आख़री सज़ा
आख़री सज़ा
राजरानी जी बहुत सुंदर व्यक्तित्व की धनी और जैसे कहते है ना साक्षात अन्नपूर्णा । उनके पति लाभ सिंह शुरू से ही दंभी , कठोर हृदय वाले लंबे चोडे । बस घर का काम बच्चे और फालतू की डांट यही दुनिया थी राजबाला जी की ।
लाभ सिंह जी का जब मन करता डांट देते , तीन बच्चे थे इन दोनों के पर तीनों ही बच्चे अपने पिता के आगे कुछ कह नहीं पाते थे । बहुत डरते थे अपने पिता से ।
वक्त बीत रहा था और राजबाला जी के बच्चों को शादी हो गई और वो अपने नाती पोते पोती में व्यस्त रहने लगी । पर लाभ सिंह जी के मिजाज वहीं रहे यूं ही राजबाला जी को झिड़क देना , बेइज्जती कर देना । भगवान जाने की इतनी सर्वगुण संपन स्त्री को यूं परेशान करने के तरीके भी लाभ सिंह जी कहां से ढूंढ लेते थे ।
अपनी पोती नव्या से बहुत बनती थी राजबाला जी की , उन दिनों बहुत बीमार चल रही थी राजबाला जी तो नव्या को एक पर्चा लिख कर दिया कि जेडअगर मुझे कुछ हो जाए तो अपने पापा को दे देना ।" नव्या ने पूछा भी कि "दादा मां इसमें क्या है ?" उन्होंने कहा कि "बेटा कुछ जरूरी है , पापा को कह देना कि दादी को शांति नहीं मिलेगी अगर ऐसा नहीं हुआ तो ।"
बीमारी के दिनों में भी लाभ सिंह जी किसी ना किसी बात को लेकर राजबाला जी को सुनाते रहते , बिस्तर में पड़ी वो आखिरी सांसें गिन रही थी पर लाभ सिंह जी को चैन नहीं था । कमरे में आ कर ये कभी नहीं पूछा कि दवाई खा ली या कभी पास बैठ कर हाथों में हाथ ही लिया हो कि मैं हूं पास ।
राजबाला जी को आज सुबह सांस लेने में दिक्कत हो रही थी , एम्बुलेंस को बुला लिया गया बस नव्या को यही कह पाईं वो की नव्या पापा को वो कागज का टुकड़ा...... और वो मुक्त हो गई ।
नव्या ने दादी का लिखा काग़ज़ अपने पापा को थमा दिया , हैरान हो गए सब जब ये पढ़ा की "तुम्हारे पिता जी को मेरी अर्थी के हाथ मत लगाने देना और ना ही दुल्हन वाले श्रृंगार करना ।"
लाभ सिंह अवाक मूक खड़े हो गए , समझ ही नहीं पाए की क्या सजा दे गई राजबाला जी ।
