STORYMIRROR

Renu Singh

Abstract Children Stories Inspirational

2  

Renu Singh

Abstract Children Stories Inspirational

सिर मुंडाते ओले पड़ना

सिर मुंडाते ओले पड़ना

2 mins
144


बात बचपन की है। घर का आंगन बहुत बड़ा था। ओले तो सर्दी की बारिश में अक्सर गिरते थे पर उस दिन बहुत बड़े बड़े ओले गिरे रहे थे आवाज भी इतनी तेज थी कि जैसे वह बच्चों को बुला रहे हों। फिर क्या था कमरों से निकल आए खड़े हुए बरामदे में ।देखते रहे कुछ देर। जब देखने भर से काम न चला तो दौड़ लगा दी आंगन में और फ्रॉक के घेर में बड़े बड़े ओले समेटने लगी। डांट भी पड़ रही थी ।पर किसे परवाह थी वह तो पड़ती ही रहती है। यह मस्ती रोज तो मिलती नहीं। बस इस कान से सुनती रही उधर से निकालती रही।

अभी कुछ ही बड़े बड़े ओले जो बरामदे के पास गिर रहे थे उठा पाई थी। पर लालच कम नहीं हो रहा था। बड़े

वाले तो दूर खुले आंगन में गिर रहे थे।

मैं भी कहाँ रुकने वाली थी एक बहुत बड़ा ओला देख उधर दौड़ लगा दी। जैसे ही उसे उठाने के लिए झुकी एक उससे भी बड़ा ओला सीधे आकर मेरे सिर पर गिरा।

फिर क्या था एक हाथ से सिर पकड़ा और दूसरे से इकट्ठा किये ओले। भाग कर अंदर आई। एक भी ओला गिरने नहीं दिया। कपड़े भीग चुके थे।

ओले तो भाइयों ने कटोरी में रख दिये लेकिन मैं सिर पकड़े बैठी रही और मां की डांट खाती रही। जा कर गीले कपड़े बदले। आज भी सिर के पीछे उस ओले से बना गड्ढा हमेशा सिर मुंडाते ओले पड़ने का मुहावरा याद दिला देता है हालांकि मेरा सिर मुंडा हुआ नहीं था।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract