बच्चों की दी ज़िंदगी
बच्चों की दी ज़िंदगी
प्रिया बस पैंतालीस की उम्र में ही वैधव्य पा चुकी थी, एक बेटा जो महज बारहवीं में था पिता को खो चुका था। प्रिया नितिन और उनका बेटा जतिन, यही छोटी सी दुनिया थी उनकी।
वैसे भी दिल्ली जैसा शहर जहां एक हाथ को दूसरे हाथ को देखने की फुरसत नहीं, कहां रिश्ते बन पाते फिर दोनों मियां बीवी नौकरी करते थे और खुद में मशगूल, भविष्य से बेपरवाह।
कुछ दोस्त थे जो प्रिया के स्कूल में बने थे और कुछ नितिन के ऑफिस के दोस्त। नितिन के जाने के बाद उसके ऑफिस के दोस्तों ने ही मदद कर उसका सब कागज़ पत्र का काम करवाया था वरना प्रिया एक बार को तो सुध बुध खो बैठी थी।
परंतु एक मां को अपनी सुध खोने का हक भी नहीं देता परमेश्वर। खैर धीरे धीरे जिंदगी पटरी पर आने लगी थी। प्रिया के साथ जतिन भी अपनी जिंदगी को जीना शुरू कर चुका था।
प्रिया के पड़ोस में ही एक अरविंद शर्मा जी रहते थे, उम्र कोई पचास वर्ष, तलाकशुदा थे उनका भी एक बेटा था करीब करीब जतिन की ही उम्र का दोनों बच्चे साथ खेला करते थे, पढ़ा करते थे और पक्के दोस्त भी थे तो प्रिया और अरविंद जी की बातचीत हो जाया करती।
धीरे धीरे जतिन और शर्मा जी की बेटा रमन आगे की पढ़ाई के लिए हॉस्टल चले गए और दोनों लड़कों में गज़ब की दोस्ती थी।
प्रिया जॉब करती थी आ कर जतिन को फोन करना, शाम को टहलना बस यूं ही दिन कट रहे थे। एक दिन शाम को एक बाइक ने प्रिया को ज़ोर से टक्कर मार दी और उनको बहुत चोट आई अब उम्रदराज होने पर हड्डियों में दर्द भी बहुत हो रहा था चलना फिरना मुश्किल से कर पा रही थी।
जतिन आ नहीं पा रहा था कॉलेज में प्लेसमेंट के लिए कंपनी आई हुई थी, जतिन घबरा रहा था तो रमन ने कहा की पापा से बात करता हूं पापा प्रिया आंटी को संभाल लेंगे।
अरविंद जी ने दोनों बच्चों को वादा किया की मैं प्रिया जी की भरपूर सहायता करूंगा तुम निष्फिक्र हो कर अपने इंटरव्यू दो।
अरविंद जी ने कामवाली की मदद से प्रिया जी की बहुत सेवा की और अब वो बिल्कुल ठीक थी अब प्रिया भी शुक्रगुजार थी अरविंद जी की। कभी कभार वो अरविंद जी के लिए खाना बना के भेज दिया करती।
दोनों बच्चों का दिल्ली और गुड़गांव में ही नौकरी का सिलेक्शन हो गया। आज दोनों परिवार साथ में खाना खाने गए और रमन ने कहा की प्रिया आंटी क्या आप मेरी मम्मा बनना पसंद करोगी ? प्रिया जतिन की और देखने लगी वो बेहद घबरा रही थी पर जतिन ने उनको इग्नोर किया और अरविंद जी से पूछा, अंकल क्या रमन की तरह मैं भी आपको पापा कह सकता हूं ?
अरविंद जी और प्रिया को कुछ समझ नहीं आ रहा था पर दोनों बच्चों ने अपनी अपनी तरफ से अपने अपने पैरेंट को कन्विंस किया और उन दोनों की शादी करवा दी।
कहां वो दोनों बस एक दूसरे की मामूली जरूरतें पूरी करने का जरिया थे और कहां अब दोनों पति पत्नी बन गए।
जवानी में तो दुखों को आप झेल जाते हो पर बढ़ती उम्र के साथ एक साथी की जरूरत होती ही है, ये बात रमन और जतिन को समझ आ गई थी और अपने मां पापा की वीरान जिंदगी को एक नया मुकाम दे दिया बच्चों ने।
