कब आओगे ?
कब आओगे ?


जम्मू कश्मीर के पुलवामा में पाकिस्तान ने गोलाबारी शुरू कर दी थी।शंकर सिंह अपनी माँ से फोन पर बात कर रहे थे कि तभी गोलियाँ चलने की आवाज आने लगीं।
"मां फायरिंग शुरू हो गई है, अभी फोन रखता हूं, बाद में करूंगा...।""
क्या मालूम था देश की रक्षा के लिए दुश्मन का सामना करते करते वह बलिदान हो जाएंगे। और शंकर सिंह के अपनी मां से फोन पर कहे यह शब्द अंतिम शब्द हो जाएंगे।
शंकर सिंह डेढ़ माह पूर्व अवकाश पूरा करने के बाद ड्यूटी पर लौट थे। जाते समय मां से जल्दी घर आने को कह कर गए थे।
इधर मात्र डेढ़ माह बाद ही शहीद होने की सूचना मिली तो बदहवास माँ उसके फोन का आज भी इंतजार करती रहती है और पत्नी कभी भी अचेत हो जाती है।
पिता ने फायरिंग की बात सुनते ही कहा था बेटा बंकर में चले जाओ।पर वीर को तो सामने से ही लड़ना था। दोपहर को ब
ात हुई थी और शाम को सूचना मिली कि शंकर सिंह शहीद हो गए हैं।
सात साल पहले शादी हुई थी। पांच साल का बेटा कुछ नहीं समझ पा रहा था कि घर में क्या हो रहा है।दादी और माँ को क्या हो गया?कोई नहीं उठ रहा।दोनों बेहोश थीं।बस पिता ही हिम्मत बांधे हुए थे क्योंकि उनका परिवार तीन पीढ़ियों से देश की सेवा करता आ रहा था।पुत्र के शहीद होने पर उन्हें गर्व था।
बेटा ही सबसे पूछता कि पापा कब आएंगे ?
सोते सोते बोल उठता पापा कब आओगे ?
किसके पास है उसके सवालों का उत्तर!
हजारों चमन उजड़ जाते हैं
हमें सुख की नींद देने में
यह वतन ही है उनकी माँ
गर्व होता है उन्हें शहीद होने में
विश्वास रहता है उन्हें कि उनके बाद
पत्नी और संतान भी
बेखौफ चलेंगी इसी राह पर
कुछ भी हो जाये पर
आंच न आने पायेगी
अपने वतन पर।