हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Action Crime Inspirational

3.3  

हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Action Crime Inspirational

खौफ का अंत

खौफ का अंत

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28 मार्च की देर रात अचानक सारे टीवी चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज चलने लगी। एंकर जोर जोर से चीख चीखकर बताने लगे कि एक नामी गिरामी डॉन, माफिया, हिस्ट्रीशीटर, नेता , सजायाफ्ता अपराधी की दिल का दौरा पड़ने से बांदा जेल में मृत्यु हो गई है। पूरे देश में जैसे ही यह समाचार फैला , लोग सन्न रह गये। खौफ के युग का अंत होने से बहुत से लोगों ने चैन की सांस ली। प्रयागराज में तो जोरदार हलचल हुई। आखिर इस डॉन की ज्यादतियों का सबसे अधिक शिकार पूर्वांचल ही हुआ था। 

1990 के दशक में प्रयागराज की सड़कों पर खूनी मुठभेड़ आम बात थी। सरे बाजार कब किसकी हत्या हो जाये, कोई नहीं जानता था। पूर्वांचल में इस हिस्ट्रीशीटर का आतंक इतना अधिक था कि सरेआम हत्या होने पर जिसके चश्मदीद गवाह सैकड़ों आदमी होते थे , मगर इसके खौफ के कारण अदालत में गवाही देने कोई नहीं जाता था। जिसने भी हिम्मत कर अदालत की चौखट देख ली, वह जिंदा नहीं बच पाया। इसके बाद ऐसा कौन बहादुर था जो अपनी जान जोखिम में डालता ? तो अपराध होते रहे, गवाह मरते रहे, पुलिस, सरकार इसे संरक्षण देते रहे और न्यायपालिका भी इसके केसों से बचने की कोशिश करती रही। आखिर जजों को भी जिंदा रहना था। 

मुख्तार अंसारी कोई छोटा मोटा नाम नहीं हैं , मऊ में जाना पहचाना नाम है जिसे आज भी वहां का बच्चा बच्चा जानता है। खानदानी पार्टी का एक राज्य सभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने मुख्तार अंसारी के गांव में कभी मुख्तार अंसारी के लिए एक गीत गाया था 

कल भी सब पर भारी था मैं आज भी सब पर भारी हू्ं 

बच्चा बच्चा चीख रहा है मैं मुख्तार अंसारी हूं।। 

एक गुंडे का ऐसा महिमा मंडन करने वाले व्यक्ति इमरान प्रतापगढ़ी को एक खानदानी पार्टी पहले लोकसभा का टिकिट देती है। वहां यह हार जाता है तब इसे राज्य सभा में महाराष्ट्र से सांसद बनाकर भेज देती है। आखिर क्यों ? क्योंकि एक खास समुदाय का वोट जो लेना है। खास समुदाय के वोट के लिए आतंकियों, हिस्ट्रीशीटरों को भी खुदा का नेक बंदा बताकर उनका महिमा मंडन किया जाता है। इसके लिए पंच मक्कार सदैव तैयार रहते हैं। 

इस देश का एक भूतपूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी इस मुख्तार अंसारी का ही भाई बंधु है। जब सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का ? मुख्तार अंसारी के नाना सेना में ब्रिगेडियर रहे हैं। बड़े रसूख वाला था यह अपराधी। बहुत सारे पत्रकार बरखा दत्त जैसे इन अपराधियों, आतंकवादियों को गरीब मास्टर का अनपढ़ बेटा कहकर उनके अपराधों को जायज करार देने का प्रयास करते हैं। पर यह न गरीब था, न मास्टर का बेटा था और न अनपढ़ था। उसके बावजूद लिबरल्स उसके लिए ढाल बन रहे थे। मऊ में इसका गजब का दबदबा था और आज भी है। रंगदारी इसका खास धंधा रहा है। 

