Poonam Singh

Abstract

4.5  

Poonam Singh

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ख्वाब

ख्वाब

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"मिसेज मेहरा ! आपने देखा.. सुमित्रा ने क्या किया ?"

" हाँ मिसेज शर्मा.. ! मैं भी तो यही सोच रही थी कि आखिर उन्हें ऐसा करने की जरूरत ही क्या थी..? अपनी धर्म बिरादरी में ही कहीं कोई देख लेती..।"

"वही तो..! अच्छा चलो उनसे एक बार मिलकर तो आएं ! "

"हाँ हाँ !..क्यों नहीं..?"

 शाम को सुमित्रा के घर की डोर बेल बजी । दरवाजा खोला तो सामने अपने मोहल्ले की कुछ औरतों को एक साथ देखकर मुस्कुराते हुए स्वागत किया ,"आइए..आइए..! बैठिए ..! मैं आप सब के लिए चाय पानी की व्यस्था करती हूँ। " कहते हुए सुमित्रा रसोई घर की तरफ मुड़ी।

"अरे नहीं- नहीं सुमित्रा ! उसकी आवश्यकता नहीं । तुम भी हमारे साथ ही बैठो ना..।"

उन महिलाओं द्वारा इस तरह चाय - पानी के लिए मना करने के आशय को सुमित्रा भली-भांति समझ रही थी।

" सुमित्रा ! अगर बच्चा गोद लेना तुम्हारे लिए इतना ही आवश्यक था तो अपने धर्म जाति का ही सहारा लेती। दूसरी धर्म का क्यों..? वह भी मुसलमान..? " मिसेज मेहरा ने समझाते हुए कहा।

"मुझे इसमें कोई आपत्ति नहीं दिखती बहन ! क्या फर्क पड़ता है ? खून और चमड़ी तो एक ही है सबकी! फिर जब हम राष्ट्रीय एकता की बात करते हैं, तो फिर क्या हिंदू मुसलमान , सीख या इसाई हो... हम सब.. तो एक ही ईश्वर की संतान हैं न ।"  

ज्यादा बहस में ना पड़ते हुए सबने कहा

"अच्छा सुमित्रा अब हमे इजाज़त दो। "

सबने इस बार पंद्रह अगस्त को होनेवाले जलसे में सुमित्रा को निमंत्रण ना देने का फैसला कर लिया था।

 अपने फैसले को लेकर मोहल्ले में लोगों के उपेक्षित नजरों की सुमित्रा आदि हो चुकी थी। सब उससे दूर ही रहते यहाँ तक की उसकी बेटी के साथ भी कोई खेलता - कूदता नहीं था। 

 रोज की तरह सुमित्रा अपनी बेटी को स्कूल से लाने जा रही थी कि तभी उसकी बेटी की दोस्त रिद्धिमा भागती हुई उसकीतरफ आई ,"..आंटी..आंटी ! आपकी बेटी का एक्सीडेंट हो गया।"

"क्या...या.? " 

और रिद्धिमा ने एक ही साँस में आँखों देखी सारी घटना सुना डाली । उसने बताया "मेहरा आंटी की बेटी को भी चोट आई है।" सुमित्रा बेतहाशा भागती हुई घटनास्थल पर पहुँची ! उसकी बेटी बेहोश पड़ी थी। 

एक टैक्सी कर वह जल्दी से अपनी बेटी को लेकर अस्पताल पहुँचीं। हालत गंभीर होने की वजह से डॉक्टर ने उसे आईसीयू में एडमिट कर दिया। 

" अब तुम्हारी बेटी की तबीयत कैसी है सुमित्रा ?"

अपने मोहल्ले की महिलाओं को एक साथ देखकर उसे आश्चर्य हुआ।

" जी अभी क्रिटिकल है ..। "

" चिंता मत करो अपने ईश्वर अल्लाह पर भरोसा रखो। हम तुम्हारे साथ है। और हमे माफ करना, हमने तुम्हे समझने में भूल कि और तुम्हारे साथ बड़ी ज्यादती की।

"उस दिन तुम्हारी बेटी ख्वाब ने, उस टेंपो से बचाने के लिए मेरी बेटी को जल्दी से धक्का मारकर दूर ना कर दिया होता तो आज उसकी शायद जान भी नहीं बचती। उसने अपनी जान जोखिम में डालकर दिलेरी दिखाई और इंसानियत का फर्ज़ निभाया।" इतना कहते हुए मिसेज मेहरा की आँखे डबडबा गई ! 

"हम तो बस राष्ट्रीय एकता ,धर्म सम्प्रदाय व खोखले देशप्रेम के, बस शब्द मात्र में ही उलझे रह गए पर तुमने तो कर के भी दिखा दिया। ......वो अब हम सबकी ख्वाब है।" मिसेज मेहरा ने अपने चेहरे पर मुस्कुराहट लाते हुए कहा। 

पंद्रह अगस्त का दिन चारों ओर देश की आज़ादी व भक्ति के रंग में डूबे लोगों का जज़्बा कुछ अलग ही दिख रहा था ,हर दिशा में आसमान को छूती रंग बिरंगी पतंगे देश की शक्ति, शांति ,सत्य और हमारे पवित्र भूमि की समृद्धि को दर्शा रहे थे।

कुछ ही देर में झण्डा अवरोहण और जलसे में सभी बच्चो के साथ सुमित्रा की ख्वाब भी शामिल राष्ट्रीय एकता का प्रतीक झंडा फहरा रही थी। 


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