कद
कद
गौरी अपने पीहर से संस्कारों की गठरी दहेज़ में अपने साथ लेकर आई थी। किंतु उसकी सासूमां को संस्कारों से ज्यादा धन दौलत से प्यार था,वे खुद एक अमीर खानदान से ताल्लुक रखती थी। उनके पिता बड़े अफसर थे,इसका उन्हें बड़ा दर्प था।
गौरी साधारण परिवार से थी , इसीलिए उसके प्रति सासूमां का व्यवहार भेदभावपूर्ण था ।वे गौरी को अपने से सदा कमतर समझती थीं। जिसके चलते वे गौरी को कभी बहू बेटी सा मान न दे सकीं।
गौरी थोड़े ही दिनों में घर में ऐसे घुल मिल गई जैसे दूध में चीनी घुल जाती है। सास-ससुर को मांपिता सा आदर और ननद देवर को भाई बहन सा प्यार देने लगी। लेकिन सासू मां उसकी सादगी और सरलता को हमेशा धन की तराजू से तोलती रही।
गौरी ने अपने आत्मविश्वास को कभी कम न होने दिया,सदैव अपना गृहस्थ धर्म और कर्तव्य अच्छी तरह से निभाती रही, उसके सरल हृदय ने कभी कोई गिला शिकवा नहीं किया।
देवर का रिश्ता करने में सासूमां अपनी मर्जी चलाने में कामयाब हो गई।देवर का मोलभाव कर धनाढ्य घर की बेटी को बहू बनाकर ढेर सारा धन दहेज़ में ले आई।
देवरानी चूंकि उनकी तरह से अमीर थी, सासू मां ने उसे अपने बराबर बिठा लिया। मम्मी बेटी बनी एक दूजे के आगे पीछे घूमती रहती। घर के हर कामकाज में सासूमां देवरानी की राय लेती।
गौरा पहले ही की तरह घर के काम निभाती रही।अब तक गौरी एक पायदान नीचे थी , देवरानी के आते ही दो पायदान नीचे पहुंच गई।
ननद की शादी तय हो गई।धर में तैयारियां होने लगी। एक शाम सासूमां व देवरानी दोनों खरीदारी कर घर लौटीं ।
आते ही सासूमां ने गौरा को आवाज लगाई ," बहू चाय पानी ले आओ"
और सोफे पर पसर कर बैठ गईं। चर्चा शुरू हो गई।शादी की किस रस्म में क्या पहना जायेगा,किसको क्या लिया दिया जायेगा।
ननद बोली "मां बड़ी भाभी को आने दें उनकी राय भी तो ले लें"।
सुनकर तपाक से सासूमां बोल उठी"उसे क्या पूछना वो क्या जाने उसके मायके में इतना भव्य आयोजन हुआ है भला, इतने कीमती जेवर कपड़े पहने हैं "।
गौरी पास ही रसोई में चाय बनाते हुए सब सुन रही थी, उसकी आंखें नम हो गईं,धन के अभिमान में सासूमां बड़ी बहू छोटी बहू का लिहाज भी भूल गई थी। उसका कद देवरानी से भी छोटा कर दिया था।
घर में गौरा का कद छोटा होने का एक कारण और भी था,ससुर जी की अस्वस्थता के चलते उसके पति ने स्कूल की पढ़ाई लिखाई के बाद ही पिता का पुश्तैनी व्यापार संभाल लिया था, लेकिन देवर उच्च शिक्षा पाकर अफसर बन गया था।