1990 का वह दौर था जब प्रयागराज में विकास की गंगा बहने लगी थी। सैकड़ों करोड़ रुपए के विकास कार्य होने लगे थे पूर्वांचल में। जब इतना बड़ा सरकारी धन विकास कार्यों में लग रहा हो तो उसकी बंदरबांट तो होनी ही थी। मुख्तार अंसारी तब की मखनू सिंह गैंग में भर्ती हो गया और उसमें काम करने लगा। तब एक और गैंग थी जिसका मुखिया साहब सिंह था। ठेके प्राप्त करने के लिए दोनों गैंगों में गैंगवॉर होने लगी और बीच सड़क पर हत्याएं आम बात हो गई थी। साहब सिंह गैंग में ब्रजेश सिंह उसका खास गुर्गा था। इस तरह मुख्तार अंसारी और ब्रजेश सिंह में आए दिन मुठभेड़ होने लगी। पूर्वांचल इनकी गैंगवॉर से थर्रा उठा। 

तब एक रूंगटा नाम के व्यापारी का अपहरण हो गया। सन 1990 के आसपास उसकी फिरौती के लिए 3 करोड़ रुपए की मांग की गई। रूंगटा के घरवालों ने वह राशि दे भी दी लेकिन कहते हैं कि मुख्तार अंसारी ने उस बेचारे रूंगटा के इतने टुकड़े किए कि शव को पहचानना भी भारी पड़ गया था। ऐसे दुर्दांत हत्याकांड में गवाही कौन देता ? फिर तो मुख्तार अंसारी एक के बाद एक मर्डर करता चला गया। मजे की बात यह है कि मुख्तार अंसारी हत्या के केसों से तो बरी हो गया मगर उन केसों के गवाहों को डराने-धमकाने के अपराध में सजा काट रहा था। गजब का न्याय था यह। बाद में उसे एक और केस में उम्र कैद की सजा हो गई थी। 

पूरे गाजीपुर क्षेत्र में उसका ऐसा खौफ था कि उसके जेल जाने के बाद भी बीजेपी की सरकार में बीजेपी के ही विधायक कृष्णानंद राय की बीच बाजार हत्या कर दी गई। लोग कहते हैं कि कृष्णानंद राय की गाड़ी को बाजार में दोनों तरफ से घेर लिया गया और उसकी गाड़ी पर 400 से अधिक गोलियां AK 47 से तब तक चलाईं गई जब तक वे खत्म नहीं हो गई। उस घटना में कृष्णानंद राय के अलावा 6 और लोगों की हत्या हुई थी। उनके शरीर में 67 गोलियां पाईं गईं। 

ऐसे दुर्दांत अपराधियों पर राजनीतिक दल मेहरबान नहीं हो, यह संभव नहीं है। मुख्तार अंसारी ने अपना राजनीतिक सफर बहुजन समाज पार्टी से प्रारंभ किया और 1996 में वह पहली बार मऊ, उत्तर प्रदेश से विधायक बहुजन समाज पार्टी से बना। तब उत्तर प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता का दौर था और एक एक विधायक की बहुत वैल्यू थी। मुलायम सिंह यादव में अपराधियों को पहचानने की गजब की क्षमता थी इसलिए उसने उत्तर प्रदेश के तमाम नामी गिरामी अपराधी अपनी पार्टी में शामिल कर लिये थे। समाजवादी पार्टी में शामिल होने की योग्यता अपराधों की लंबी फेहरिस्त ही थी। जितना बड़ा अपराधी उतना बड़ा नेता। मुख्तार अंसारी भी हिस्ट्रीशीटर होने के कारण मुलायम सिंह यादव का खास लाडला हो गया। लेकिन वह 2002, 2007 में निर्दलीय ही विधायक रहा और मुलायम सिंह यादव को समर्थन देता रहा। जब बाहुबल का जयकारा हो , राजनीति का सहारा हो और एक समुदाय के वोटों का भंडारा हो तो हर कोई मुख्तार अंसारी बन सकता है। 

