ग्यारहवाँ भाग: गणित और बचपन
ग्यारहवाँ भाग: गणित और बचपन
ताऊ जी अमरूद लेकर आये थे। जब 6 साल की थी, क्लास 1 में सिटि मोंटेसरी स्कूल में पढ़ाई कर रही थी। ताऊ जी तीन बच्चे हैं – गार्गी दीदी, भारती दीदी और ओम।
बड़ों को अमरूद देने के बाद 5 अमरूद बचे थे, एक अमरूद उन्होंने मुझे दे दिया और 4 अमरूद उन तीनों को दे दिये, यही उन तीनों के लिए सिरदर्द हो गया। की 4 अमरूद 3 बच्चे और बंदर बाट भी नहीं कर सकते मतलब बाँटना भी बराबर -बराबर।
उन तीनों के हथियार डाल दिये भई, इन चार अमरूद हम तीन कैसे खाएं या तो तीन ही देते या फिर 6 देते, तीन अमरूद दिये जाते तो तीनों एक -एक ले लेते, और 6 दिये जाते तो तीनों दो -दो अमरूद ले लेते पर इन 4 अमरूद को हम तीन कैसे खाएं? – गार्गी दीदी ने अपनी समस्या को समझाते हुये कहा।
मैं अपने को गिनपरि कहलाती थी, गणित की बातें करना, जादू दिखाना, गणित की कहानियाँ सुनाना – ऐसा करना जरूरी था, गिनपरि के तमगे को बचाकर रखने के लिए। पर कभी -कभी इम्तहान से भी गुजरना पड़ता है। ये घड़ी मेरे लिए ऐसी ही थी, सब की निगाहें बिना कुछ बोले मुझे उकसा रहीं थीं की बताओ कुछ समाधान।
मैं ऐसे तो जवाब नहीं जानती थी, पर ट्राइ करने से कभी पीछे नहीं हटती थी। होती थी गलतियाँ भी, गलतियाँ कभी मेरा अवरोध नहीं बनी, हमेशा ही मुझे नया कुछ सोचने की ओर ले जाती या मेरी ख़ामी को उजागर कर देती, खैर ये समझ तो अब आई है तब कहाँ ऐसे सोच पाती थी।
जैसा मुझे याद है, मैंने एक अमरूद उनसे लिया उसके चार भाग कर दिये, फिर दूसरे अमरूद के भी चार भाग किए, तीसरे को उठाकर उसको भी चार बराबर भागों में बाँट दिया। इसके बाद एक -एक भाग तीनों को देना शुरू किया। पहले फेरे में तीनों को एक -एक भाग दे दिया, दूसरे फेरे में फिर एक – एक भाग, तीसरी बार भी एक -एक भाग और मिल गया, अभी भी तीन भाग मेरे पास रह गए थे, मैंने फिर से एक -एक भाग और तीनों को दे दिया। सबके पास चार -चार अमरूद के भाग थे। सब खुश थे की सबको बराबर अमरूद मिल गए और इसलिए भी की मैं सबसे छोटी थी और ऐसा कर पाई।
दैनिक जीवन में हमारा गणित ऐसा ही होता है, अन्तर्ज्ञान से भरा हुआ। ये अमरूद चारों अमरूद आकार में एक जैसे ही थे इसलिए मैं ऐसा कर पाई पर अगर आकार में ऐसा फर्क होता की सबको बराबर अमरूद देने के लिए मुझे कोई और उपाय सोचना होता।
पर गिनपरी के सपने को सच ऐसी छोटी -छोटी घटनाओं ने सींचने में बड़ी भूमिका निभाईं है।
अगला किस्सा अगले अंक में, गिनपरी की दुनिया से...