दूसरे का सहारा बनते हैं, किसी को कम या ज्यादा हो तो एक दूसरे की मदद करते हैं।हम एक दूसरे का दुख दर्द समझते हैं, कोई अपनी बातें अपनी उलझन एक दूसरे से छुपा नहीं सकता है, हमारे घर में सब कुछ समा जाता है और हर सुबह एक नई सुबह होती है । 

तब यह सब बातें समझ से परे थीं। लगता था कि वह लोग ऐसा क्यों कहते हैं। मकान और घर में क्या अंतर है बस 4 कमरों का घर रहना खाना और जीना है और मौज करना।

 वक्त के साथ समझ में आया कि घर और मकान में क्या अंतर होता है। ऐसा वह लोग क्यों कहते थे कि हमें कोई मकान की जरूरत नहीं है। हमारा छोटा सा घर ही हमारे लिए बहुत आरामदायक है।

कुछ बातें तो वक्त और समय के साथ ही समझ में आती है। जैसे मुझे वक्त ने समझाया कि घर क्या है।


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