खुद को ढूंढती गृहणी
खुद को ढूंढती गृहणी
ज़िंदगी अपनी गति से दौड़ती जा रही थी और सुधा जिंदगी से तार तमय बैठाने की कोशिश में दौड़ती हांफती लगी हुई थी।
प्रेम विवाह कर दो पुत्रों की मां बन अपनी पहचान खो रही थी। पति, बच्चे, परिवार इन सब में खो कर वो खुद को भूल रही थी।
कॉलेज में बास्केटबॉल की बेहतरीन खिलाड़ी, एनसीसी की सधी हुई कैडेट्, खूबसूरत अदाकारा, पढ़ाई में अव्वल, फैशनेबल सुधा के जाने कितने फैन हुआ करते और आज बस रसोई, बेतरतीब बंधी साड़ी, उलझे बालों का बना बन, कौन कह दे की ये वो सुधा है।
सुधा खुश है उसने कभी नौकरी नहीं करनी चाही क्योंकि अपने बच्चों को हमेशा वक्त देना चाहा उसने। उसके पति समर बहुत प्यार करते हैं उस से और समय समय पर याद भी दिलाते हैं की सुधा तुम ऐसी तो ना थी। वक्त दो खुद को। सजो संवरो थोड़ा खुद पे ध्यान दो पर नहीं सुधा को लगता की उसके पास वक्त ही कहां है खुद के लिए ?
वक्त बीत रहा था दोनो बेटे कॉलेज में आ गए, समर भी पदोनत्ति पा बिजी होने लगे, बाहर के टूर भी लगने लगे।
एक दिन एकदम फ्री बैठी सुधा ने आइना देखा और देखने लगी खुद को, सफेदी झांक रही है बालों में, वजन कमर से बढ़ गया है, बाल त्वचा ध्यान ना देने से चमक खो रहे हैं। उसने पार्लर बुक किया, बाल में कलर करवाया, हेयरकट करवाया, फेशियल किया और अपने को थोड़ा सुधारा।
अबकी बार समर महीने भर के लिए विदेश गए थे सुधा ने इस एक महीने में खुद को काफी बेहतर कर लिया था। समर को एयरपोर्ट लेने वो खुद गाड़ी चला कर गई। समर हतप्रभ था इतना बदलाव देख कर और बेहद खुश भी।
सुधा ने पर्सनेलिटी डेवलपमेंट का कोर्स भी कर लिया और अब वो खुद की पर्सनैलिटी डेवलपमेंट की क्लास खोलना चाहती थी। समर ने थोड़ी ना नुकुर के बाद साथ दे ही दिया।
एकदम जीरो से शुरुआत करती सुधा का लोगों ने मखौल भी बनाया पर सुधा ने ठान लिया था की अब उमर के इस पड़ाव पर अपना मकाम बनाना है। पति ने भी साथ दिया और सुधा आज शहर का एक जाना माना नाम है उनके इंस्टीट्यूट में दाखिला पाने को तरसते हैं लोग।
सुधा ने सक्सेस पाई क्योंकि उन्होंने खुद को हिम्मत दी खुद पर भरोसा रखा। सफलता के लिए मन से चाहत और जी तोड़ कोशिश बहुत जरूरी है।