लेकिन कुछ पुलिस अधिकारी शैलेन्द्र सिंह की तरह भी होते हैं ईमानदार, लगन के पक्के, निडर और मेहनती। शैलेन्द्र सिंह तब डिप्टी एस पी थे। उन्होंने मुख्तार अंसारी के घर में छापा मारा और इसके घर से एक स्वचालित लाइट मशीनगन जो अवैध थी, बरामद कर ली। मुख्तार अंसारी पर POTA लगा दिया और जेल में बंद कर दिया। चूंकि उस समय मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे और मुख्तार अंसारी उनके खास सिपहसालार थे इसलिए मुलायम सिंह यादव ने बहादुर डीएसपी शैलेन्द्र सिंह को इनाम देने के बजाय उसे सस्पेंड कर दिया और एक झूठे केस में फंसा दिया। जब योगी जी मुख्यमंत्री बने तब जाकर शैलेन्द्र सिंह के खिलाफ केस वापस लिये गये। ऐसा दबदबा था मुख्तार अंसारी का। 

मुख्तार अंसारी जेल की शोभा अपने कर्मों से बढ़ाने लगे। उसके लिए जेल में विशेष प्रबंध किये गये। ऐसा कहते हैं कि उसके लिए जेल में एक लक्जरी कमरा बनाया गया। उसके लिए ताजी मछलियों की व्यवस्था ऐसी की गई कि जेल में ही एक तालाब खुदवाया गया और उसमें मछलियां पाली जाने लगीं। मुख्तार अंसारी जेल में ही मछली पार्टी किया करता था जिसमें वहां के कलेक्टर, एस पी , नेता सब भाग लेते थे। उसके लिए एक बैडमिंटन कोर्ट भी बनवाया गया जिसमें मुख्तार अंसारी कलेक्टर और एस पी के साथ बैडमिंटन खेला करता था। जब सैंया भये कोतवाल तो डर कैसा ? मुख्तार अंसारी जेल से ही चुनाव लड़ता और जीत जाता था। वैसे जिसमें मुख्तार अंसारी रहता था उसे जेल कहना जेल की तौहीन है। वह थ्री स्टार होटल से कम नहीं थी। मुख्तार अंसारी जैसों की हर सरकार में मौज होती आई है और होती रहेगी। 

सन 2017 आ गया था और मुख्तार अंसारी के सूरज पर ग्रहण लगने के आसार बनने लगे थे। उत्तर प्रदेश में योगी महाराज आ गये जिन्होंने प्रण ले लिया था कि वे माफिया को मिट्टी में मिला देंगे। मुख्तार अंसारी खतरा भांप गया। रोज रोज एनकाउंटर होने लगे। उन्हें देख देखकर डॉन के हाथ पांव कांपने लगे। उसे सपने भी एनकाउंटर होने के आने लगे। 

तब देश में उपराष्ट्रपति के पद पर मुख्तार अंसारी के कुटुंबी हामिद अंसारी बैठे थे। उन्होंने और खानदानी पार्टी ने तब की पंजाब की सरकार के माध्यम से एक षड़यंत्र रचा। एक झूठी FIR पंजाब में मुख्तार अंसारी के खिलाफ अपहरण की धमकी की लिखाई गई और कोर्ट से मुख्तार अंसारी के खिलाफ वारंट जारी करवा लिया। बिना योगी सरकार को बताये , जेलर ने अपने स्तर पर मुख्तार अंसारी जैसे दुर्दांत अपराधी को पंजाब पुलिस के हवाले कर दिया। अब मुख्तार अंसारी बेफिक्र होकर मौज उड़ाने लगा। मजे की बात यह है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 341 में दर्ज मुकदमे में इसने दो तीन सालों तक जमानत की अर्जी तक नहीं लगाई जबकि ऐसे मामलों में तुरंत फुरत जमानत मिल जाती है। क्यों ? क्योंकि इसे पंजाब की जेल में ही रहना था। एक सरकारी आवास को जेल घोषित कर उसमें मुख्तार अंसारी को उसकी बीवी के साथ रखा गया और उसे समस्त प्रकार की सुविधाएं दी गईं। वह पंजाब में अमरिंदर सिंह सरकार का दामाद बनकर रहने लगा। जब उपराष्ट्रपति और "खानदान" का इसके सिर पर हाथ हो तो इसकी मौजां ही मौजां थी। 

