खुद हीरो बनने से अच्छा हीरो बनाते रहें
खुद हीरो बनने से अच्छा हीरो बनाते रहें
(काशवी जो अब गिनपरि बन चुकी है, उसे अब व्याख्यानों के लिए बुलाया जाना लगा है, ऐसे ही एक व्याख्यायन से..., गिनपरि के काशवी के किस्से आप मेरे अकाउंट में जाकर पढ़ सकते हो)
जब मैं छोटी बच्ची थी तब पापा के सिने पर सो जाया करती थी, उनके बाल नोच लिया करती थी पर उनके चेहरे पर मुस्कान सजी रहती थी। वो ऑफिस से आयें हो या किसी कार्यशाला के बाद कई दिनो बाद -आते ही मेरे साथ खेलने लग जाते थे ....ऐसे ही कई किस्से मुझे बचपन से सुनाये गए हैं और मैं इन पर यकीन कर पाती हूँ पर सच ये मेरी मेमोरी में नहीं है।
मैं आपसे वो साझा करना चाहती हूँ जहां से मेरे जहन में हलचल है। मुझे जो भी अच्छा लगता चाहे वो सर्दी में आइसक्रीम हो या सुबह देर तक सोना, अरे मैं फोन की दीवानी थी, जब भी समय मिलता बस एफ़बी, इन्स्टा, शॉर्ट्स देखने लग जाती थी पर मैं आइसक्रीम नहीं खा सकती थी क्योंकि पापा चिल्लाने लगते थे, उनके ज्ञानुपदेश शुरू हो जाते थे, उस ज्ञान सरिता में डूबने से बचने के लिए मैं आइसक्रीम छोड़ देती थी, आप अनुमान लगा ही सकते हो की वो कितने बोझिल थे। सुबह जब अलेक्सा के गाने वाला अलार्म, पड़ोस की खटपट मुझे उठा नहीं पाती थी तो फिर मेरे कानों में दुनिया भर का ज्ञान उड़ेलने की कोशिश की जाती और इससे पहले की वो ज्ञान मेरे एक कान से दूसरे कान तक पहुंचे मैं उठ जाने में ही अपनी भलाई समझती। उन दिनों यू ट्यूब पर जीतने बाबा -ओशो,सद्गुरु, प्रशांत, आचार्य थे -सोचो सबका ज्ञान एक साथ किसी को ढेल दिया जाये तो क्या होगा उसके अस्तित्व का, इसलिए जब पापा ज्ञान का महासागर शुरू करते मैं फोन को स्विच ऑफ की कर लेती थी।
यूं तो मेरी कई जरूरते पापा पर निर्भर थी जैसे फीस, घर ... इन्ही वजह से झेलना था ही, तब और कोई विकल्प नहीं था। पर जैसे ही मुझे विकल्प मिला मैं उड़ निकली पिंजरे से, अब पिंजरा चाहे कितना ही बढ़िया क्यों ना हो, होता तो पिंजरा ही है ना।
मेरी उड़ान मुझे एक पल भी ठहरने का वक्त नहीं देती है, मैं गणित के सवालों से घिरी रहती हूँ, कभी अपने लिए, कभी शिक्षकों के लिए तो कभी अपने प्यारे स्टूडेंट्स के लिए, कुछ ना कुछ ढूंढती रहती हूँ । मैं पास पहले से तय कोई मंजिल नहीं है, मैं मानने को नहीं, जानने को तैयार रहती हूँ। मैं लड़ जाती हूँ किसी भी मान्यता से, कितने ही क्यों ना क्यों ना हो? मेरी वायरिंग में ही फ़ाल्ट है – ये आम है ही नहीं। ये मेरी जिंदगी के सबसे ज्यादा सिरफिरे मेरे पापा की दें है। बैचेन आत्मा बनाकर छोड़ा है उन्होने मुझे।