जब योगी जी को पता चला कि यह हिस्ट्रीशीटर पंजाब में जेलों की शोभा बढ़ा रहा है तब जेलर वगैरह को सस्पेंड किया गया। सुप्रीम कोर्ट में मुख्तार अंसारी के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने पूरी शिद्दत से केस लड़ा। इसके बचाव में देश के नामी गिरामी वकील उतर पड़े थे। अपराधी और आतंकियों के वकील सिब्बल, प्रशांत भूषण जैसों के अलावा और कौन हो सकता था ? सुप्रीम कोर्ट ने भी बड़ी मुश्किल से इसे उत्तर प्रदेश सरकार को सौंपा। 

मुख्तार अंसारी समाजवादी, कांग्रेस, बहुजन समाज, वामपंथी दलों का ही चहेता नहीं था अपितु पत्तलकारों और न्यूज चैनलों का भी आंख का तारा था। इन चैनल वालों ने मुख्तार अंसारी को एस्कोर्ट किया। ठेठ पंजाब से उत्तर प्रदेश की यात्रा तक। मीडिया वालों ने पूरे समय अपना कैमरा उसी पर टिकाये रखा। इन चैनलों की बेशर्मी की सीमा देखो कि इन्होंने एक डॉन को मूत्र विसर्जन करते हुए भी लाइव दिखाया था। ये मीडिया का स्तर है इस देश में। ये पत्तलकार और मीडिया चैनल्स निष्पक्ष, निर्भीक होने का दावा करते हैं लेकिन हैं कैसे , ये उसका एक छोटा सा उदाहरण है। 

इसी बीच 2022 आ गया। फ़रवरी 2022 में उत्तर प्रदेश में फिर से चुनाव हुए। इस बार मुख्तार अंसारी का बेटा अब्बास अंसारी अखिलेश यादव का लाडला बनकर चुनाव लड़ा। यदि आपमें से किसी को याद हो तो उन चुनावों में एक वीडियो बहुत वायरल हुआ था जिसमें अब्बास अंसारी कहता पाया गया था कि अब अखिलेश की सरकार आ रही है और वह कलेक्टर और एस पी से पहले अपना "हिसाब" चुकता करेगा तब इनके ट्रांसफर होने देंगे। लेकिन हाय रे दैव, इसके बेटे की दुआ अल्लाह ताला ने कबूल नहीं की और योगी जी फिर मुख्यमंत्री बन गए। ये वही अब्बास अंसारी है जो जेल में अपनी बीवी के संग जेलर के चैंबर में रंगरेलियां मनाता हुआ पकड़ा गया था। 

इसी बीच दो चार केसों में पहली बार मुख्तार अंसारी के विरुद्ध कुछ लोगों ने गवाही दे दी और इसे कई सारे केसों में सजा हो गई। जेल में रोटी खाते खाते यह बोर हो गया था। इसे चिकन मटन खाने की आदत थी और अब अखिलेश की सरकार भी नहीं थी जो जेल में सारी व्यवस्था करा देती थी। इसलिए इसे दिल की बीमारी हो गई। जिसे देखकर आम आदमी चक्कर खाकर गिर पड़ता था वह डॉन योगी जी के नाम से ही थर्राने लगा। इसके दबदबे के कारण पिछले 25 दिनों से इसे इसके घर का खाना दिया जा रहा था। 

आखिर 28 मार्च को एक खौफ का अंत हो ही गया। पूरे देश ने चेन की सांस ली लेकिन मऊ और गाजीपुर में मातम पसर गया। इसके घर के आसपास हजारों लोगों की भीड़ जमा हो गई। इसका खौफ ऐसा था कि पूरे उत्तर प्रदेश में धारा 144 लगा दी गई है और कुछ शहरों जैसे गाजीपुर में पुलिस और सेना फ्लैग-मार्च करने लगी हैं। इसके जनाजे में लाखों लोग आयेंगे। नेताओं, पत्तलकारों, लिबरलो आदि ने विधवा विलाप करना शुरू भी कर दिया है। इसे जहर देकर मारने का आरोप लगाया जा रहा है। पंच मक्कारों द्वारा खौफ को सम्मान ऐसे ही दिया जाता है। लेकिन आम जनता आज बहुत खुश है कि एक खौफ का आज अंत हो गया है। अब संभवतः उत्तर प्रदेश में से माफिया मिट्टी में मिल चुका है। 


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