मैं भागती गई, उन्होने और धक्का दे दिया कभी रोकने की कोशिश नहीं की। उन्होने आप सबके जैसा मुझे नहीं होने दिया, अब मैं उन्हें कितना भी कोस लूँ पर मैं ऐसी हो चुकी हूँ। मेरे पापा मेरे जन्मदिन पर, बिना जन्म दिन के भी मुझे तोहफे देते रहते पर वो तोहफे किताबें होती, पज़ल, माइंड गेम, फिटनेस हेक, मैजिक ट्रिक … और मैं तरसती रह गई टेडी बीयर, रेमोट कार, बंदूक वाले खिलोनों के लिए। वो मुझे रात में कहानी सुनाते रहते – पारियों की कम थी पर ये आइंस्टीन, पाइथागोरस,लीलावती की ज्यादा। धीरे -धीरे मुझे भी उन्हीं कहानियों से प्यार हो गया जिनसे नहीं करना चाहती थी।
उन्हीं किताबों को पढ़ने लगी जिनसे दूर जाने की ठानी थी – गणित का इतिहास, मानव का आशावादी इतिहास, असफल स्कूल आदि । ये वो ही किताबें थी जिन्हें मैंने पापा को पढ़ते देखा था, ये अक्सर मेरे और पापा के क्वालिटी टाइम में दखल दिया करती थी। अब मैं बिना गाना सुने कई दिनों तक रह सकती हूँ, बिना मूवी देखे भी, बिना कोई वेब सिरीज़ देखे भी। मेरे पापा ने मुझे आप सबसे अलग कर दिया, और अब मैं चाहकर भी ऐसी नहीं हो सकती क्योंकि शिक्षा जो बदलाव आपमें एक बार लाती है उसे अनडू नहीं किया जा सकता।
वो अक्सर बहकी -बहकी बातें करते, अब मैं भी करने लगी हूँ । एक -दो बात आपसे भी कहती हूँ क्या पता आप भी बहक जाओ? क्योंकि आज भी पहले जैसे रह गए तो हमारी मुलाक़ात बाईमानी हो जाएगी। आप और बेहतर होना चाहते हों ना, आप जब और बेहतर हो जाओगे जब आपको बताया जाएगा की आप कैसे हो? आप यकीन नहीं करोगे पर यकीन करने लगोगे – आपको एक -दूसरे से जितनी भी शिकायतें हैं, उन्हें दूर करना है तो एक -दूसरे से मिलों, एक -दूसरे को जानों, क्योंकि हमारे संपर्क की कमी ही हमारे पूर्वाग्रहों को जन्म देती है, उन्हें सींचिती है। आप एक -दूसरे को जानना शुरू ही करोगे और पाओगे की हम सब बेहतरीन लोंगों से घिरें हुये हैं। मैं ऐसा कह पा रही हूँ इसलिए नहीं की मेरे पापा के ज्ञान को कॉपी -पेस्ट कर रही हूँ, मैंने भी इसे जीकर देखा है, हम सब बने ही हैं -मिलकर रहने के लिए, एक -दूसरे की मदद के लिए । इस एक पंक्ति में मैं लाखों वर्षों के मानव जाती के इतिहास को बता दिया है।
मुझसे कहा गया की मैं आप लोगो से कुछ बात करूँ, मुझे जो विषय दिया गया था मुझे उस पर यकीन नहीं है, की कोई किसी के लिए ऐसा हो सकता है। हमें अपने कदम खुद ही चलने होंगे, कोई और चलेगा तो ये उसके निशान होंगे। मैं कभी अपने पापा को ये नहीं कहती, वो भी ऐसा नहीं चाहते, वो चाहते की मैं भी कुछ ऐसे अनुभव दे पाने में आप सबकी मदद कर सकूँ की आप सब इस सिलसिले को आगे बढ़ाते रहें, खुद हीरो बनने से अच्छा हीरो बनाते रहें।